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सिलोकोसिस रोग से बचाव के लिए तैयार की गई डिवाइस

करौली में खनन कार्य करने वाले श्रमिकों में सिलोकोसिस रोग का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. डांग विकास संस्था ने सिलोकोसिस बीमारी रोग से बचाने के लिए एक उपकरण (डिवाइस) तैयार किया है.

सिलोकोसिस रोग से बचाव के लिए तैयार की गई डिवाइस
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Published : Jun 16, 2019, 8:42 AM IST

करौली. सिलोकोस बीमारी की चपेट में आने वाले श्रमिकों को निजात दिलाने के लिए श्रमिकों के हित में लड़ाई लड़ने वाली डांग विकास संस्था ने सिलोकोसिस बीमारी रोग से बचाने के लिए एक उपकरण (डिवाइस) तैयार किया है.

सिर्फ 7 रूपये से 10 रूपये की लागत से तैयार यह उपकरण फोम और टायर की रबड़ से बनाया गया है, जिसे पत्थर फोड़ने वाली टांकी पर लगाकर उपयोग मे लिया जाता है. इससे श्रमिकों नको खनन काम करने के दौरान डस्ट से होनी वाली सिलोकोसिस व टीवी जैसी गंभीर बीमारी से छुटकारा मिल सकेगा. दरअसल राजस्थान में सेंड स्टोन की खदानें सिलिका डस्ट फैलाने का बड़ा स्रोत है.

राज्य के कई जिलों जैसे जोधपुर, बूंदी, अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, भीलवाड़ा आदि जिलों में सेंडस्टोन पाई जाती हैं. जिले में राजशाही काल से ही खनन व्यवसाय होता आ रहा है. जिले की 30% से ज्यादा आबादी खनन कार्य से अपरोक्ष रूप से जुड़ी हुई है.

वहां के खान श्रमिकों में एक प्रकार की बीमारी का इतिहास मिलता आ रहा है, जिसके कारण इलाके के लोगों की मौत समय से पूर्व हो रही है. इलाके में खान श्रमिकों की बस्तियों में कम उम्र की विधवाओं की संख्या बढ़ रही है, जो हमेशा जनमानस में चर्चा विषय रहा है.

डांग विकास संस्थान के राजेश शर्मा ने बताया कि जिले में खनन कार्य करने वाले श्रमिकों में सिलोकोसिस रोग का गंभीर बीमारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है, जिस पर जिले में श्रमिकों के हित में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था डांग विकास ने श्रमिकों में बढ़ रही सिलोकोसिस की बीमारी को गंभीरता से लेते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनर हैल्थ नागपुर को जांच का जिम्मा सौंपा.

उक्त संस्थान ने जांच के बाद पाया कि क्षेत्र के खनन में 78 प्रतिशत प्रभाव सिलोकोसिस नामक लाइलाज बीमारी का है, जो श्रमिकों को गरीबी की चपेट में लाने का मूल कारक है. इस पर डांग विकास संस्थान ने सिलोकोसिस बीमारी से बचने के कम लागत वाला एक उपकरण तैयार किया, जो कम लागत के साथ बीमारियों से बचाने में काफी कारगर साबित हुआ. फोम व टायर के रबड़ से तैयार होने वाली डिवाइस को टांकी पर लगाकर श्रमिकों को गंभीर बीमारी से बचाने में काफी हद तक साबित हो रहा है.

बढ़ता जा रहा सिलोकोसिस रोग का ग्राफ, बचाव के लिए तैयार की गई डिवाइस

सिलोकोसिस है गंभीर व्यवसाय बीमारी
सिलोकोसिस रोग बारीक धूल के कणो के माध्यम से सांस के जरिए फेफड़ों में लगातार लंबे समय तक जाने के कारण होता है.यह बहुत पुरानी प्रचलित बीमारी है.यह बहुत गंभीर व्यवसाय बीमारी है, जो एक अन्य व्यवसाय बीमारियों की तुलना में अधिक जीवन को हानि पहुंचाने का काम करती है.सिलोकोसिस रोग से अब तक सैकडो श्रमिक अकाल मौत का शिकार हो गए है.हजारों श्रमिक इस रोग से पीडित है.

