जोधपुर. प्रदेश की सरकार की ओर से खेजड़ी को राज्य वृक्ष का दर्जा दिए हुए 40 वर्ष पूरे हो गए हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार इस कल्पवृक्ष को सिर्फ दर्जा देकर भूल गई है. इसके संरक्षण का कोई प्रयास नहीं हो रहा है. यही कारण है कि दिन प्रतिदिन खेजड़ी की संख्या घटती जा रही है. राज्य वृक्ष घोषित होने के दिवस के मौके पर मंगलवार को खेजड़ी को सहजने की दिशा में काम कर रही संस्था गहरी फाउंडेशन ने खेजड़ी पर एक शार्ट डॉक्यूमेंट्री जारी की. जिसमें बताया गया कि जोधपुर, पाली व बालोतरा के उद्योगों से निकलने वाले रसायनयुक्त विषैले पानी ने खेतों में खड़ी खेजड़ियों को लील लिया है.
फाउंडेशन ने आने वाले समय में पश्चिमी राजस्थान में 5 लाख खेजड़ी वृक्ष लगाने का जिम्मा उठाया है. फाउंडेशन के सीईओ बलदेव गोरा ने बताया कि 31 अक्टूबर, 1983 में खेजड़ी को सरकार ने राज्य वृक्ष के रूप में घोषित किया था. लेकिन यह दुखद विषय है कि जिस खेजड़ी के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन का बलिदान दिया. आज वह वृक्ष अपने असितत्व की लडाई लड़ रहा है. गोरा ने बताया कि उद्योगों के पानी ने मारवाड़ के तीन जिलों में खेजड़ी को सघन नुकसान पहुंचाया है. इसके अलावा फलौदी, जैसलमेर क्षेत्र में लग रहे सोलर प्लांट के चलते खेतों में खड़े लाखों खेजड़ी वृक्षों को काट दिया गया है. सरकार इसको लेकर कोई कदम नहीं उठा रही है.
जुर्माना कठोर करना होगा: संरक्षण क्षेत्र में काम कर रहे भंवर मेघवंशी ने बताया कि जिस तरीके से खेजड़ी की अंधाधुंध कटाई हो रही है. उस पर रोक लगना आवश्यक है. नियमानुसार खेजड़ी काटने के लिए संबधित अधिकारी की मंजूरी चाहिए. लेकिन ऐसा हो नही रहा है. इसे काटने पर जुर्माना और दंड दोनों कठोर होने आवश्यक है. वर्तमान में राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1956 की धारा 84 में वृक्ष काटने पर कोई सजा का प्रावधान नहीं है. राज्य वृक्ष खेजड़ी को काटने पर सिर्फ 100 रुपए जुर्माना वसूला जाता है. दोबारा काटने पर 200 रुपए.