जोधपुर. शिव मंदिरों में जाने वाले भक्त शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. अमूमन हर शिवालय में भक्त शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं. लेकिन आज हम जिस शिवालय के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, वहां भक्त शिवलिंग पर जल नहीं चढ़ाते. मान्यता है कि शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जारी है.
जोधपुर में मेहरानगढ़ दुर्ग के नीचे पहाड़ी की तलहटी में करीब 500 साल पहले स्वयंभू प्रकट शिवलिंग अचलनाथ महादेव पर आमजन जल अर्पित नहीं करते हैं. इस मंदिर के प्रमुख पीले शिवलिंग पर सिर्फ नागा साधु महंत ही जल अर्पित करते हैं. यह परंपरा 500 साल से चली आ रही है. जल भी इसी शिवलिंग के साथ मिली बावड़ी का अर्पित किया जाता है, जो आज भी मौजूद है. लेकिन वहां जाना प्रतिबंधित है. इस मंदिर का निर्माण राव राजा गांगा ने संवत 1531 में करवाया था. यह मंदिर आज शहर के लोगों की अस्था का बड़ा केंद्र बना हुआ है. भीतरी शहर के संकरे रास्तों से होते हुए अचलनाथ महोदव मंदिर तक पहुंचा जाता है. मंदिर में सामान्यजन के लिए यहां अलग शिवलिंग स्थापित हैं, जिस पर लोग जल चढ़ाते हैं. शिवरात्री पर यहां भस्माआरती भी होती है.
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मंदिर प्रबंधन देख रहे महंत मुनिश्वरगिरी महाराज बताते हैं कि 500 साल से भी पूर्व इस स्थान पर गाय स्वतः ही अपना दूध देने लगी थी. साधुओं ने जब उसे देखा तो उन्होंने अनुभूति की तो पता चला कि वहां पर शिवलिंग है. स्वयंभू शिवलिंग के उदय होने के बाद साधुओं ने पूजा शुरू की. जोधपुर के तत्कालीन राव गांगा व उनकी पत्नी ने शिवालय का निर्माण करवाया. तब शिवलिंग की जगह परिवर्तित करने का प्रयास हुआ, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. शिविलिंग अचल रहा, तब से अचलनाथ महादेव का नामकरण हुआ.
नागा संप्रदाय के साधु ही करते हैं पूजा पाठः बताया जाता है कि 500 वर्ष पूर्व तत्कालीन महाराजा राव गांगा और महारानी नानकदेवी के कोई संतान नहीं थी. यहां आराधना करने पर उनको संतान प्राप्ति हुई. नागा साधु महंतों की यहां कई समाधियां बनी हुई हैं, जो इस मंदिर में तपस्या करते थे. बताया जाता है कि महंत चैनपुरी भविष्यदर्शता थे. अंर्तदृष्टि से उन्हें पता चला कि राव गांगा की आयु 20 वर्ष ही है, तब उन्होंने दो अन्य महंतों के साथ तपोबल से अपनी आयु का समय राव गांगा को दिया. इसके प्रति कृतज्ञता दिखाते हुए रावगांगा ने मंदिर की जिम्मेदारी महंतों को सौंप दी थी. यह परंपरा आज तक चली आ रही है. अचलनाथ महादेव के शिवलिंग की पूजा सिर्फ साधु महंत ही कर रहे हैं.
1977 में हुआ जिर्णोद्धारः भीतरी शहर में यह मंदिर बरसों से अपने प्राचीन स्वरूप में रहा. मंदिर के आस पास बस्तियां और बाजार विकसित हो गए. 1977 में यहां नेपाली बाबा ने मंदिर का पूरा जिर्णोद्धार करवाया. उन्होंने प्राचीन अचलनाथ महादेव शिवलिंग के पास ही नर्मदा से लाकर एक शिवलिंग स्थापित किया. साधु महंतों की सभी समाधियों पर यहां शिवलिंग बने हुए है. लेकिन इन पर जल नहीं चढ़ाया जाता है. कुल 17 समाधियां बताई जाती है. साथ ही कहा जाता है कि सात यहां जीवित समाधियां भी बरसों पूर्व की हैं.
12 ज्योर्तिलिंग भी किए गए हैं स्थापितः सैकड़ों बरसों से अचलनाथ महादेव जोधपुर के लिए आराध्य हैं. आज भी यहां सैंकडों ऐसे लोग हैं, जो बिना दर्शन के भोजन नहीं करते हैं. कोरोना के समय भी आस पास के लोगों के लिए दर्शन की व्यवस्था की गई थी. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मंदिर के प्रति लोगों की कितनी गहरी आस्था है. अचलनाथ मंदिर में भगवान राम, लक्ष्मण व सीता की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं. इसके अलावा हनुमानजी, मां पर्वती, गजानन को भी स्थापित किया गया है. इसके अलावा देश में अलग अलग स्थानों पर मौजूद 12 ज्योर्तिलिंगों के नाम से भी यहां शिवलिंग स्थापित किए गए हैं.