जोधपुर. कभी जिले के तिंवरी मथानिया की लाल मिर्च की बुवाई करीब 70 हजार हेक्टेयर में होती थी. बीते दो दशक में मिर्च का रकबा घटकर सिर्फ एक हजार हेक्टेयर तक रह गया है. इन दिनों जिले के कोटेचा, तिंवरी बावरला गांव के खेतों में मिर्च की फसल आने से खेतों में लाल मिर्च की चादर नजर आ रही है.
जैविक पद्धति से मथानिया मिर्च की खेती खास बात यह है कि अब यह फसल पूरी तरह से जैविक पद्धति (Cultivation of Mathania chili by organic method) हो रही है. बताया जा रहा है कि कभी 70,000 हेक्टेयर में उगने वाली लाल मिर्च के एक ही खेत में बार-बार बुआई करने से ऐसे हालात हुए हैं. फसल में निमेटोड जैसे कीड़े लग गए, साथ ही इलाके में भूजल का स्तर नीचे चले जाने से पानी में नमक की अधिकता होने से मिर्ची की खेती लुप्तप्राय सी हो गई. वर्ष 2000 के आते-आते मथानिया मिर्च का रकबा घटना शुरू हुआ, जो आज सिर्फ एक हजार हेक्टेयर रह गया (Decrease in Mathania chili area) है. जबकि पहले तिंवरी, मथानिया, भोपालगढ़ के दो दर्जन गांवों में फसल हुआ करती थी.
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भारतीय किसान संघ के सचिव तुलछाराम बताते हैं कि मथानिया मिर्च का व्यावसायिक उत्पादन अब बहुत कम हो गया है. एक खेत में लगातार मिर्च की बुवाई से इसे सूत्रकृमि जमीन में पनपने से विपरीत प्रभाव पड़ा. इसके अलावा गहरे पानी में लवण और लगातार पेस्टिसाइड का छिड़काव कीट पर बेअसर हो गया, जिससे फसलें खराब होने लगी तो किसानों ने दूरी बना ली. आजकल लोग सिर्फ अपने उपयोग के लिए थोड़ी बहुत फसल की बुवाई करते हैं. व्यावसायिक रूप से इसका उत्पादन सीमित हो गया है, क्योंकि लागत बढ़ गई है.
कभी होती थी एक्सपोर्ट - तिंवरी मथानिया क्षेत्र की मिर्ची के पहचान देश और दुनिया में अलग ही हुआ करती थी. एक समय था जब इस स्वाद और लाल रंग के कारण इस मिर्ची का एक्सपोर्ट संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, यूके सहित अन्य देशों के लिए होता था. इसके अलावा देश के बड़े शहरों में भी मथानिया मिर्च के नाम से बिका करती थी, लेकिन अब रकबा सीमित होने से उत्पादन घट गया है.