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Ber Fruit Of CAZRI: काजरी के बेर के क्या कहने, इस बार 42 किस्मों का हो चुका उत्पादन...ये है खासियत

बीते साल झमाझम बारिश से इस बार जोधपुर के काजरी (Ber Fruit production in CAZRI) में बेर की फसल अच्छी हुई है. वैज्ञानिकों की माने तो अब तक बेर की 42 किस्में तैयार की जा चुकी हैं. ऐसे में बेर की खेती करने वाले किसानों को भी बढ़िया मुनाफा होने की उम्मीद है.

Ber Fruit Of CAZRI
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Published : Jan 25, 2023, 5:10 PM IST

Updated : Jan 25, 2023, 8:20 PM IST

काजरी में बेर की खेती

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में इन दिनों बेर की फसल लहलहा रही है. बीते साल अच्छी बारिश के कारण इस बार बेर से लदे पेड़ों की डालें जमीन छू रही हैं. काजरी के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस बार संस्थान में अच्छी फसल हुई है, ऐसे में जो किसान बेर की खेती कर रहे हैं उनको मुनाफा भी अच्छा होगा. खास बात यह है कि बेर नगदी फसल है. पेड़ से फल उतरते ही बाजार में बिकने के लिए पहुंच जाते हैं.

खास कर काजरी के गोला बेर की डिमांड सबसे ज्यादा होती है. इसके अलावा इन दिनों काजरी में बेर की नई किस्म 'कश्मीरी एपल' भी तैयार किए जा रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में लाल बेर का स्वाद भी लोग ले सकेंगे. प्रधान वैज्ञानिक पीआर मेघवाल बताते हैं कि बेर ऐसी फसल है जिसे शुरुआत में तीन साल पानी देने के बाद पूरी तरह से बारिश के भरोसे छोड़ दिया जाता है. बारिश के पानी से ही यह फसल आसानी से प्राप्त की जा सकती है. शुष्क क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के लिए बेर की खेती काफी फायदेमंद होती है. काजरी में अब तक 42 किस्म के बेर का उत्पादन किया जा चुका है.

Ber Fruit Of CAZRI
काजरी के गोला बेर

पढ़ें. Red Radish Farming: जोधपुर में पहली बार हुई लाल मूली की खेती, किसान के 4 साल की मेहनत का परिणाम

गोला बेर सबसे पहले पहुंचते हैं बाजार में
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक पीआर मेघवाल की माने तो सामान्यत: बेर की फसल जनवरी से मार्च तक होती है, लेकिन हमारे संस्थान की ओर से तैयार की गई फसल में गोला बेर दिसंबर में ही आने लगती है. बाजार में जो बेर जल्दी आते हैं उसके दाम भी अच्छे मिलते हैं. स्वाद में भी यह गोला बेर बेजोड़ है. इस गोला फल के अलावा सेव, कैथली, छुहारा, दण्डन, उमरान, काठा, टीकड़ी, इलायची और थाई एपल जनवरी से मार्च तक किसान खेतों से उतारकर बाजार में बेचते हैं. वे बताते हैं कि पश्चिमी राजस्थान में एक हजार एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में किसान बेर की खेती करते हैं. इसके अलावा अलवर, जयपुर, अजमेर और अन्य जिलों में भी बेर का उत्पादन किया जा रहा है.

पढ़ें. Organic Farming in Bharatpur: जैविक आंवला और अमरूद स्वाद में लाजवाब के साथ कमाई में भी दमदार, अरब तक हो रही सप्लाई

छोटी जोत के लिए भी लाभदायक
बेर की खेती के लिए काजरी किसानों को प्रोत्साहित करता है. बड़ी जोत वाले खेत के किसानों को अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न किस्म के बेर लगाने के लिए कहा जाता है जिससे अन्य फसलों के साथ इसकी फसल से भी उनको नकदी मिलती रहे. इसके अलावा जिन किसानों के पास छोटे खेत होते हैं उनको बेर के बाग लगाने के लिए कहा जाता है. इसमें 50 से 60 पौधे लगाकर वे सालाना अच्छी फसल ले सकते हैं. इसके अलावा मार्च के बाद पेड़ सूखते नहीं है. इनकी कटाई-छंटाई कर पशुओं के लिए चारा तैयार किया जा सकता है जो काफी लाभदायक होता है.

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लाल बेर भी हो रहीं तैयार

पढ़ें. Special: खराब पैदावार...कम दाम से परेशान किसान, इस बार लहसुन की खेती से हुआ मोह भंग!

