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नवलगढ़ के प्रसिद्ध गोपीनाथ मंदिर में मनाया गया जन्माष्टमी का पर्व

झुंझुनूं के नवलगढ़ के मुख्य बाजार के बीचों-बीच ठाकुर नवल सिंह का बनवाया हुआ गोपीनाथ जी का प्राचीन मंदिर स्थित है. जन्माष्टमी पर्व पर गोपीनाथ मंदिर में कस्बे के अलावा 25-30 किलोमीटर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं.

Gopinath Temple of Nawalgarh, जन्माष्टमी न्यूज
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Published : Aug 24, 2019, 10:25 PM IST

झुंझुनूं. जिले के नवलगढ़ कस्बे के मेन बाजार के बीचों-बीच गोपीनाथ जी का मंदिर स्थित है. जन्माष्टमी का पर्व यहां बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. इस मंदिर में कस्बे के अलावा 25-30 किलोमीटर दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में यहां धार्मिक आयोजन होते हैं.

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नवलगढ़ के आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्ध ये गोपीनाथ जी का मंदिर काफी प्राचीन है. ठाकुर नवलसिंह ने नवलगढ़ बसाना शुरू किया था तो कस्बे के बीच में गोपीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर निर्माण के समय को लेकर प्रामाणिक जानकारी नहीं है, लेकिन ठाकुर नवलसिंह के पड़पोते देवेंद्र सिंह बताते हैं कि लगभग 1737 ई. में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. मंदिर में पूजा-पाठ का काम स्वामी लक्ष्मणदास को सौंपा गया था. इस संबंध में एक पत्र की प्रतिलिपि नवलगढ़ के पुरालेखागार में मिलती है, जो संवत 1812 विक्रमी की लिखी गई है.

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गोपीनाथ जी के भोग और पूजा-पाठ की सामग्री के खर्चे के लिए आय के स्रोत भी निर्धारित किए गए थे. रोजाना झुंझुनूं की जकात चौकी से ठाकुर नवलसिंह के हिस्से की आय में से एक रुपया और नवलगढ़ की चौकी से एक कौड़ी रोज मंदिर के कोष में जमा की जाती थी. इसके साथ ही कस्बे के वैश्य समाज की पुत्रियों के विवाह के उपलक्ष्य में 11 रुपए और पुत्रों के विवाह के समय एक नारियल भेंट चढ़ाने का रिवाज था.

नवलगढ़ के प्रसिद्ध गोपीनाथ मंदिर में रोजाना जमा होता था एक रुपया और एक कौड़ी

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प्राचीन गोपीनाथ मंदिर के पुजारी रिछपाल रूंथला ने बताया कि स्थापना समय के बाद से आजतक मंदिर के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया. हर साल जन्माष्टमी के मौके पर मंदिर में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसमें पूरे कस्बे के श्रद्धालु उमड़ते हैं. भगवान को भोग लगाने के बाद मध्यरात्रि को भगवान के जन्म के बाद मंदिर में प्रसाद बांटा जाता है.

झुंझुनूं. जिले के नवलगढ़ कस्बे के मेन बाजार के बीचों-बीच गोपीनाथ जी का मंदिर स्थित है. जन्माष्टमी का पर्व यहां बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. इस मंदिर में कस्बे के अलावा 25-30 किलोमीटर दूर से लोग दर्शन करने आते हैं. सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में यहां धार्मिक आयोजन होते हैं.

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नवलगढ़ के आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्ध ये गोपीनाथ जी का मंदिर काफी प्राचीन है. ठाकुर नवलसिंह ने नवलगढ़ बसाना शुरू किया था तो कस्बे के बीच में गोपीनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था. इस मंदिर निर्माण के समय को लेकर प्रामाणिक जानकारी नहीं है, लेकिन ठाकुर नवलसिंह के पड़पोते देवेंद्र सिंह बताते हैं कि लगभग 1737 ई. में इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. मंदिर में पूजा-पाठ का काम स्वामी लक्ष्मणदास को सौंपा गया था. इस संबंध में एक पत्र की प्रतिलिपि नवलगढ़ के पुरालेखागार में मिलती है, जो संवत 1812 विक्रमी की लिखी गई है.

