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स्पेशल : माहवारी के समय बरती जाने वाली सावधानियों और ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल से बचने के लिए किया जागरूक - government school

पिछले साल सुपरस्टार अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन आई थी. जिसने समाज में एक अच्छा संदेश दिया था. सेनेटरी पैड पर अधारित इस फिल्म ने जागरुकता फैलाने का काम किया था. लेकिन आज भी हालात ये है कि इतनी जागरूकता के बाद भी ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां और महिलाएं इसे गंभीरता से नहीं लेती और किसी ना किसी बीमारी का शिकार हो जाती हैं.

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झुंझुनू में ग्रामीण क्षेत्रों में छात्राएं यूज कर रही परंपरागत साधन
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Published : Dec 22, 2019, 2:54 PM IST

झुंझुनू. जिले के एक सरकारी स्कूल में छात्राओं के स्वास्थ्य की जांच की गई. स्कूल में आठवीं से लेकर 12वीं कक्षा तक की छात्राएं अध्ययनरत हैं. जिनकी उम्र बढ़ने के बाद जो या तो पहली बार इस दौर से गुजर रही हैं या यह दौर आने के बाद परेशानी में हैं. स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर स्मिता तोमर ने बताया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्र में कई लड़कियां और महिलाएं माहवारी के दौरान सेनेटरी पैड की जगह परंपरागत रूप से बेकार कपड़े का यूज करती हैं.

झुंझुनू में ग्रामीण क्षेत्रों में छात्राएं यूज कर रही परंपरागत साधन

डॉक्टर स्मिता तोमर ने कहा कि इस तरह कपड़ा यूज करने से कई स्त्रियों में कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही है, त्वचा के रोग हो रहे हैं. यही नहीं उन्होंने कहा कि जब छात्राओं से बात की गई तो इसके बारे में बड़ी छात्राओं से सुनकर छोटी छात्राएं भी भयभीत हो गई. इस दौरान उनका चिकित्सक से एक ही सवाल रहा कि ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए.

ज्यादा मोबाइल यूज करने से होती हैं आंखें खराब

इसके बाद छात्राएं नेत्र चिकित्सक सारिक अग्रवाल से मिली. जहां उन्होंने आंखों से पानी आने की समस्या के बारे में बात की. डॉक्टर ने कहा कि इसका एक मात्र कारण कई घंटों तक मोबाइल का इस्तेमाल करना भी है. डॉक्टर सारिका ने बताया कि यह थोड़ी सुकून की बात है कि गांव का खान-पान थोड़ा ठीक है और इसलिए आंखों में पानी ही आ रहा है, लेकिन यही स्थिति यदि बनी रहे तो आगे जरूर समस्या बढ़ सकती है.

वहीं स्कूल की प्राचार्य ने कहा कि वह छात्राओं की काउंसलिंग कर लेती हैं और कई बार वह छात्राओं का चेहरा देख कर भी समझ लेती हैं कि उन्हें क्या चाहिए. उन्होंने बताया कि नियम तो यह भी है कि यहां पर दो बॉक्स लगे हुए होने चाहिए. जिसमें एक बॉक्स में छात्राएं बिना झिझक के सेनेटरी पैड प्राप्त कर सकें और दूसरे बॉक्स से यूज्ड हुए पैड डाल सकें. उन्होंने कहा कि जल्द ही यहां भी दोनों बॉक्स लगवाए जाएंगे.

यह भी पढ़ें : राज्यपाल कलराज मिश्र आज आएंगे नाथद्वारा, भगवान श्रीनाथजी के करेंगे दर्शन

एक तरफ जहां देश स्वस्थ्य और फिट भारत की कल्पना कर रहा है और सरकार की ओर से तरह-तरह के हेल्थ प्रोग्राम चलाए जा रहे है. ऐसे में आज भी स्त्री रोगों के लिए खुलकर बात नहीं की जाती है. महिलाएं आज भी लाज में रहकर अपनी परेशानियों को बता नहीं पा रही है. ऐसे में समाज और सरकार को मिलकर महिलाओं को जागरुक करने की जरूरत है.

झुंझुनू. जिले के एक सरकारी स्कूल में छात्राओं के स्वास्थ्य की जांच की गई. स्कूल में आठवीं से लेकर 12वीं कक्षा तक की छात्राएं अध्ययनरत हैं. जिनकी उम्र बढ़ने के बाद जो या तो पहली बार इस दौर से गुजर रही हैं या यह दौर आने के बाद परेशानी में हैं. स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर स्मिता तोमर ने बताया कि आज भी ग्रामीण क्षेत्र में कई लड़कियां और महिलाएं माहवारी के दौरान सेनेटरी पैड की जगह परंपरागत रूप से बेकार कपड़े का यूज करती हैं.

झुंझुनू में ग्रामीण क्षेत्रों में छात्राएं यूज कर रही परंपरागत साधन

डॉक्टर स्मिता तोमर ने कहा कि इस तरह कपड़ा यूज करने से कई स्त्रियों में कई तरह की समस्याएं पैदा हो रही है, त्वचा के रोग हो रहे हैं. यही नहीं उन्होंने कहा कि जब छात्राओं से बात की गई तो इसके बारे में बड़ी छात्राओं से सुनकर छोटी छात्राएं भी भयभीत हो गई. इस दौरान उनका चिकित्सक से एक ही सवाल रहा कि ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए.

