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एक राजा जो एमएलए-एमपी बने, लेकिन सदन में नहीं कर सके प्रवेश, जानें इसके पीछे की वजह

Political journey of Rajasthan, साल 1952 में देश में पहला चुनाव हुआ. इस चुनाव में जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी को भारी मतों से पराजित किया, बावजूद इसके वो सदन तक नहीं पहुंच सके थे.

Political journey of Rajasthan
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 30, 2023, 4:10 PM IST

जोधपुर. कोई व्यक्ति विधायक और सांसद का चुनाव लड़े, लेकिन जीतने के बाद भी अगर वो सदनों में प्रवेश न कर सके तो इसे आप क्या कहेंगे? आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चुनाव जीतने के बाद भी न तो विधानसभा में प्रवेश कर सका और न ही लोकसभा तक पहुंच सका. ऐसा ही एक वाकया जोधपुर में हुआ था और जिस शख्स के बारे में हम बात कर रहे हैं, वो शख्स थे जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह. जिन्होंने 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव और राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन दुर्भाग्य से मतगणना से पहले ही एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.

जयनारायण व्यास नहीं बचा पाए थे जमानत : चुनाव के परिणाम जब जारी हुए तो वे जोधपुर-जैसलमेर लोकसभा सीट व जोधपुर बी विधानसभा सीट से वो भारी मतों से विजयी घोषित हुए. जोधपुर से उनके सामने चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता जयनारायण व्यास तो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे. उस चुनाव में हनवंत सिंह को 11 हजार 786 मत मिले, जबकि व्यास को 3159 वोट पड़े थे. इस तरह से जोधपुर जैसलमेर लोकसभा सीट से हनवंत सिंह को एक लाख 40 हजार मत मिले, जबकि उनके सामने कांग्रेस के उम्मीदवार नूर मोहम्मद यासीन को 38017 वोट पड़े थे.

Political journey of Rajasthan
जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह का सियासी नारा

इसे भी पढ़ें - कौन बनेगा राजस्थान का मुख्यमंत्री ? कांग्रेस में तीन चेहरे तो भाजपा में लगी लंबी कतार!

बदल जाती राजनीति की दिशा और दशा : प्रो. एलएस राठौड़ की लिखी किताब 'लाइफ एंड टाइम्स ऑफ महाराजा हनवंत सिंह' में पहले चुनाव का विस्तृत जिक्र मिलता है. इस पुस्तक में लिखा गया है कि अगर हनवंत सिंह उस वक्त जीवित होते तो राजस्थान की राजनीति की दिशा और दशा बदल जाती, क्योंकि उन्होंने वो चुनाव कांग्रेस के खिलाफ लड़ा था. पूरे जोधपुर रीजन की 35 विधानसभा सीट में से 31 पर उनके समर्थक राम राज्य परिषद के उम्मीदवार चुनाव जीते थे. राज्य में कांग्रेस को उस चुनाव में 82 सीटें मिली थी, जबकि विपक्ष को 78 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इनमें निर्दलयी 35 और राम राज्य परिषद को 24 सीटें मिली थी. हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस के बड़े नेता जयनारायण व्यास, गोकुल भाई भट्ट सहित अन्य कई बुरी तरह से पराजित हो गए थे. ऐसे में अगर तब हनवंत सिंह जीवित रहते तो कांग्रेस के लोग भी उनका साथ देते.

विमान दुर्घटना में गई जान : 25 जनवरी, 1952 को मतगणना हो रही थी. वहीं, 26 जनवरी को महाराज हनवंत सिंह अपने समर्थक ठाकुर माधोसिंह दीवान जो जालौर से जयनारायण व्यास के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, उनसे मिलने के लिए अपने चार्टर प्लेन से रवाना हुए थे. दुर्भाग्य से उनका विमान सुमेरपुर जवाई बांध के पास क्रेश हो गया और इस हादसे में उनकी मौत हो गई. वहीं, जब 29 जनवरी को परिणाम आए तो वे लोकसभा व विधानसभा का चुनाव भारी मतों से विजयी हुए. माधोसिंह ने भी जयनारायण व्यास को हरा दिया था, लेकिन इस जीत की खुशी में शामिल होने के लिए महाराज हनवंत सिंह नहीं थे.