करौली. सिलोकोस बीमारी की चपेट में आने वाले श्रमिकों को निजात दिलाने के लिए श्रमिकों के हित में लड़ाई लड़ने वाली डांग विकास संस्था ने सिलोकोसिस बीमारी रोग से बचाने के लिए एक उपकरण (डिवाइस) तैयार किया है.

सिर्फ 7 रूपये से 10 रूपये की लागत से तैयार यह उपकरण फोम और टायर की रबड़ से बनाया गया है, जिसे पत्थर फोड़ने वाली टांकी पर लगाकर उपयोग मे लिया जाता है. इससे श्रमिकों नको खनन काम करने के दौरान डस्ट से होनी वाली सिलोकोसिस व टीवी जैसी गंभीर बीमारी से छुटकारा मिल सकेगा. दरअसल राजस्थान में सेंड स्टोन की खदानें सिलिका डस्ट फैलाने का बड़ा स्रोत है.

राज्य के कई जिलों जैसे जोधपुर, बूंदी, अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, भीलवाड़ा आदि जिलों में सेंडस्टोन पाई जाती हैं. जिले में राजशाही काल से ही खनन व्यवसाय होता आ रहा है. जिले की 30% से ज्यादा आबादी खनन कार्य से अपरोक्ष रूप से जुड़ी हुई है.

वहां के खान श्रमिकों में एक प्रकार की बीमारी का इतिहास मिलता आ रहा है, जिसके कारण इलाके के लोगों की मौत समय से पूर्व हो रही है. इलाके में खान श्रमिकों की बस्तियों में कम उम्र की विधवाओं की संख्या बढ़ रही है, जो हमेशा जनमानस में चर्चा विषय रहा है.

डांग विकास संस्थान के राजेश शर्मा ने बताया कि जिले में खनन कार्य करने वाले श्रमिकों में सिलोकोसिस रोग का गंभीर बीमारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है, जिस पर जिले में श्रमिकों के हित में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था डांग विकास ने श्रमिकों में बढ़ रही सिलोकोसिस की बीमारी को गंभीरता से लेते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनर हैल्थ नागपुर को जांच का जिम्मा सौंपा.

उक्त संस्थान ने जांच के बाद पाया कि क्षेत्र के खनन में 78 प्रतिशत प्रभाव सिलोकोसिस नामक लाइलाज बीमारी का है, जो श्रमिकों को गरीबी की चपेट में लाने का मूल कारक है. इस पर डांग विकास संस्थान ने सिलोकोसिस बीमारी से बचने के कम लागत वाला एक उपकरण तैयार किया, जो कम लागत के साथ बीमारियों से बचाने में काफी कारगर साबित हुआ. फोम व टायर के रबड़ से तैयार होने वाली डिवाइस को टांकी पर लगाकर श्रमिकों को गंभीर बीमारी से बचाने में काफी हद तक साबित हो रहा है.

बढ़ता जा रहा सिलोकोसिस रोग का ग्राफ, बचाव के लिए तैयार की गई डिवाइस

सिलोकोसिस है गंभीर व्यवसाय बीमारी
सिलोकोसिस रोग बारीक धूल के कणो के माध्यम से सांस के जरिए फेफड़ों में लगातार लंबे समय तक जाने के कारण होता है.यह बहुत पुरानी प्रचलित बीमारी है.यह बहुत गंभीर व्यवसाय बीमारी है, जो एक अन्य व्यवसाय बीमारियों की तुलना में अधिक जीवन को हानि पहुंचाने का काम करती है.सिलोकोसिस रोग से अब तक सैकडो श्रमिक अकाल मौत का शिकार हो गए है.हजारों श्रमिक इस रोग से पीडित है.

