झुंझुनू. कारगिल युद्ध के 71 दिन में झुंझुनू जिले के 22 लाडले शहीद हो गए थे. यानी जितने दिन युद्ध चला हर तीसरे दिन किसी मां का लाल तो किसी का सुहाग मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राण न्योछावर कर तिरंगे में लिपट कर आ रहा था.
मां भारती की रक्षा कर अपनी जन्मभूमि झुंझुनू की रज में मिलने के लिए उनका भौतिक शरीर साथ में हजारों आंसू भी ला रहा था. जिस माटी के नाम आज तक सबसे ज्यादा शहीद देने का रिकॉर्ड था, किस की इच्छा थी कि अपने लाडलों के रक्त से उस रिकॉर्ड को बरकरार रखा जाए. लेकिन, झुंझुनू को बोलने में जबान को तीन झटके लगते हैं. उससे कहीं ज्यादा ऊंची पहाड़ियों पर बैठे पाकिस्तानियों को झुंझुनू के जवान झटके दे रहे थे. यहां की माटी के हर एक का मस्तक हिमालय से ऊंचा हो रहा था, तो फोन की बजती हर घंटी भी दिल को धड़का देती थी. आखिर मां भारती का रक्त से तिलक कर हिंदुस्तान के जवानों ने विजय पताका लहराई. लेकिन, झुंझुनू के बस स्टैंडों पर त्याग बलिदान और जान न्योछावर करने की कहानियां स्थाई रूप से मूर्तियों के रूप में स्थापित हो गई.
यह हैं झुंझुनू की तेजस्वी वीरांगनाएं
रणबांकुरे की धरती राजस्थान ही नहीं पूरे देश को सबसे ज्यादा शहीद देने वाले झुंझुनू जिले में कारगिल दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई. इस दौरान वीरांगनाओं को 20 वर्ष पहले का मंजर याद आ गया. कारगिल युद्ध में राजस्थान के कुल 53 जवान शहीद हुए थे. ऐसे में झुंझुनू में शहीद स्मारक पर पुलिस की टुकड़ी ने गार्ड ऑफ ऑनर देकर कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि दी. देश के लिए जान न्योछावर करने की झुंझुनू की अपनी गौरवशाली परंपरा रही है और झुंझुनू के अब तक देश के लिए 450 से ज्यादा जवान मां भारती के लिए लड़ते लड़ते शहीद हो चुके हैं.