झुंझुनू. राजस्थान के झुंझनू की एक महिला पहलवान जब अखाड़े में उतरती है तो उसकी आंखों में जीत जाने का जज्बा और जूनून देखकर विरोधी पहले ही डर जाते हैं. जब ये पहलवान विरोधी को पटखनी देते हैं तो विरोधी दोबारा उठ नहीं पाता. इस काबिल पहलवान ने नेशनल लेवल पर 4 गोल्ड और सैंकड़ों मेडल और पदक अपने नाम किए हैं नेशनल लेवल की इस प्लेयर को मौका मिलता तो अंतराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रौशन करती लेकिन आज ये होनहार बेटी मनरेगा में काम करने को मजबूर है.
झुंझुनू जिले में फोगाट बहनों की तरह ही एक ऐसी पहलवान है, जिसने लड़कों के साथ कुश्ती कर इस खेल के हर दांव सीखे और नेशनल तक पहुंची लेकिन जिंदगी के रिंग में झुंझनू की इस बेटी को आर्थिक तंगी पटखनी दे रहा है. एक छोटे से कस्बे की हांखुडाना की बलकेश मीणा का नेशनल तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है.
15 साल की उम्र में ही उठ गया पिता का साया
महज 15 साल की उम्र में बलकेश के सिर से पिता का साया उठ गया है. जिसके बाद बलकेश की मां ने पांच-भाई बहनों वाले इस परिवार का मजदूरी करके पेट पाला. बचपन से ही मीणा को आर्थिक तंगी से दो चार होना पड़ा. शायद यही से मीणा के अंदर जुझारूपन और जीतने का जज्बा मिला.
बलकेश बताती हैं कि 2011 में दिसंबर में पिता का आकस्मिक निधन हो गया. पिता भेड़-बकरियों का रेवड़ रखते थे. उनके जाने के बाद रेवड़ बेचना पड़ा. मां ने खेती-मजदूरी कर सभी का पालन पोषण किया. पांच भाई-बहनों में चार नंबर की बलकेश पुष्कर व्यामशाला में प्रशिक्षण लेने रोजाना खुडाना से साइकिल से बगड़ जाने लगी.
4 गोल्ड सहित 12 पदक बलकेश के नाम
पिछले 8 साल में बलकेश ने जिला स्तर से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर 4 गोल्ड सहित 12 पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. राजकीय स्कूल खुडाना में पढ़ी बलकेश को स्कूल के शारीरिक शिक्षक उमेद झाझड़िया ने कठिन परिस्थितियों के बाद भी खेल में उसकी रुचि देखकर उसे आगे बढ़ाया. बलकेश ने जुलाई 2012 में बगड़ की पुष्कर व्यामशाला में कुश्ती का प्रशिक्षण लेना शुरू किया. महज 3 महीने के प्रशिक्षण के बाद नवंबर में राज्य स्तरीय सीनियर कुश्ती प्रतियोगिता के 51 किलो भार वर्ग में रजत पदक जीतकर अपने इरादे जाहिर कर दिए.
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रजत पदक जीतने के बाद बलकेश का पैर अखाड़े में जम गया. इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पहली बार में ही उन्होंने राज्य स्तरीय कुश्ती में रजत पदक जीता और देखते-देखते राजस्थान की इस बेटी ने अब तक चार गोल्ड, 5 रजत व 2 कांस्य पदक झटक लिए.
मनरेगा में काम करने को मजबूर
इसे प्रशासन और सरकार की अनदेखी कहेंगी एक प्रतिभावान पहलवान को अपनी जीविका चलाने के लिए मनरेगा में काम करना रहा है. मीणा को पिछले 2 साल में सरकार की ओर से सहायता मिली है लेकिन वो काफी नहीं है. जैसे बेहतर दांव-पेंच के लिए प्रैक्टिस महत्वपूर्ण है, वैसे ही अखाड़े में लड़ने के लिए एक अच्छी डाइट और बेहतर प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है. मनरेगा के काम से उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते कि वो घर के खर्च के साथ अपने अन्य खर्चे उठा सके.
सरकार से मदद की दरकार
वहीं झुंझनू की इस बेटी को दाद देनी पड़ेगी, जिसने इतनी विषम परिस्थितियों में हार नहीं मानी है. मनरेगा में काम करने के बाद बचे समय में बलकेश मीणा प्रैक्टीस करती हैं. मीणा में प्रतिभा कूट-कूट कर भरा है लेकिन उन्होंने सरकार से आर्थिक मदद की दरकार है. सरकार यदि ऐसे खिलाड़ियों को थोड़ी और सहायता दे दे तो एक प्रतिभा का भविष्य अंधकार में जाने से बच जाएगा.