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भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा रवाना, 7 मार्च को खाटू के मुख्य मंदिर पर चढ़ेगा निशान

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Published : Mar 2, 2020, 7:22 PM IST

झुंझुनू के सूरजगढ़ में सोमवार को प्राचीन श्याम मंदिर से भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा पूरे धूमधाम से निकाली गई. निशान पदयात्रा का कस्बे और आसपास के ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह पुष्पवर्षा और माल्यार्पण कर जोरदार स्वागत किया गया. वहीं इस दौरान पदयात्रा में श्रद्धालु बैंड-बाजे की धुनों पर नाचते-गाते हुए चल रहे थे.

Nishan sangh Padyatra, निशान संघ पदयात्रा
भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा रवाना

सूरजगढ़ (झुंझुनू). पुरे भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा सोमवार को जिले के सूरजगढ़ कस्बे के प्राचीन श्याम मंदिर से खूब धाम के साथ रवाना हुई. बता दें कि पिछले कुछ दिनों से श्याम के रंग में रंगा नजर आने वाला कस्बा सोमवार को पूरी तरह श्याम रंग में ही रंगा नजर आया.

भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा रवाना

आचार्य अभिषेक चौमाल के आचार्यत्व में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद महंत मनोहरलाल सैनी के सानिध्य में नत्थूराम, पूर्णमल, बजरंगलाल, निशानधारी जयसिंह के नेतृत्व में हजारों पदयात्रियों का जत्था मंदिर परिसर से खाटूधाम के लिए रवाना हुआ.

पढ़ेंः जयपुर सिलेंडर ब्लास्ट : हादसे में 2 की मौत और एक घायल, ताड़केश्वर महादेव मंदिर की दीवारों में आई दरारें

प्राचीन श्याम मंदिर से निकले जत्थे के साथ-साथ सम्पूर्ण कस्बा श्याम रंग में ही रंगा नजर आया. निशान पदयात्रा में आगे-आगे हनुमान की ध्वजा के साथ महिलाएं सर पर सिगड़ी धारण कर आगे-आगे भजन गाते हुए चल रही थी. वहीं इस दौरान पदयात्रा में श्रद्धालु बैंड-बाजे की धुनों पर नाचते-गाते हुए चल रहे थे.

निशान पदयात्रा का कस्बे और आसपास के ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह पुष्पवर्षा और माल्यार्पण कर जोरदार स्वागत किया गया. पदयात्रा सुल्ताना, गुढ़ा, उदयपुरवाटी, गुरारा होते हुए 5 मार्च को खाटू पहुंचेगी. जहां दो दिन तक धर्मशाला में निशान की पूजा-अर्चना के बाद 7 मार्च को द्वादशी को बाबा के मंदिर पर निशान चढ़ाया जाएगा. पदयात्रा में कई श्रद्धालु ऐसे भी है, जिनकी चार पीढ़िया तक इस पदयात्रा में भाग लेकर पुण्य की भागी बन चुकी है.

पढ़ेंः महिला दिवस विशेष : मैला ढोने वाली उषा ने अपने जैसी 150 महिलाओं की जिंदगी 'जन्नत' बना दी

सूरजगढ़ फाल्गुन मास में श्याम बाबा के मंदिर में देश भर से लाखों निशान आते हैं, लेकिन जो महत्व और सम्मान सूरजगढ़ के निशान को मिलता है. वो किसी दूसरे निशान को नहीं मिलता है. सूरजगढ़ निशान ही बाबा श्याम के शिखरबंद के गुंबद पर चढ़ता है. यही कारण है कि इस निशान की कस्बे ही नहीं पूरे देश में विशेष मान्यता रहती है. जिस वजह से इस निशान पदयात्रा में देश भर के कोने-कोने से हजारों किलोमीटर दूर से आए श्रद्धालु भी इस पदयात्रा में भाग लेकर पुण्य का लाभ उठाते हैं.

सूरजगढ़ के निशान को विशेष मान्यता क्यों ?

इस पर भी जुड़ा एक प्रसंग है. बताया जाता है कि करीब 100 वर्ष पहले जब देश में ब्रिटिश हुकूमत का शासन हुआ करता था. उस दौरान अंग्रेज हुकूमत ने खाटू के श्याम मंदिर में बड़ा सा ताला लगाकर इसके पट बंद करवा दिए थे और ऐलान किया था जो भक्त यह ताला बिना किसी चाबी से खोलेगा, उसका ही मंदिर पर पहले पूजा करने का हक होगा.