ज्यादा मोबाइल यूज करने से होती हैं आंखें खराब

इसके बाद छात्राएं नेत्र चिकित्सक सारिक अग्रवाल से मिली. जहां उन्होंने आंखों से पानी आने की समस्या के बारे में बात की. डॉक्टर ने कहा कि इसका एक मात्र कारण कई घंटों तक मोबाइल का इस्तेमाल करना भी है. डॉक्टर सारिका ने बताया कि यह थोड़ी सुकून की बात है कि गांव का खान-पान थोड़ा ठीक है और इसलिए आंखों में पानी ही आ रहा है, लेकिन यही स्थिति यदि बनी रहे तो आगे जरूर समस्या बढ़ सकती है.

वहीं स्कूल की प्राचार्य ने कहा कि वह छात्राओं की काउंसलिंग कर लेती हैं और कई बार वह छात्राओं का चेहरा देख कर भी समझ लेती हैं कि उन्हें क्या चाहिए. उन्होंने बताया कि नियम तो यह भी है कि यहां पर दो बॉक्स लगे हुए होने चाहिए. जिसमें एक बॉक्स में छात्राएं बिना झिझक के सेनेटरी पैड प्राप्त कर सकें और दूसरे बॉक्स से यूज्ड हुए पैड डाल सकें. उन्होंने कहा कि जल्द ही यहां भी दोनों बॉक्स लगवाए जाएंगे.

यह भी पढ़ें : राज्यपाल कलराज मिश्र आज आएंगे नाथद्वारा, भगवान श्रीनाथजी के करेंगे दर्शन

एक तरफ जहां देश स्वस्थ्य और फिट भारत की कल्पना कर रहा है और सरकार की ओर से तरह-तरह के हेल्थ प्रोग्राम चलाए जा रहे है. ऐसे में आज भी स्त्री रोगों के लिए खुलकर बात नहीं की जाती है. महिलाएं आज भी लाज में रहकर अपनी परेशानियों को बता नहीं पा रही है. ऐसे में समाज और सरकार को मिलकर महिलाओं को जागरुक करने की जरूरत है.

Intro:झुंझुनू। आज हम आपको अंधे विकास की एक ऐसी गाथा से रूबरू करवाते हैं जो सीधे-सीधे छात्राओं की अस्मिता से खिलवाड़ है। यह कोई व्यक्ति नहीं कर रहा, कोई समाज नहीं कर रहा, बस केवल समझ की कमी है, केयर नहीं होने और अंधविश्वास से हो रहा है। इसके लिए हम आपको लेकर चलते हैं एक सरकारी स्कूल में जहां निशुल्क स्वास्थ्य शिविर लगा हुआ है स्कूल का नाम हम इसलिए नहीं दे रहे की स्थितियां ग्रामीण क्षेत्रों में एक समान है और इसलिए किसी का नाम देकर उसकी पहचान उजागर करना ठीक नहीं। स्कूल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर स्मिता तोमर छात्रों की जांच कर रही हैं स्कूल में आठवीं से लेकर 12वीं कक्षा तक की छात्राएं जो या तो पहली बार इस दौर से गुजर रही हैं या यह दौर आने के बाद परेशानी में है। आप इनके चेहरे से अंदाज नहीं लगा सकते लेकिन जब डॉक्टर तोमर ने कुरेदा तो पता लगा कि ज्यादातर छात्राएं आज भी सेनेटरी पैड की जगह परंपरागत रूप से किसी कपड़े का यूज करती हैं इस वजह से या तो डायजिन की समस्या हो रही है त्वचा के रोग हो रहे हैं और इस दर्दनाक प्रक्रिया के बारे में बड़ी छात्राओं से सुनकर छोटी छात्राएं भी भयभीत है और वे चिकित्सक से जानना चाहती है कि ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए।


Body:घर में है मोबाइल, कुछ के पास खुद का भी
इसके बाद जब छात्राएं नेत्र चिकित्सक सारिक अग्रवाल से मिलती हैं तो यहां भी एक ही समस्या है कि आंखों से पानी आ रहा है। वजह जानने पर पता लगता है कि या तो परिजनों का या खुद का कई घंटों मोबाइल का इस्तेमाल करती हैं डॉक्टर सारिका बताती है कि यह थोड़ी सुकून की बात है कि गांव का खानपान थोड़ा ठीक है और इसलिए आंखों में पानी ही आ रहा है लेकिन यही स्थिति यदि बनी रहे तो आगे जरूर समस्या बढ़ सकती है।

यह है थोड़ी सुकून की बात
हमने जिस स्कूल में बात की है वहां पर महिला प्राचार्य है और वह छात्राओं से कई बार बात कर लेती है उनकी काउंसलिंग कर लेती है बहुत बार वह छात्राओं का चेहरा देख कर भी समझ लेती है। वह यह भी बताती है कि नियम तो यह भी है कि यहां पर दो बॉक्स लगे हुए होने चाहिए जहां एक बॉक्स में छात्राएं बिना झिझक के सेनेटरी पैड प्राप्त कर सकते हैं तो दूसरे बॉक्स से यूज डाल सकती है मैं पहले जिस स्कूल में थी वहां दोनों बॉक्स लगे हुए थे और यहां पर जल्द ही लगवाए जाएंगे।

बाइट डॉक्टर स्मिता तोमर, स्त्री रोग विशेषज्ञ

डॉक्टर सारिका अग्रवाल, नेत्र रोग विशेषज्ञ

सुमन शेखसरिया, प्राचार्य



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