Intro:अब उपकरण से हो सकेगा खनन श्रमिकों का सिलोकोसिस रोग से बचाव,


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अब उपकरण से हो सकेगा खनन श्रमिकों का सिलोकोसिस रोग से बचाव,


करौली


सिलोकोस बीमारी की चपेट में आने वाले श्रमिकों को निजात दिलाने के लिए श्रमिकों के हित मे लडाई लडने वाली.. डांग विकास संस्था ने सिलोकोसिस बीमारी रोग से बचाने के लिए एक उपकरण (डिवाइस) तैयार किया है..मात्र 7 रूपये से 10 रूपये की लागत से तैयार यह उपकरण फोम और टायर की रबड से बनाया गया..जिसे पत्थर फोडने वाली टाँकी पर लगाकर उपयोग मे लिया जाता है.. जिससे श्रमिकों द्वारा खनन काम करने के दौरान डस्ट से होनी वाली सिलोकोसिस व टीवी जैसी गंभीर बीमारी से छुटकारा मिल सकेगा..


दरअसल राजस्थान में सेंड स्टोन की खदानें सिलिका डस्ट फैलाने का बड़ा स्रोत है.. राज्य के कई जिलों जैसे जोधपुर ,बूंदी, अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर, भीलवाड़ा आदि जिलों में सेंडस्टोन  पाई जाती हैं..करौली जिले में राजशाही काल से ही खनन व्यवसाय होता आ रहा है..  जिले की 30% से ज्यादा आबादी खनन कार्य से अपरोक्ष रूप से जुड़ी हुई है.. वहां के खान श्रमिकों में एक प्रकार की बीमारी का इतिहास मिलता आ रहा है.. जिसके कारण  इलाके के लोगों की मौत समय से पूर्व हो रही है.. इलाके में खान श्रमिको की  बस्तियों में कम उम्र की विधवाओं की संख्या बढ़ रही है.. जो  हमेशा जनमानस में चर्चा विषय रहा है..



डांग विकास संस्थान के राजेश शर्मा ने बताया की जिले में खनन कार्य करने वाले श्रमिकों में सिलोकोसिस रोग का गंभीर बीमारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है.. जिस पर जिले में में श्रमिकों के हित में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था डांग विकास ने श्रमिको में बढ़ रही सिलोकोसिस की बीमारी को गंभीरता से लेते हुए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनर हैल्थ नागपुर को जांच का जिम्मा सौंपा.. उक्त संस्थान ने जांच के बाद पाया कि क्षेत्र के खनन में 78 प्रतिशत प्रभाव सिलोकोसिस नामक लाइलाज बीमारी का है..  जो श्रमिकों को गरीबी  की चपेट में लाने का मूल कारक है..जिस पर  डांग विकास संस्थान ने सिलोकोसिस बीमारी से बचने के कम लागत वाला एक उपकरण तैयार किया.. जो कम लागत के साथ बीमारियों से बचाने में काफी कारगर साबित हुआ.. फोम व टायर के रबड़ से तैयार होने वाली डिवाइस को टाँकी पर लगाकर श्रमिकों को गंभीर बीमारी से बचाने में काफी हद तक साबित हो रहा है...


सिलोकोसिस है गंभीर व्यवसाय बीमारी


सिलोकोसिस रोग बारीक धूल के कणो के माध्यम से सांस के जरिए फेफडो मे लगातार लंबे समय तक जाने के कारण होता है.. यह बहुत पुरानी प्रचलित बीमारी है... यह बहुत गंभीर व्यवसाय बीमारी है, जो एक अन्य व्यवसाय बीमारियों की तुलना में अधिक जीवन को हानि पहुंचाने का काम करती है...सिलोकोसिस रोग से अब तक सैकडो श्रमिक अकाल मौत का शिकार हो गये है..और हजारो श्रमिक इस रोग से पीडित है..

वाईट-राजेश शर्मा कार्मिक डांग विकास संस्थान ..

वाईट--श्रमिक




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