Political journey of Rajasthan
पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के साथ जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह व अन्य

इसे भी पढ़ें - राजस्थान में जाट राजनीति के सात दशक, जानें क्यों नहीं बना इस वर्ग का कोई सीएम

म्हे थांसू दूर नहीं से झलका प्रेम : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस चुनाव में कई जगह कह चुके हैं कि म्हे थांसू दूर नहीं. इसका मतलब है कि मैं आपसे दूर नहीं हूं. आजाद भारत में पहले चुनाव में ये वाक्य जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह ने कहा था. तब राजशाही समाप्त हो गई थी और लोकतंत्र पनपरहा था. नेताओं की सरकारें बनने की कगार पर थी. 1952 के पहले चुनाव में हनवंत सिंह ने चुनाव लड़ा तो उनका नारा था, ''म्हे थांसू दूर नहीं''. उन्होंने अपनी जनता को संदेश दिया था कि लोकशाही में भी मैं आपसे दूर नही रहूंगा. यही वजह थी कि चुनाव परिणाम में उनकी भारी जीत हुई.

कांग्रेस के बड़े नेता हारे चुनाव : प्रो. एलएस राठौड़ की किताब 'ए हिस्टोरिक विक्ट्री खंड' में बताया गया है कि 1952 के पहले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस के बड़े नेताओं को हार का सामना करना पडा था. जयनारायण व्यास जोधपुर बी और जालौर से हारे थे. वहीं, कांग्रेस के पहले प्रदेश अध्यक्ष गोकुल भाई भट्ट को पाली-जालौर-सिरोही संसदीय क्षेत्र से पराजय का मुंह देखने पड़ा था. इस चुनाव में माणिक्यलाल वर्मा भी चित्तौड़गढ़ लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे तो बीकानेर से रघुवीर दयाल की जमानत जब्त हो गई थी. इतना ही नहीं अमृतलाल यादव भी भरतपुर से चुनाव हार गए थे. उस समय लोकसभा की 22 सीटें थीं, जिसमें से कांग्रेस को 11, रामराज्य परिषद को तीन, जनसंघ और कृषक लोक पार्टी को 1-1 और 6 सीटों पर निर्दलीय को जीत मिली थी.

जोधपुर. कोई व्यक्ति विधायक और सांसद का चुनाव लड़े, लेकिन जीतने के बाद भी अगर वो सदनों में प्रवेश न कर सके तो इसे आप क्या कहेंगे? आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जो चुनाव जीतने के बाद भी न तो विधानसभा में प्रवेश कर सका और न ही लोकसभा तक पहुंच सका. ऐसा ही एक वाकया जोधपुर में हुआ था और जिस शख्स के बारे में हम बात कर रहे हैं, वो शख्स थे जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह. जिन्होंने 1952 में हुए देश के पहले आम चुनाव और राजस्थान विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन दुर्भाग्य से मतगणना से पहले ही एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई.

जयनारायण व्यास नहीं बचा पाए थे जमानत : चुनाव के परिणाम जब जारी हुए तो वे जोधपुर-जैसलमेर लोकसभा सीट व जोधपुर बी विधानसभा सीट से वो भारी मतों से विजयी घोषित हुए. जोधपुर से उनके सामने चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के कद्दावर नेता जयनारायण व्यास तो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे. उस चुनाव में हनवंत सिंह को 11 हजार 786 मत मिले, जबकि व्यास को 3159 वोट पड़े थे. इस तरह से जोधपुर जैसलमेर लोकसभा सीट से हनवंत सिंह को एक लाख 40 हजार मत मिले, जबकि उनके सामने कांग्रेस के उम्मीदवार नूर मोहम्मद यासीन को 38017 वोट पड़े थे.

