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स्पेशलः चिड़ावा का पेड़ा...जिसका स्वाद एक ब्रांड बन गया है

शेखावाटी का इलाका सेठ-साहूकारों के लिए प्रसिद्ध रहा है. सदियों से यहां के सेठ व्यापार के लिए दूर परदेस जाते रहे हैं. रास्ते के लिए उन्हें खाने-पीने की ऐसी चीजों की जरूरत होती थी. जो लम्बे समय तक खराब न हों. इसी जरूरत ने जिस मिठाई को इजाद किया, वह थी पेड़ा. अब चिड़ावा का पेड़ा विश्व प्रसिद्ध है और सालासर बालाजी के प्रसाद के तौर पर पहचान रखता है. यहां का दो आंख का पेड़ा अपने स्वाद के कारण प्रसिद्ध है.

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चिड़ावा का दो आंख वाला पेड़ा
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Published : Nov 10, 2020, 11:39 AM IST

झुंझुनूं (चिड़ावा). देशभर के कई बड़े उद्योगपतियों का मूल रूप से ताल्लुक शेखावाटी के इलाके से रहा है. इस फेहरिस्त में बिड़ला, सिंघानिया, जेके मोदी, रूहिया, खंडेला, पोद्दार, कनोडिया, मित्तल, डालमिया, पिरामल, रुंगटा जैसे घरानों का नाम लिया जा सकता है. यहां के सेठ सदियों से व्यापार के लिए लंबी यात्राएं करते रहे हैं, ऐसे में खाने के लिए उन्हें ऐसी चीज की जरूरत होती थी जो लंबे समय तक बिना खराब हुए काम में आ सके और जिसे आसानी से ले जाएगा सके. इसलिए वे दूध को गाढ़ा कर उसमें चीनी मिलाकर ठोस होने तक गर्म करते थे.बाद में यही मिठाई पेड़े के रूप में प्रसिद्ध हो गयी. विशेषकर चिड़ावा कस्बे में ये खास मिठाई यानी बनने लगा। आज चिड़ावा के ये स्पेशल पेड़े अपने आप में एक ब्रांड हैं.

चिड़ावा के प्रसिद्ध पेड़े

पढ़े- सीकरः खाटूश्यामजी के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की सोनोग्राफी मशीन हुई ठीक, सवा साल से पड़ी थी खराब

एक सदी से ज्यादा पुराना पारंपरिक स्वाद...

झुंझुनू जिले के चिड़ावा क्षेत्र में कोई मिठाई अगर बड़े ही प्यार और आग्रह से खिलाई जाती है तो वह है पेड़ा. अक्सर रोते हुए बच्चों को खुश करने के लिए भी यहां पेड़े का नाम ही लिया जाताा है. प्रसिद्धि में चिड़ावा का पेड़ा मथुरा के पेड़ों से होड़ करता है. अगर आप झुंझुनू आए हैं या यहां से होकर गुजर रहे हैं तो कई लोग आपको चिड़ावा का पेड़ा लाने की फरमाइश कर ही देते हैं. लोगों का कहना है कि यूं तो पेड़ा इलाके में सेठ-साहूकारों की यात्राओं के समय से यानी एक सदी से ज्यादा वक्त से बनाया जाता है. लेकिन कारोबार के तौर पर चिड़ावा में यह आजादी से लगभग दो दशक पहले शुरू हुआ. अस्सी के दशक में पेड़े का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ा और 21वीं सदी आते-आते तो यह बड़ा करोबार बन गया. शुरू में यहां एक दो दुकानें और गिनती के बनाने वाले होते थे लेकिन अपने स्वाद और अनूठी बनावट यानी अंगूठे के निशान के कारण यह लोकल ब्रांड बन गया है. चिड़ावा के पेड़ों का सालाना करोबार करीब 40 करोड का है. सीधे तौर पर इस व्यवसाय से लगभग 5 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है.

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चिड़ावा का दो आंख का पेड़ा

पढ़ें - बीकानेर: त्योहारी सीजन में मिलावटी मावे के खिलाफ बड़ी कार्रवाई, पांच हजार क्विंटल मावा जब्त

पेड़े पर अंगूठे-अंगुली का निशान खास पहचान...

दूध से मावा निकालने, उसकी सिकाई और चीनी मिलाकर होने वाली घुटाई के अलावा क्षेत्र की जलवायु भी चिड़ावा के दो आंख वाले पेड़े को स्वादिष्ट बनाती है. पेड़े के कारोबार से जुड़े शहर के पुराने मिठाई विक्रेता बताते हैं कि स्वाद के मामले में चिड़ावा का पेड़ा बीकानेरी भुजिया की तरह फेमस है.

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पेड़ा तैयार करते हलवाई

स्वाद ऐसा कि विदेशों में भी मांग...