मूल प्राकृतिक बेर से नई किस्में
पीआर मेघवाल बताते हैं कि जितनी भी बेर की किस्में विकसित की गई हैं उनके मूल में प्राकृतिक बेर ही है जो खेतों में बिना बोए ही लग जाते हैं. इनको बोवडी कहते हैं. इसमें देसी बेर ही लगते हैं. चूंकि प्राकृतिक बेर शुष्क क्षेत्र में बिना पानी और अत्याधिक तापमान में फलती हैं. उसकी गुठली में से बीज निकालकर मूलवृंत तैयार करते हैं. उसी मूलवृंत से बेर की अन्य किस्में तैयार की जाती हैं जिससे उस किस्म के पेड़ की जडे़ं मजबूत रहें और शुष्क क्षेत्र में आसानी से ये पनप सकें. यह प्रयोग लगातार सफल भी हो रहा है. इसके लिए काजरी में देशी बेर के पौधे भी तैयार होते हैं.

काजरी में बेर की खेती

जोधपुर. केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में इन दिनों बेर की फसल लहलहा रही है. बीते साल अच्छी बारिश के कारण इस बार बेर से लदे पेड़ों की डालें जमीन छू रही हैं. काजरी के वैज्ञानिकों का मानना है कि इस बार संस्थान में अच्छी फसल हुई है, ऐसे में जो किसान बेर की खेती कर रहे हैं उनको मुनाफा भी अच्छा होगा. खास बात यह है कि बेर नगदी फसल है. पेड़ से फल उतरते ही बाजार में बिकने के लिए पहुंच जाते हैं.

खास कर काजरी के गोला बेर की डिमांड सबसे ज्यादा होती है. इसके अलावा इन दिनों काजरी में बेर की नई किस्म 'कश्मीरी एपल' भी तैयार किए जा रहे हैं. ऐसे में आने वाले समय में लाल बेर का स्वाद भी लोग ले सकेंगे. प्रधान वैज्ञानिक पीआर मेघवाल बताते हैं कि बेर ऐसी फसल है जिसे शुरुआत में तीन साल पानी देने के बाद पूरी तरह से बारिश के भरोसे छोड़ दिया जाता है. बारिश के पानी से ही यह फसल आसानी से प्राप्त की जा सकती है. शुष्क क्षेत्रों में रहने वाले किसानों के लिए बेर की खेती काफी फायदेमंद होती है. काजरी में अब तक 42 किस्म के बेर का उत्पादन किया जा चुका है.

Ber Fruit Of CAZRI
काजरी के गोला बेर

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गोला बेर सबसे पहले पहुंचते हैं बाजार में
संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक पीआर मेघवाल की माने तो सामान्यत: बेर की फसल जनवरी से मार्च तक होती है, लेकिन हमारे संस्थान की ओर से तैयार की गई फसल में गोला बेर दिसंबर में ही आने लगती है. बाजार में जो बेर जल्दी आते हैं उसके दाम भी अच्छे मिलते हैं. स्वाद में भी यह गोला बेर बेजोड़ है. इस गोला फल के अलावा सेव, कैथली, छुहारा, दण्डन, उमरान, काठा, टीकड़ी, इलायची और थाई एपल जनवरी से मार्च तक किसान खेतों से उतारकर बाजार में बेचते हैं. वे बताते हैं कि पश्चिमी राजस्थान में एक हजार एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में किसान बेर की खेती करते हैं. इसके अलावा अलवर, जयपुर, अजमेर और अन्य जिलों में भी बेर का उत्पादन किया जा रहा है.

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छोटी जोत के लिए भी लाभदायक
बेर की खेती के लिए काजरी किसानों को प्रोत्साहित करता है. बड़ी जोत वाले खेत के किसानों को अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न किस्म के बेर लगाने के लिए कहा जाता है जिससे अन्य फसलों के साथ इसकी फसल से भी उनको नकदी मिलती रहे. इसके अलावा जिन किसानों के पास छोटे खेत होते हैं उनको बेर के बाग लगाने के लिए कहा जाता है. इसमें 50 से 60 पौधे लगाकर वे सालाना अच्छी फसल ले सकते हैं. इसके अलावा मार्च के बाद पेड़ सूखते नहीं है. इनकी कटाई-छंटाई कर पशुओं के लिए चारा तैयार किया जा सकता है जो काफी लाभदायक होता है.

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लाल बेर भी हो रहीं तैयार

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मूल प्राकृतिक बेर से नई किस्में
पीआर मेघवाल बताते हैं कि जितनी भी बेर की किस्में विकसित की गई हैं उनके मूल में प्राकृतिक बेर ही है जो खेतों में बिना बोए ही लग जाते हैं. इनको बोवडी कहते हैं. इसमें देसी बेर ही लगते हैं. चूंकि प्राकृतिक बेर शुष्क क्षेत्र में बिना पानी और अत्याधिक तापमान में फलती हैं. उसकी गुठली में से बीज निकालकर मूलवृंत तैयार करते हैं. उसी मूलवृंत से बेर की अन्य किस्में तैयार की जाती हैं जिससे उस किस्म के पेड़ की जडे़ं मजबूत रहें और शुष्क क्षेत्र में आसानी से ये पनप सकें. यह प्रयोग लगातार सफल भी हो रहा है. इसके लिए काजरी में देशी बेर के पौधे भी तैयार होते हैं.

Last Updated : Jan 25, 2023, 8:20 PM IST
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