झुंझुनू. खेती में भी अब अनिश्चिचताओं का दौर चल रहा है. कृषि में पहले जैसा मुनाफा नहीं रह गया है. यही कारण है कि किसानों के बच्चों का रुझान भी खेती की तरफ कम होता जा रहा है. हालात यह है कि ज्यादातर किसानों के बेटे खेती नहीं करना चाहते हैं. लेकिन यदि खेती में अच्छा मुनाफा हो तो जरूर किसानों के बच्चों का रुझान खेती की ओर बढ़ेगा. झुंझुनू के एक प्रगतिशील किसान सुमेर सिंह राव ने जब बाग लगाने की सोची तो जरा भी अंदाजा नहीं था कि 1 दिन जैविक कृषि के क्षेत्र में वह अलग पहचान बनाएंगे. इसमें उनके बेटे राकेश कुमार ने भी जब हाथ बंटाना शुरू किया तो उनके बाग सोना उगलने लगे. आज न केवल वे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि खेती से दूर हो रहे लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बन गए हैं.
कृषि तकनीक में बदलाव से बदल रही तस्वीर
युवाओं का कृषि में आना शुभ संकेत है, लेकिन यह बेहद दु:खदाई है कि किसान का बेटा आज खेती नहीं करना चाहता. यहां तक कि खेत में कभी पिता का सहयोग करना भी उसे पसंद नहीं रह गया है. दूसरी तरफ ऐसे कई युवा कर्मठ किसान भी हैं जो कृषि क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा रहे हैं. यही नहीं खेती की नई तकनीक का प्रयोग कर वे अपनी जिंदगी संवार रहे हैं. आज की यह सफलता की कहानी झुंझुनू जिले के घरड़ान कला गांव के रहने वाले युवा प्रगतिशील किसान राकेश कुमार की है जिन्होंने पिता के साथ मिलकर खेती को ही अपने जीवन का आधार बना लिया.
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नौकरी की बजाए चुनी कृषि की राह
राकेश कुमार को खेती-किसानी विरासत में मिली. शिक्षा प्राप्त कर बाहर शहरों में जाकर काम करने की बजाए उन्होंने खेती करना उचित समझा. खेती उन्होंने बचपन से देखी और अपने पिताजी सुमेर सिंह से खेती की प्रमुख बारीकियां भी सीखी. राकेश कुमार ने समन्वित कृषि प्रबंधन की राह चुनी. इन्हें पता था कि परंपरागत खेती अब बीते जमाने की बात हो गई है, इसलिए यदि आमदनी बढ़ानी है तो समन्वित कृषि प्रबंधन के साथ खेती करनी होगी. राकेश कुमार ने सबसे पहले एक बगीचा विकसित किया जिसमें पपीता, नींबू, आंवला और अनार के पौधे लगाए. अपने 2.5 हेक्टेयर क्षेत्र में उन्होंने 300 पौधे मौसमी फल के, 500 पौधे किन्नू के और 200 पौधे संतरे के लगाए. साथ ही चीकू, शहतूत और नारंगी के पौधे भी लगाए.
बगीचे को जैविक माध्यम से तैयार किया. राकेश कुमार की जैविक खेती में बचपन से ही रुचि थी. आज इनका फार्म जैविक खेती के लिए भी एक मॉडल के रूप में विकसित है. इसे देखने राज्य भर से किसान आते रहते हैं. राकेश ने गोबर की खाद एवं जीवामृत का प्रयोग कर उत्कृष्ट बागवानी प्रबंधन से कार्य किया. सालाना आमदनी धीरे-धीरे बढ़ने लगी. पहले साल 5 से 7 लाख आय हुई जबकि दूसरे साल 10 लाख की आमदनी केवल राकेश कुमार फल उत्पादन से हुई.
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इस तरह से होती है आय
समन्वित कृषि प्रबंधन अपनाने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि राकेश कुमार को तीन लाख रुपयों की आय सब्जियों से, ढाई से तीन लाख रुपयों की आमदनी पशुपालन से और तीन लाख रुपयों की आमदनी कृषि के अन्य विभिन्न कार्यों से प्राप्त होने लगी. देखते-देखते राकेश कुमार एक सफल युवा किसान के रूप में स्थापित होने लगे आज पूरे जिले में जैविक फल सब्जी उत्पादन में इनका नाम मशहूर हो रहा है। जैविक खेती में जाना पहचाना नाम बनता जा रहा है जैविक तरीके से अपनी आय को लाखों तक पहुंचाकर आज बेहद खुश और संतुष्ट हैं.
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राकेश कुमार ने बनाया एक पोर्टल
राकेश कुमार ने एक पोर्टल बना रखा है इस पोर्टल के जरिए लोगों को जैविक सब्जियों और दूध, फल और दही की आपूर्ति की जाती है. आसपास के 20 किलोमीटर के दायरे में लोगों को मांग के हिसाब से होम डिलीवरी भी की जा रही है. वे आधुनिक खेती की हर चीज अपना रहे हैं. सोशल मीडिया के जरिए अन्य किसानों के साथ भी जुड़ रहे हैं.
वर्षा जल संरक्षण के लिए भी काम
वर्षा जल संरक्षण के लिए भी इन्होंने अपने फार्म पर नई-नई तकनीकों को स्थापित किया है इन नवाचारों के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा इनके कार्यों की सराहना की गई. देखते ही देखते राकेश कुमार ने समग्र खेती में एक कीर्तिमान स्थापित कर दिया है. समग्र खेती आज की आवश्यकता है. यदि दूसरे युवा किसान भी समग्र खेती के रास्ते पर चलें तो निश्चित रूप से लाभकारी खेती कर सकेंगे.