अपने उम्दा स्वाद के लिए ख्यातनाम चिड़ावा के पेड़े शहर से बाहर भी भेजे जा रहे हैं. हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी, एमपी, असम, बिहार, उत्तरांचल, कर्नाटक एवं अन्य राज्यों से मिलने वाले सवामणी प्रसाद ऑर्डर पर शहर के मिठाई विक्रेता पेड़ों की नियमित सप्लाई दे रहे हैं. इसके अलावा नेपाल, बैंकाक और खाड़ी देशों में भी इनकी डिमांड है.

झुंझुनूं (चिड़ावा). देशभर के कई बड़े उद्योगपतियों का मूल रूप से ताल्लुक शेखावाटी के इलाके से रहा है. इस फेहरिस्त में बिड़ला, सिंघानिया, जेके मोदी, रूहिया, खंडेला, पोद्दार, कनोडिया, मित्तल, डालमिया, पिरामल, रुंगटा जैसे घरानों का नाम लिया जा सकता है. यहां के सेठ सदियों से व्यापार के लिए लंबी यात्राएं करते रहे हैं, ऐसे में खाने के लिए उन्हें ऐसी चीज की जरूरत होती थी जो लंबे समय तक बिना खराब हुए काम में आ सके और जिसे आसानी से ले जाएगा सके. इसलिए वे दूध को गाढ़ा कर उसमें चीनी मिलाकर ठोस होने तक गर्म करते थे.बाद में यही मिठाई पेड़े के रूप में प्रसिद्ध हो गयी. विशेषकर चिड़ावा कस्बे में ये खास मिठाई यानी बनने लगा। आज चिड़ावा के ये स्पेशल पेड़े अपने आप में एक ब्रांड हैं.

चिड़ावा के प्रसिद्ध पेड़े

पढ़े- सीकरः खाटूश्यामजी के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की सोनोग्राफी मशीन हुई ठीक, सवा साल से पड़ी थी खराब

एक सदी से ज्यादा पुराना पारंपरिक स्वाद...

झुंझुनू जिले के चिड़ावा क्षेत्र में कोई मिठाई अगर बड़े ही प्यार और आग्रह से खिलाई जाती है तो वह है पेड़ा. अक्सर रोते हुए बच्चों को खुश करने के लिए भी यहां पेड़े का नाम ही लिया जाताा है. प्रसिद्धि में चिड़ावा का पेड़ा मथुरा के पेड़ों से होड़ करता है. अगर आप झुंझुनू आए हैं या यहां से होकर गुजर रहे हैं तो कई लोग आपको चिड़ावा का पेड़ा लाने की फरमाइश कर ही देते हैं. लोगों का कहना है कि यूं तो पेड़ा इलाके में सेठ-साहूकारों की यात्राओं के समय से यानी एक सदी से ज्यादा वक्त से बनाया जाता है. लेकिन कारोबार के तौर पर चिड़ावा में यह आजादी से लगभग दो दशक पहले शुरू हुआ. अस्सी के दशक में पेड़े का स्वाद लोगों की जबान पर चढ़ा और 21वीं सदी आते-आते तो यह बड़ा करोबार बन गया. शुरू में यहां एक दो दुकानें और गिनती के बनाने वाले होते थे लेकिन अपने स्वाद और अनूठी बनावट यानी अंगूठे के निशान के कारण यह लोकल ब्रांड बन गया है. चिड़ावा के पेड़ों का सालाना करोबार करीब 40 करोड का है. सीधे तौर पर इस व्यवसाय से लगभग 5 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है.

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पेड़े पर अंगूठे-अंगुली का निशान खास पहचान...

दूध से मावा निकालने, उसकी सिकाई और चीनी मिलाकर होने वाली घुटाई के अलावा क्षेत्र की जलवायु भी चिड़ावा के दो आंख वाले पेड़े को स्वादिष्ट बनाती है. पेड़े के कारोबार से जुड़े शहर के पुराने मिठाई विक्रेता बताते हैं कि स्वाद के मामले में चिड़ावा का पेड़ा बीकानेरी भुजिया की तरह फेमस है.

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पेड़ा तैयार करते हलवाई

स्वाद ऐसा कि विदेशों में भी मांग...

अपने उम्दा स्वाद के लिए ख्यातनाम चिड़ावा के पेड़े शहर से बाहर भी भेजे जा रहे हैं. हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, यूपी, एमपी, असम, बिहार, उत्तरांचल, कर्नाटक एवं अन्य राज्यों से मिलने वाले सवामणी प्रसाद ऑर्डर पर शहर के मिठाई विक्रेता पेड़ों की नियमित सप्लाई दे रहे हैं. इसके अलावा नेपाल, बैंकाक और खाड़ी देशों में भी इनकी डिमांड है.

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