झुंझुनू. साल 2018 के चुनाव में जिले की सात सीटों में से 6 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हुआ था. ऐसे में यह चुनाव कांग्रेस के लिए अपनी साख बचाने की चुनौती जैसा होगा. यहां भाजपा के लिए खोने को कुछ नहीं है, क्योंकि पिछले चुनाव में पार्टी को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था. इस बार भाजपा पूरे दमखम के साथ उतरी है. पार्टी जिले में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने का प्रयास करती दिख रही है.
दरअसल, झुंझुनू की 7 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. इनमें से 6 सीटें जाट बाहुल्य हैं. खेतड़ी में गुर्जरों की संख्या अधिक है तो पिलानी की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. तीन सीट मंडावा, सूरजगढ़ और नवलगढ़ पर कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर दिख रही है. वहीं, कुछ सीटों पर त्रिकोणीय समीकरण बन रहे हैं, जिनमें झुंझुनू, उदयपुरवाटी, पिलानी और खेतड़ी सीटें हैं. झुंझुनू में बागी राजेन्द्र सिंह भामू, उदयपुरवाटी में शिवसेना शिंदे गुट से राजेन्द्र सिंह गुढ़ा और खेतड़ी से बसपा के मनोज घुमडिया ने चुनाव को त्रिकोणीय बना रखा है, जबकि पिलानी से पूर्व प्रधान और भाजपा के कद्दावर एससी नेता सुन्दरलाल काका के पुत्र कैलाश मेघवाल ने ताल ठोककर त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी.
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यह हैं झुंझुनू के हालात : विधानसभा चुनाव 2018 में जिले की कुल 7 सीटों में से कांग्रेस के खाते में 4, भाजपा के 2 और बसपा के खाते में एक सीट गई थी, लेकिन बाद में परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि भाजपा केवल एक सीट पर ही सिमट गई. दरअसल, मंडावा से जीते हुए प्रत्याशी नरेन्द्र खीचड़ को पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उतार दिया था. वे जीतकर सांसद बन गए थे. ऐसे में यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने ये सीट जीत ली. इसके बाद उदयपुरवाटी से बसपा की सीट पर जीते राजेन्द्र सिंह गुढ़ा भी कांग्रेस में चले गए और इस तरह कांग्रेस के पास 7 में से 6 सीटें रह गईं. वहीं, भाजपा के पास केवल एक मात्र सूरजगढ़ की सीट बची.
कांग्रेस का गढ़ रहा है झुंझुनू : दरअसल, झुंझुनू का इलाका जाट बाहुल्य क्षेत्र है. इस क्षेत्र में कांग्रेस को भारी तादाद में वोट मिलते हैं. कांग्रेस की ओर से भूमि सुधार कानून लागू करने से किसानों और विशेषकर जाटों को जमीनों का मालिकाना हक मिला. ऐसे में सदा से ही यहां के लोगों की कांग्रेस से सहानुभूति रही. वहीं, भाजपा की केन्द्र सरकार के दौरान जाटों को आरक्षण देने के बाद से यहां भाजपा से भी लोग जुड़ने लगे. इस चुनाव में स्थितियां ऐसी देखी जा रही हैं कि दोनों पार्टियों में बराबर की टक्कर है. वहीं, एक समय एक जाति विशेष का बसपा से भी जुड़ाव हुआ करता था. अब जाति विशेष के लोगों का भी बसपा से मोहभंग हो गया और अब वे कांग्रेस या भाजपा पार्टी को ही वोट करने लगे हैं.