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गोपीनाथ जी के भोग और पूजा-पाठ की सामग्री के खर्चे के लिए आय के स्रोत भी निर्धारित किए गए थे. रोजाना झुंझुनूं की जकात चौकी से ठाकुर नवलसिंह के हिस्से की आय में से एक रुपया और नवलगढ़ की चौकी से एक कौड़ी रोज मंदिर के कोष में जमा की जाती थी. इसके साथ ही कस्बे के वैश्य समाज की पुत्रियों के विवाह के उपलक्ष्य में 11 रुपए और पुत्रों के विवाह के समय एक नारियल भेंट चढ़ाने का रिवाज था.

नवलगढ़ के प्रसिद्ध गोपीनाथ मंदिर में रोजाना जमा होता था एक रुपया और एक कौड़ी

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प्राचीन गोपीनाथ मंदिर के पुजारी रिछपाल रूंथला ने बताया कि स्थापना समय के बाद से आजतक मंदिर के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया. हर साल जन्माष्टमी के मौके पर मंदिर में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसमें पूरे कस्बे के श्रद्धालु उमड़ते हैं. भगवान को भोग लगाने के बाद मध्यरात्रि को भगवान के जन्म के बाद मंदिर में प्रसाद बांटा जाता है.

Intro:नवलगढ़ की बसावट से पहले बना गोपीनाथ जी का मंदिर

नवलगढ़(झुंझुनूं):- मुख्य बाजार के बीचों बीच बना हुआ है नवलगढ़ का सबसे प्राचीन गोपीनाथ जी का मंदिर. नवलगढ़ कस्बे की स्थापना के समय ठाकुर नवलसिंह ने अपने वंश की परंपरा का निर्वहन करते हुए इस मंदिर की स्थापना की. आज इस मंदिर के चारों ओर नवलगढ़ कस्बा बसा हुआ है. आज हर तरफ कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है, लेकिन गोपीनाथ जी के मंदिर में रोनक ही निराली है. नवलगढ़ कस्बे के अलावा आसपास के 25-30किमी. से लोग सुबह से भगवान के दर्शन करने पहुंचने लगे हैं. मन में मन्नत लिए भक्तों का जमावड़ा लग जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में हर तरफ आधुनिक आयोजन होने लगे हैं. लेकिन गोपीनाथ जी मंदिर का पारंपरिक तरीका आज भी आमजन की आस्था का अनुपम केंद्र हैं.Body:
ठाकुर नवलसिंह ने गढ़ की नींव डालकर "नवलगढ़" कस्बा बसाना शुरू किया तो उस कस्बे के बीच बाजार में गोपीनाथजी का मंदिर बनवाया. इस तरह उन्होंने अपनी वंश परम्परा का पालन किया, जिसके तहत किसी भी नगर या कस्बे की स्थापना से पहले ठाकुर जी को विराजने की रिवायत थी. मंदिर का निर्माण कब शुरू हुआ, इस बारे में तो कोई ठोस जानकारी नहीं है. लेकिन संस्थापक ठाकुर नवलसिंह के पड़पौत्र देवेंद्रसिंह ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण लगभग सन् 1737 में करवाया गया था. मंदिर का काम पूरा होने के बाद गोपीनाथ जी का सेवाकार्य व पूजा-अर्चना का दायित्व स्वामी लक्ष्मणदास के सुपुर्द किया गया. इस संबंद में एक पत्र की प्रतिलिपि ठिकाना नवलगढ़ के पुरालेखागार में मिलती है, जो संवत 1812 विक्रमी में लिखा हुआ है. ठाकुरजी के भोग सामग्री के खर्चे के हेतु आय के स्रोत भी निर्धारित किए गए। रोजाना झुंझुनूं की जकात चौकी से ठाकुर नवलसिंह के हिस्से की आय में से एक रुपया और नवलगढ़ की चौकी से एक कौड़ी रोज मंदिर के कोष में जमा की जाती थी। कस्बे के वैश्य समाज की पुत्रियों के विवाह के उपलक्ष्य में 11 रुपए तथा पुत्रों के विवाह के समय एक नारियल भेंट चढ़ाने का रिवाज था।


प्राचीन गोपीनाथ मंदिर के पुजारी रिछपाल रूंथला ने बताया कि स्थापना समय के बाद से आजतक मंदिर के मूल स्वरुप में‌ कोई बदलाव नहीं किया गया। हर साल जन्माष्टमी के मौके पर मंदिर में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जिसमें पूरे कस्बे के श्रद्धालु उमड़ते हैं. भगवान को भोग लगाने के बाद मध्यरात्रि में भगवान के जन्म के बाद प्रसाद बांटा जाता है.

बाइट:- महेंद्र सर्राफ, निवासी, नवलगढ़
पीटीसी:- स्वप्निल सक्सेना, संवाददाताConclusion:
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