करौली. केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो ने बड़ी कार्रवाई करते हुए राजस्थान के करौली जिले के एक गांव में अवैध रूप से की जा रही अफीम की खेती को नष्ट करवाया है. यह खेती करौली जिले के चंबल के बीहड़ों में उबड़ खाबड़ जमीन को समतल कर कर की जा रही थी. साथ ही जब सेंट्रल नारकोटिक्स ब्यूरो की टीम पहुंची तो उन्हें कुछ अफीम के पौधे पर लगे हुए डोडो पर चीरे लगे हुए मिले हैं. ऐसे में साफ है कि केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो की कार्रवाई की सूचना के पहले ही वे लोग मौके से गायब हो गए हैं क्योंकि एक भी व्यक्ति खेतों पर नहीं मिला.
नारकोटिक्स ब्यूरो के उपायुक्त राजस्थान विकास जोशी ने बताया कि अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा था. इसमें उन्हें जानकारी मिली की राजस्थान के ही करौली जिले में अवैध रूप से अफीम की खेती की जा रही है. इसकी सूचना पर सीबीएन की टीम करौली जिले की मंडरायल तहसील के मूंडरी गांव पहुंची, जहां पर सरकारी चरागाह भूमि पर अवैध रूप से अफीम की खेती की गई थी. यह राजस्व ग्राम मार का कुआं था, जिस पर सीबीएन टीम ने 3825 वर्ग मीटर में अवैध अफीम काश्त को जब्त किया है. ये खेती तीन अलग-अलग जगह पर की जा रही थी. सीबीएन ने ही ट्रैक्टर से हकाई कराते हुए मौके पर ही अवैध अफीम काश्त को नष्ट किया गया है.
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सेंट्रल नारकोटिक्स ब्यूरो ने इस मामले में मुकदमा भी दर्ज किया है, जिस पर पड़ताल में जुटे हुए हैं कि कौन व्यक्ति इस तरह से अवैध काश्त कर रहा था, ताकि आरोपियों को भी गिरफ्तार किया जा सके, जिन्होंने इस तरह से अवैध नशे का नेटवर्क फैलाने के लिए खेती की थी. इस कार्रवाई के दौरान करौली पुलिस के डिप्टी मनराज मीणा और स्थानीय थाना अधिकारी मान सिंह भी मौके पर रहे. इस कार्रवाई के दौरान सेंट्रल नारकोटिक्स ब्यूरो के निरीक्षक जेपी मीणा, आरके प्रसाद, बलवंत कुमार, पूरणमल मीणा, आरके चौधरी, लिपिक गजराज मीणा और वाहन चालक रामगोपाल शामिल रहे.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में है 50 लाख रुपए से ज्यादा कीमत
सेंट्रल नारकोटिक्स ब्यूरो राजस्थान के उपायुक्त और विकास जोशी ने बताया कि टीम ने मौके पर जाकर जब देखा गया, तो सामने आया कि चंबल के बीहड़ों में बस्ती से काफी दूर अवैध रूप से अफीम की खेती की गई थी, जहां पर कोई व्यक्ति नहीं मिला. हालांकि खेती करने के लिए उन्होंने बीहड़ को समतल किया था. साथ ही वहां पर फसल को बोया हुआ था, जिसके पौधे भी अच्छी तैयार हो गई थी. यहां पर करीब डेढ़ बीघा में फसल होना मिला है, जिसकी अनुमानित अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 50 लाख रुपए है, जो कि अवैध रूप से ही बेची जाती है. क्योंकि इसका कोई पट्टा व्यक्ति को नहीं मिला हुआ है. हालांकि इस तरह से सरकारी चारागाह भूमि पर खेती होना राजस्व विभाग के अधिकारियों की लापरवाही है, क्योंकि उन्हें अपनी जमीनों का ही अंदाजा नहीं है कि उन पर क्या हो रहा है. कहीं पर भी इसी तरह से अतिक्रमण की भेंट भी जमीन चढ़ जाती हैं.