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स्पेशल रिपोर्ट: शेखावाटी के किसानों के लिए ये सब राम भरोसे, नवंबर की बारिश के बाद मावठ से आस

राजस्थान के शेखावाटी इलाके में नवंबर की बारिश के बाद मावठ की आस रहती है. झुंझुनूं के किसान खेती पर अपनी किस्मत का दांव लगाते है, क्योंकि किसानों के लिए नवंबर का महीना खेती के लिए आशाओं से भरा होता है. अगर नवंबर में बारिश हो गई तो यह किसान खेती के लिए तैयार हो जाते है. देखिए झुंझुनूं से स्पेशल रिपोर्ट

Jhunjhunu farmers, farmers hope for gram crop, शेखावाटी के किसान
शेखावाटी के किसानों की उम्मीदों से भरी आस
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Published : Dec 10, 2019, 10:29 PM IST

झुंझुनूं. पश्चिमी राजस्थान के शेखावाटी के बड़े हिस्से के भूगर्भ में कड़वा पानी है यानी जमीन का पानी निकालकर कोई भी फसल नहीं की जा सकती, और यदि ऐसा किया तो 5 से 7 साल में वो जमीन बंजर हो जाती है. ऐसे में पेट की भूख और परिस्थितियों को यहां के किसानों ने खेती और अपनी मेहनत के फल को किस्मत पर छोड़ दिया है. यहां के किसानों को ऐसी उम्मीद होती है जो नामुमकिन से समान होती है, लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है.

शेखावाटी के किसानों की उम्मीदों से भरी आस

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: मिलिए खेती के 'जादूगर' पद्मश्री जगदीश पारीक से, जिसने धोरों में नामुमकिन को किया मुमकिन

नवंबर की बारिश, फिर मावठ की आस
दरअसल, झुंझुनूं के किसान खेती पर अपनी किस्मत का दांव लगाते है, क्योंकि किसानों के लिए नवंबर का महीना खेती के लिए आशाओं से भरा होता है. अगर नवंबर में बारिश हो गई तो यह किसान खेती के लिए तैयार हो जाता है. वो इस कीमत पर चने की बुवाई करता है कि यदि मावठ हो गई तो उसकी वारै न्यारे हो जाएंगे, और यदि किस्मत ने साथ नहीं दिया तो उसका बीज, उसकी मेहनत और बुआई के लिए ट्रैक्टर या ऊंट वाले को पैसा दिया हुआ भी डूब जाएगा.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: रासायनिक खेती से तौबा! घटती उर्वरक क्षमता से किसान परेशान

एक बीघा में लगता है किसानों का इतना पैसा
अगर किसानों के एक बीघा में लगने वाले पैसे की बात करें तो प्रति बीघा 4 किलो का बीज डालना होगा, यानी 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से 4 बीघा में 200 रुपए का खर्चा आ जाएगा. इसके अलावा जमीन से पानी को उड़ने से रोकना के लिए 200 रुपए प्रति बीघा का खर्चा आता है. वही करीब ₹200 बीघा बुवाई का खर्चा भी आता है यानी ₹600 बुवाई के वक्त ही खर्चा आ जाना है. वहीं इसके बाद निराई गुड़ाई आदि किसान खुद मेहनत करता है. अब यदि मावठ आ जाती है तो इसके बाद किसान के चेहरे खिल जाते हैं, क्योंकि तब प्रति बीघा करीब 4 मण यानी डेढ क्विंटल चने की बोरी हो जाती है. अब यदि 6000 रुपए भी भाव मिल जाए तो उसे करीब ₹9000 मिल जाते हैं. उसको प्रति बीघा पर बीज निकलवाने के लिए ट्रैक्टर वाले आदि को मिलाकर करीब हजार रुपए का खर्चा आ जाता है और किसान को हजारों रुपए खर्च कर 9 गुना पैसा मिल जाता है.

पढ़ें- 'खेतों ने ओढ़ी पीली चादर'...भीलवाड़ा जिले के किसानों के चेहरे खिले

शेखावाटी में मावठ की बारिश की संभावना 30%
ऐसे में झुंझुनूं के किसानों के लिए ये सब राम भरोसे ही है, क्योंकि एक तो नवंबर में बारिश आनी चाहिए. इसके बाद सब तैयार करने के बाद मावठ यानी सर्दी में एक बारिश नहीं आई तो उनकी फसल तिल-तिल पहले मुरझाते हुए, बाद में जमीन से उखड़ते हुए देखता है और इस पर उसका कोई बस नहीं होता है. अब यदि मावठ की शेखावाटी में बात की जाए तो इसकी संभावना 30% ही रहती है.

झुंझुनूं. पश्चिमी राजस्थान के शेखावाटी के बड़े हिस्से के भूगर्भ में कड़वा पानी है यानी जमीन का पानी निकालकर कोई भी फसल नहीं की जा सकती, और यदि ऐसा किया तो 5 से 7 साल में वो जमीन बंजर हो जाती है. ऐसे में पेट की भूख और परिस्थितियों को यहां के किसानों ने खेती और अपनी मेहनत के फल को किस्मत पर छोड़ दिया है. यहां के किसानों को ऐसी उम्मीद होती है जो नामुमकिन से समान होती है, लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है.

शेखावाटी के किसानों की उम्मीदों से भरी आस

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: मिलिए खेती के 'जादूगर' पद्मश्री जगदीश पारीक से, जिसने धोरों में नामुमकिन को किया मुमकिन

नवंबर की बारिश, फिर मावठ की आस
दरअसल, झुंझुनूं के किसान खेती पर अपनी किस्मत का दांव लगाते है, क्योंकि किसानों के लिए नवंबर का महीना खेती के लिए आशाओं से भरा होता है. अगर नवंबर में बारिश हो गई तो यह किसान खेती के लिए तैयार हो जाता है. वो इस कीमत पर चने की बुवाई करता है कि यदि मावठ हो गई तो उसकी वारै न्यारे हो जाएंगे, और यदि किस्मत ने साथ नहीं दिया तो उसका बीज, उसकी मेहनत और बुआई के लिए ट्रैक्टर या ऊंट वाले को पैसा दिया हुआ भी डूब जाएगा.