पढ़ेंः No Vehicle Day: साइकिल पर सवार होकर सदन पहुंचे परिवहन मंत्री, और कहा...

देश भर से आए निशान धारियों ने अपने प्रयास किए, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ. उसके बाद उस समय सूरजगढ़ से निशान लेकर आए मंगला अहीर भक्त ने मात्र मोर पंख के झाड़े से उस भारी-भरकम ताले को तोड़ दिया. उसके बाद से सूरजगढ़ निशान की मान्यता खाटू के साथ-साथ विश्वभर में भी प्रसिद्ध हो गई.

सूरजगढ़ (झुंझुनू). पुरे भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा सोमवार को जिले के सूरजगढ़ कस्बे के प्राचीन श्याम मंदिर से खूब धाम के साथ रवाना हुई. बता दें कि पिछले कुछ दिनों से श्याम के रंग में रंगा नजर आने वाला कस्बा सोमवार को पूरी तरह श्याम रंग में ही रंगा नजर आया.

भारतवर्ष के प्रथम निशान संघ की पदयात्रा रवाना

आचार्य अभिषेक चौमाल के आचार्यत्व में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद महंत मनोहरलाल सैनी के सानिध्य में नत्थूराम, पूर्णमल, बजरंगलाल, निशानधारी जयसिंह के नेतृत्व में हजारों पदयात्रियों का जत्था मंदिर परिसर से खाटूधाम के लिए रवाना हुआ.

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प्राचीन श्याम मंदिर से निकले जत्थे के साथ-साथ सम्पूर्ण कस्बा श्याम रंग में ही रंगा नजर आया. निशान पदयात्रा में आगे-आगे हनुमान की ध्वजा के साथ महिलाएं सर पर सिगड़ी धारण कर आगे-आगे भजन गाते हुए चल रही थी. वहीं इस दौरान पदयात्रा में श्रद्धालु बैंड-बाजे की धुनों पर नाचते-गाते हुए चल रहे थे.

निशान पदयात्रा का कस्बे और आसपास के ग्रामीण इलाकों में जगह-जगह पुष्पवर्षा और माल्यार्पण कर जोरदार स्वागत किया गया. पदयात्रा सुल्ताना, गुढ़ा, उदयपुरवाटी, गुरारा होते हुए 5 मार्च को खाटू पहुंचेगी. जहां दो दिन तक धर्मशाला में निशान की पूजा-अर्चना के बाद 7 मार्च को द्वादशी को बाबा के मंदिर पर निशान चढ़ाया जाएगा. पदयात्रा में कई श्रद्धालु ऐसे भी है, जिनकी चार पीढ़िया तक इस पदयात्रा में भाग लेकर पुण्य की भागी बन चुकी है.

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सूरजगढ़ फाल्गुन मास में श्याम बाबा के मंदिर में देश भर से लाखों निशान आते हैं, लेकिन जो महत्व और सम्मान सूरजगढ़ के निशान को मिलता है. वो किसी दूसरे निशान को नहीं मिलता है. सूरजगढ़ निशान ही बाबा श्याम के शिखरबंद के गुंबद पर चढ़ता है. यही कारण है कि इस निशान की कस्बे ही नहीं पूरे देश में विशेष मान्यता रहती है. जिस वजह से इस निशान पदयात्रा में देश भर के कोने-कोने से हजारों किलोमीटर दूर से आए श्रद्धालु भी इस पदयात्रा में भाग लेकर पुण्य का लाभ उठाते हैं.

सूरजगढ़ के निशान को विशेष मान्यता क्यों ?

इस पर भी जुड़ा एक प्रसंग है. बताया जाता है कि करीब 100 वर्ष पहले जब देश में ब्रिटिश हुकूमत का शासन हुआ करता था. उस दौरान अंग्रेज हुकूमत ने खाटू के श्याम मंदिर में बड़ा सा ताला लगाकर इसके पट बंद करवा दिए थे और ऐलान किया था जो भक्त यह ताला बिना किसी चाबी से खोलेगा, उसका ही मंदिर पर पहले पूजा करने का हक होगा.

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देश भर से आए निशान धारियों ने अपने प्रयास किए, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ. उसके बाद उस समय सूरजगढ़ से निशान लेकर आए मंगला अहीर भक्त ने मात्र मोर पंख के झाड़े से उस भारी-भरकम ताले को तोड़ दिया. उसके बाद से सूरजगढ़ निशान की मान्यता खाटू के साथ-साथ विश्वभर में भी प्रसिद्ध हो गई.

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