जोधपुर. शब्दों की चमक, संवादों की गूंज और तालियां की गड़गड़ाहट के साथ सोमवार को तीन दिवसीय राजस्थान साहित्य उत्सव का समापन हो गया. इन तीन दिनों में अनोखे अंदाज में साहित्य की सुगंध से जोधपुर महकता रहा. उत्सव के तीसरे दिन की शुरुआत फोक स्टूडियो फेम लोक गायिका भंवरी देवी की सुरीली आवाज के साथ हुई. इसके बाद काव्य पाठ, राजस्थानी कवि सम्मेलन आकर्षण का केंद्र रहे. सोमवार को विभिन्न सत्रों में कई मुद्दों पर चर्चा की गई. उत्सव का समापन रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ हुआ.
समापन समारोह में राजस्थान संस्कृति की झलक प्रस्तुत की गई. साबिर खान एंड ग्रुप ने प्रस्तुति ड्रम्स ऑफ राजस्थान में विभिन्न वाद्ययंत्रों की अनोखी जुगलबंदी पेश की. मंच पर राजस्थानी साजों का एक साथ प्रदर्शन हुआ. इनमें हारमोनियम, भपंग, मशक, नगाड़े, अलगोजा, शंख, मोरचंग, सुरंदा, मंजीरे, ढोल, खड़ताल, चंग समेत अन्य वाद्ययंत्र बजाए गए. लोक नृत्यों की प्रस्तुति ने भी वाह-वाही लूटी. वहां मौजूद इला अरुण भी खुद को गाने से नहीं रोक पाई. मंच पर जयपुर घराने की कथक की प्रस्तुति भी दी गई.
मारवाड़ी भाषा को बढ़ावा देने के लिए धरातल पर काम करना होगा
शहर के जनाना बाग में चल रहे तीन दिवसीय राजस्थान साहित्य उत्सव का सोमवार शाम को समापन हो गया. आज भी कई सत्रों का आयेाजन किया गया जिसमें विषय विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी. साहित्य उत्सव में कन्हैया लाल सेठिया सभागार में प्रवासी राजस्थानी एवं उनका रचना संसार विषय पर संवाद सत्र आयोजित किया गया. सत्राध्यक्ष डॉ. जयप्रकाश सेठिया ने कहा कि अंग्रेजी बोलने वालों को अलग जगह मिल रही है. हमें मारवाड़ी के लिए धरातल पर काम करना होगा. हमारे बच्चों केा घर पर मारवाड़ी सिखानी होगी.
गजेंद्र कविया ने कहा कि भाषा बचाने के लिए भी कई बार कविताओं का निर्माण होता है. लेकिन कई बार उसमें कुछ पंक्तियां और जोड़ दी जाती हैं. उन्होंने हरियाणवी व पंजाबी गीत सुनने के साथ साथ राजस्थानी गीत सुनने की भी वकालत की. डॉ. सुरेंद्र पोखरना ने कहा कि इसरो में जाने के दौरान मैंने महसूस किया कि जब बंगाली मिलते हैं तो वे बंग्ला में बात करते हैं, गुजराती मिलते हैं तो गुजराती में बात करते हैं, जब राजस्थानी मिलते हैं तो क्यों हम अपनी राजस्थानी में बात नहीं करते हैं. हमें इसके लिए कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है.
बाल साहित्य सृजन बना चुनौती
मीरा बाई सभागार में बाल साहित्य सृजन की चुनौतियां और संभावनाएं विषय पर आयोजित संवाद सत्र में बाल साहित्य से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा हुई. इस सत्र की अध्यक्षता पं. जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के अध्यक्ष इकराम राजस्थानी ने की. इसमें दीनदयाल शर्मा ने कहा कि बाल सृजन अपने आप में बड़ी चुनौती है. आज की पीढ़ी बहुत तेज है, उसे हर चीज आसानी से स्वीकार्य नहीं होती है. बाल साहित्य का सृजन एक रचनाकार के लिए तलवार की धार पर चलने जैसा हो जाता है.
अकादमी के उपाध्यक्ष बुलाकी शर्मा ने कहा कि मौजूदा समय में बाल साहित्य सृजन के समक्ष एक अलग चुनौती है. आज बच्चों की मानसिकता बदल गई है. वह अलग तरह से सोचते हैं. उन्हें दादी नानी की कहानी से ज्यादा सवाल पूछना अच्छा लगता है. हम साहित्य के जरिए उन सवालों का जवाब दे पा रहे हैं या नहीं. यह भी पता नहीं चल रहा है.
शहरी दर्शकों को नाटक से जोड़ना होगा
विश्व रंगमंच दिवस के मौके पर 27 मार्च सोमवार को राजस्थान साहित्य उत्सव के प्रांगण में विजयदान देथा सभागार में 'राजस्थान के लोक नाट्य एवं आधुनिक रंगमच' विषय पर संवाद सत्र का आयोजन किया गया. इसमें राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा ने कहा कि रंगमंच की पहली शर्त यह है कि यह बंधन से मुक्त करता है. उन्होंने यह भी कहा कि नाटक को विभिन्न प्रकारों में बांटने की जगह नाटक क्या है इस पर विचार जरूरी है. परफॉर्मिंग आर्ट को सरल औऱ सहज बनाया जाना चाहिए जिससे इसका प्रभावी सम्प्रेषण हो सके.
डॉ. प्रशांत बिस्सा ने कहा कि प्रदेश के लोकनाट्यों का प्रभाव बहुत व्यापक है. रम्मत और गंवरी जैसे लोकनाट्यों का जब मंचन होता है तो हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने आते हैं. अशोक राही ने कहा कि लोक नाट्यों के खत्म होने का सबसे बड़ा कारण है कि शहरी दर्शक इससे नहीं जुड़ पाए. उन्होंने विभिन्न शैली के नाटक लेखन के लिए युवाओं को प्रेरित करने पर जोर दिया.