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एक बीघा में लगता है किसानों का इतना पैसा
अगर किसानों के एक बीघा में लगने वाले पैसे की बात करें तो प्रति बीघा 4 किलो का बीज डालना होगा, यानी 50 रुपए प्रति किलो के हिसाब से 4 बीघा में 200 रुपए का खर्चा आ जाएगा. इसके अलावा जमीन से पानी को उड़ने से रोकना के लिए 200 रुपए प्रति बीघा का खर्चा आता है. वही करीब ₹200 बीघा बुवाई का खर्चा भी आता है यानी ₹600 बुवाई के वक्त ही खर्चा आ जाना है. वहीं इसके बाद निराई गुड़ाई आदि किसान खुद मेहनत करता है. अब यदि मावठ आ जाती है तो इसके बाद किसान के चेहरे खिल जाते हैं, क्योंकि तब प्रति बीघा करीब 4 मण यानी डेढ क्विंटल चने की बोरी हो जाती है. अब यदि 6000 रुपए भी भाव मिल जाए तो उसे करीब ₹9000 मिल जाते हैं. उसको प्रति बीघा पर बीज निकलवाने के लिए ट्रैक्टर वाले आदि को मिलाकर करीब हजार रुपए का खर्चा आ जाता है और किसान को हजारों रुपए खर्च कर 9 गुना पैसा मिल जाता है.

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शेखावाटी में मावठ की बारिश की संभावना 30%
ऐसे में झुंझुनूं के किसानों के लिए ये सब राम भरोसे ही है, क्योंकि एक तो नवंबर में बारिश आनी चाहिए. इसके बाद सब तैयार करने के बाद मावठ यानी सर्दी में एक बारिश नहीं आई तो उनकी फसल तिल-तिल पहले मुरझाते हुए, बाद में जमीन से उखड़ते हुए देखता है और इस पर उसका कोई बस नहीं होता है. अब यदि मावठ की शेखावाटी में बात की जाए तो इसकी संभावना 30% ही रहती है.

Intro:झुंझुनू। पश्चिमी राजस्थान का एक हिस्सा शेखावाटी एक समय मरुस्थलीय पट्टी है और इसका एक बड़े हिस्से के भूगर्भ में कड़वा पानी है यानी जमीन का पानी निकालकर कोई भी फसल नहीं की जा सकती और यदि ऐसा किया तो पांच 7 साल में उनकी जमीन बंजर हो जाती है। ऐसे में पेट की भूख और परिस्थितियों ने यहां के किसानों को जुआरी बना दिया है जैसे किसी के लिए चुनाव जुआ खेलने का वक्त होता है, तो किसी के क्रिकेट का मैच, लेकिन इन किसानों के लिए नवंबर का अंतिम माह जुआ खेलने का वक्त होता है। यदि नवंबर में बारिश हो गई तो यह किसान जुआ खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं वो इस कीमत पर चने की बुवाई करता है कि यदि मावठ हो गई तो उसकी बल्ले बल्ले हो जाएगी और यदि किस्मत ने साथ नहीं दिया तो उसका बीज, उसकी मेहनत और बुआई के लिए ट्रैक्टर या उंंट वाले को पैसा दिया हुआ भी डूब जाएगा।


Body:एक बीघा में पड़ता है इतना पैसा
ऐसे में किसान को यदि यह जुआ खेलना है तो उसे प्रति बीघा 4 किलो का बीज डालना होगा, यानी ₹50 प्रति किलो के हिसाब से 4 बीघा में ₹200 का खर्चा आ जाएगा। इसके बाद क्योंकि जमीन से पानी को उड़ने से रोकना है तो उसमें मेद यानी पूरी तरह से लकड़ी के बड़े पट्टे से जमाया जाता है इसमें भी ₹200 प्रति बीघा का खर्चा आता है वही करीब ₹200 बीघा बुवाई का खर्चा भी आता है यानी ₹600 बुवाई के वक्त ही खर्चा आ जाना है। वहीं इसके बाद निराई गुड़ाई आदि किसान खुद मेहनत करता है अब यदि मावठ आ जाती है तो इसके बाद किसान के चेहरे खिल जाते हैं क्योंकि तब प्रति बीघा करीब 4 मण यानी डेढ कि्वंटल चने की बोरी हो जाती है अब यदि 6000 भी भाव मिल जाए तो उसे करीब ₹9000 मिल जाते हैं। उसको प्रति बीघा पर बीज निकलवाने के लिए ट्रैक्टर वाले आदि को मिलाकर करीब हजार रुपए का खर्चा आ जाता है और किसान को हजारों रुपए खर्च कर 9 गुना पैसा मिल जाता है।

बारिश नहीं हो तो डूब गया सब

अब इसमें किसान के लिए जुआ इसलिए है कि एक तो नवंबर में बारिश आनी चाहिए इसके बाद सब तैयार करने के बाद मावठ यानी सर्दी में एक बारिश नहीं आई तो वह तिल तिल पहले मुरझाते हुए, बाद में जमीन से उखड़ ते हुए देखता है और इस पर उसका कोई बस नहीं होता है अब यदि मावठ की शेखावाटी में बात की जाए तो इसकी संभावना 30% ही रहती है।

बाइट नथुराम खिचड़ किसान


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