लूणी (जोधपुर). अब मवेशी भी इंसानों की तरह सलाद का स्वाद चखेंगे. पश्चिमी राजस्थान में फरवरी से जून तक गर्मियों के दिनों में हरे चारे की कमी हो जाती है. इस समस्या से निपटने के लिए जोधपुर काजरी ने नई फसल चारा चुकंदर (फोडर बीट) तैयार की है.
बता दें कि चारा चुकंदर अत्यधिक उपज देने वाली जमीन कंदीय फसल है. यह अन्य चारा फसलों की तुलना में यह कम क्षेत्रफल और कम समय में अधिक उत्पादन देती हैं. यह प्रति हेक्टेयर 80 टन चारे का उत्पादन करेगी.
काजरी के प्रधान वैज्ञानिक एसपीएस तंवर ने बताया कि इसका पौधा सलाद के काम आने वाले चुकंदर जैसा ही होता है लेकिन आकार में बड़ा होता है. इसमें शर्कर की मात्रा कम होती हैं. साथ ही विश्व के जिन देशों में व्यवसायिक स्तर पर पशुपालन किया जाता है, वहां यह फसल बहुत लोकप्रिय हैं. जैसे नीदरलैंड्स में डेयरी एनिमल्स को यही चारा खिलाया जाता है. फ्रांस, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, बेलारूस आदि देशों में चारे के लिए बहुत आयात से उगाई जाती है. उसी तर्ज पर काजरी ने जोधपुर,पाली,गोटन और मध्यप्रदेश के नीमच में इसका सफल शोध किया है.
चारे में मिलेंगे प्रोटीन और विटामिन
फोडर बीट में कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन खनिज तत्व एवं विटामिन जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में हैं. इसकी बुवाई नवंबर में की जाती है. वह इसके कंद फरवरी के अंत से मिलने को तैयार हो जाते हैंं. इसकी उपलब्धता जून तक बनी रहती है. इसमें कम पानी की जरूरत होती है और खारे पानी में भी इसकी अच्छी उपज ली जा सकती हैं. खेत में चारा चुकंदर के कंद का औसत वजन 8 किलो है. साथ ही इस चुकंदर चारे का स्वाद खट्टा और मीठा होता है.
पशुपालन व्यवसाय में होगा मुनाफा
काजरी निदेशक डॉक्टर ओपी यादव ने खेत में लगी फसल को देखकर इस बारे में किसानों और वैज्ञानिकों से बातचीत की है. उनका कहना है कि किसान अगर चारा चुकंदर फसल की तकनीकी अपनाए तो पशुओं के लिए गर्मियों में हरे चारे की कमी नहीं रहेगी. इससे पशु तंदुरुस्त रहेंगे और पशुपालन व्यवसाय में पहले से ज्यादा मुनाफा पड़ेगा. काजरी में इस नई फसल को देखने आए पशुपालन और किसान अपने खेत में इसका उत्पादन करने के लिए काजरी के वैज्ञानिकों से जुड़ना चाहते हैं.
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काजरी में फोडर बीट पर अनुसंधान और परीक्षण हो रहा है. किसानों के खेतों पर भी प्रदर्शन किए जा रहे हैं. गाय, भैंस, घोड़ा जैसे बड़े पशुओं को 10 से 15 किलो प्रति दिन के हिसाब से हरा चारा खिलाया जा सकता है.