जोधपुर. 22 जनवरी को पीएम नरेंद्र मोदी अयोध्या के नवनिर्मित राम मंदिर में भगवान राम के बाल रूप की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे. इसको लेकर जोरदार तैयारियां की जा रही हैं. मंदिर बनना उन लाखों कार सेवकों का सपना रहा है जो 1990 और 1992 की कार सेवा में अयोध्या गए थे. उनमें से कई ऐसे भी थे जो कभी वापस नहीं आए. उनके प्राणों के बलिदान की बदौलत ही राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त हुआ था. मंदिर के लिए अपने प्राण देने वालों में जोधपुर के मथानियां गांव के 22 साल के सेठाराम परिहार भी थे, जो अयोध्या के लिए गए तो थे, लेकिन कभी लौट कर नहीं आ सके.
साल 1990 का वो दौर था, जब देश में राम मंदिर के लिए भारतीय जनता पार्टी और हिंदू संगठनों की ओर से जबरदस्त आंदोलन चल रहा था. चारों तरफ से लोग कार सेवा के लिए अयोध्या जा रहे थे. तब केंद्र और यूपी सरकार की ओर से अयोध्या जाने वाले रास्तों को बंद कर दिया गया था. सेठाराम परिजनों को बिना बताएं ही अक्टूबर 1990 में अयोध्या के लिए निकले थे. ट्रेनें बंद होने पर वे ट्रक में सवार होकर अपने 21 साथियों के साथ अयोध्या के लिए निकल गए.
परिजनों को दो दिन बाद ही पता चला कि पिता के मना करने के बाद भी सेठाराम अयोध्या चले गए. 4 नवंबर 1990 को उनको गोली लगने की सूचना मिली. उनके मुंह में गोली मारी गई थी, क्योंकि वो उत्साह से नारे लगा रहे थे. उनके साथी रहे कमलदान बताते हैं कि पुलिस अधिक उत्साह दिखाने वालों को टारगेट बना रही थी. 5 नवंबर 1990 को उनका शव मथानियां पहुंचा. अब 33 साल बाद परिहार का सपना सच होने जा रहा है. राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट ने परिहार परिवार को भी इस आयोजन में आमंत्रित करते हुए निमंत्रण पत्र भेजा है.
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समाधी पर आज भी लगता है मेला : उनका परिवार खुश है कि राम मंदिर बन गया है. दुख इस बात का है कि जिसने ये सपना देखा वो आज उनके बीच मौजूद नहीं है. उनके छोटे भाई वीरेंद्र परिहार बताते हैं कि 1990 में जब राम मंदिर के लिए शिलाओं का पूजन चरम पर था तब वह इस काम में लग गए. इस कार्य के लिए वह कई बार दो-दो दिन तक घर नहीं आते थे. अक्टूबर में जब कार सेवा की घोषणा हुई तो पिताजी ने सेठा राम से कहा था कि तुम अयोध्या मत जाना, मेरी तबीयत खराब है, लेकिन वो बिना बताए अयोध्या चले गए. पिताजी को भी तीन दिन बाद पता चला.
उन्होंने बताया कि 2 नवंबर को अयोध्या में गोलीकांड हुआ था. दो दिन बाद गांव के कुछ लोगों की ओर से उन्हें सेठाराम के शहीद होने की सूचना मिली. वीरेंद्र बताते हैं कि वो उस समय दसवीं कक्षा में थे. पांच नवंबर को उनकी पार्थिव देह घर आई. अंतिम संस्कार में पूरा गांव एकत्र हुआ था. आज भी उनकी याद में उनके समाधि स्थल पर मेला लगता है. पूरा गांव उनको सम्मान देता है. उनकी स्मृति में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन भी होता है. उनकी समाधी के समीप ही एक राम मंदिर भी बनाया गया है.
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मां 90 वर्ष की, सपना अयोध्या जाने का : सेठा राम के पुत्र मुकेश बताते हैं कि उनके पिता नहीं रहे, लेकिन उनका आज सपना पूरा होने जा रहा है. 20 नवंबर को हम अयोध्या के लिए जोधपुर से प्रस्थान करेंगे. दादी 90 वर्ष की है. तबीयत खराब रहती है, लेकिन जबसे उन्हें निमंत्रण मिला है. इसके बाद से वो भी अयोध्या दर्शन के लिए लालायित हैं. मुकेश ने बताया कि जब पिता की मृत्यु हुई तो वो सिर्फ 2 साल के थे. थोड़ा बड़ा होने के बाद उन्हें पता चला कि उनके पिता ने राम मंदिर के लिए अपने प्राण दे दिए थे. इसका अभिमान भी होता है. हर साल गांव में जब उनकी तिथि के दिन आयोजन होते हैं, पूरा गांव, वीएचपी और संघ के पदाधिकारी उन्हें सम्मान देते हैं, लेकिन दुख इस बात का है कि पिता आज नहीं हैं.
जोधपुर के दो कार सेवक हुए थे शहीद : जोधपुर जिले से गए कार सेवकों के जत्थे का नेतृत्व जेएनवीयू के प्रो. महेंद्र नाथ अरोड़ा कर रहे थे. दो नवंबर को उनको भी गोली मारी गई थी. प्रो. अरोड़ा और सेठाराम परिहार दोनों के शव साथ ही पहुंचे थे. दोनों परिवार के सदस्यों को अयोध्या में आमंत्रित किया गया है. प्रो. अरोड़ा की पुत्री और परिहार के भाई व पुत्र अयोध्या जायेंगे.