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जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह का सियासी नारा

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बदल जाती राजनीति की दिशा और दशा : प्रो. एलएस राठौड़ की लिखी किताब 'लाइफ एंड टाइम्स ऑफ महाराजा हनवंत सिंह' में पहले चुनाव का विस्तृत जिक्र मिलता है. इस पुस्तक में लिखा गया है कि अगर हनवंत सिंह उस वक्त जीवित होते तो राजस्थान की राजनीति की दिशा और दशा बदल जाती, क्योंकि उन्होंने वो चुनाव कांग्रेस के खिलाफ लड़ा था. पूरे जोधपुर रीजन की 35 विधानसभा सीट में से 31 पर उनके समर्थक राम राज्य परिषद के उम्मीदवार चुनाव जीते थे. राज्य में कांग्रेस को उस चुनाव में 82 सीटें मिली थी, जबकि विपक्ष को 78 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इनमें निर्दलयी 35 और राम राज्य परिषद को 24 सीटें मिली थी. हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस के बड़े नेता जयनारायण व्यास, गोकुल भाई भट्ट सहित अन्य कई बुरी तरह से पराजित हो गए थे. ऐसे में अगर तब हनवंत सिंह जीवित रहते तो कांग्रेस के लोग भी उनका साथ देते.

विमान दुर्घटना में गई जान : 25 जनवरी, 1952 को मतगणना हो रही थी. वहीं, 26 जनवरी को महाराज हनवंत सिंह अपने समर्थक ठाकुर माधोसिंह दीवान जो जालौर से जयनारायण व्यास के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, उनसे मिलने के लिए अपने चार्टर प्लेन से रवाना हुए थे. दुर्भाग्य से उनका विमान सुमेरपुर जवाई बांध के पास क्रेश हो गया और इस हादसे में उनकी मौत हो गई. वहीं, जब 29 जनवरी को परिणाम आए तो वे लोकसभा व विधानसभा का चुनाव भारी मतों से विजयी हुए. माधोसिंह ने भी जयनारायण व्यास को हरा दिया था, लेकिन इस जीत की खुशी में शामिल होने के लिए महाराज हनवंत सिंह नहीं थे.

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पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के साथ जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह व अन्य

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म्हे थांसू दूर नहीं से झलका प्रेम : मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस चुनाव में कई जगह कह चुके हैं कि म्हे थांसू दूर नहीं. इसका मतलब है कि मैं आपसे दूर नहीं हूं. आजाद भारत में पहले चुनाव में ये वाक्य जोधपुर के तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह ने कहा था. तब राजशाही समाप्त हो गई थी और लोकतंत्र पनपरहा था. नेताओं की सरकारें बनने की कगार पर थी. 1952 के पहले चुनाव में हनवंत सिंह ने चुनाव लड़ा तो उनका नारा था, ''म्हे थांसू दूर नहीं''. उन्होंने अपनी जनता को संदेश दिया था कि लोकशाही में भी मैं आपसे दूर नही रहूंगा. यही वजह थी कि चुनाव परिणाम में उनकी भारी जीत हुई.

कांग्रेस के बड़े नेता हारे चुनाव : प्रो. एलएस राठौड़ की किताब 'ए हिस्टोरिक विक्ट्री खंड' में बताया गया है कि 1952 के पहले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस के बड़े नेताओं को हार का सामना करना पडा था. जयनारायण व्यास जोधपुर बी और जालौर से हारे थे. वहीं, कांग्रेस के पहले प्रदेश अध्यक्ष गोकुल भाई भट्ट को पाली-जालौर-सिरोही संसदीय क्षेत्र से पराजय का मुंह देखने पड़ा था. इस चुनाव में माणिक्यलाल वर्मा भी चित्तौड़गढ़ लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे तो बीकानेर से रघुवीर दयाल की जमानत जब्त हो गई थी. इतना ही नहीं अमृतलाल यादव भी भरतपुर से चुनाव हार गए थे. उस समय लोकसभा की 22 सीटें थीं, जिसमें से कांग्रेस को 11, रामराज्य परिषद को तीन, जनसंघ और कृषक लोक पार्टी को 1-1 और 6 सीटों पर निर्दलीय को जीत मिली थी.

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