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शेखावाटी के सपूत को अंतिम सलाम, मात्र 22 साल की उम्र में आतंकियों को मुंह तोड़ जवाब देते हुए शहीद हुए छत्रपाल सिंह

शेखावटी के एक और लाल ने देश सेवा में अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. छावसरी के लाल छत्रपाल सिंह जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा इलाके में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए. छत्रपाल सिंह की पार्थिव देह उनके पैतृक गांव छावसरी पहुंची. जिसके बाद गार्ड ऑफ ऑनर के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.

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Published : Apr 7, 2020, 12:56 PM IST

Updated : Apr 7, 2020, 1:48 PM IST

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विदा हुआ 'लाल'

उदयपुरवाटी(झुंझुनूं). उपखंड क्षेत्र के छावसरी गांव के रहने वाले छत्रपाल सिंह ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में आतंकियों से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की. शहीद होने की सूचना गांव में आते ही माहौल गमगीन हो गया. सोमवार सुबह साढ़े 7 बजे सेना के अधिकारियों ने छत्रपाल सिंह के बड़े भाई सूर्यप्रतापसिंह को शहादत की सूचना दी. शहीद होने की सूचना मिलते ही परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया.

विदा हुआ 'लाल'

शहीद‌ की मां शशिकला देवी बस यही कहती रही कि इतनी छोटी उम्र में ही छत्रपालसिंह क्यों उनकी गोद सूनी कर गए? पिता सुरेश कुमार बेसुध होकर बैठे हुए रह-रहकर रो उठते. शहीद छत्रपालसिंह की पार्थिव देह छावसरी गांव में पहुंचते ही चप्पा-चप्पा भारत मां के जयकारों से गूंजने लगा. छत्रपालसिंह छावसरी गांव के पहले शहीद हैं. जिन गलियों में छत्रपाल अपने दोस्तों के साथ घूमते थे, उन्ही गलियों से उनके पार्थिव शरीर को गांव में घूमाकर जयकारों के साथ अंतिम संस्कार किया गया.

यह भी पढें- झुंझुनू: उदयपुरवाटी का लाल छत्रपाल सिंह शहीद, शाम को लाया जाएगा पार्थिव शरीर

शहीद के बड़े भाई सूर्य प्रताप सिंह घर पर रहकर नौकरी की तैयारी कर रहे है. पिता सुरेश कुमार छावसरी में मेडिकल की दुकान चलाते हैं. माता शशिकला देवी गृहणी है. शहीद का परिवार मूलतः उत्तरप्रदेश के रोरा क्षेत्र से है. लेकिन करीब 28 सालों से छावसरी में ही रह रहे हैं. छत्रपालसिंह का जन्म और शिक्षा भी छावसरी में हुई. वे बचपन से ही मेधावी और देशसेवा में जाने के इच्छुक रहे. रोजाना वे स्कूल से आने के बाद सेना की तैयारी करते.

शहीद के बड़े भाई सूर्यप्रताप सिंह ने बताया कि छत्रपाल सिंह को‌ 10 वीं कक्षा में पढ़ते हुए 15 जून 2015 को बैंगलोर में ट्रेनिंग के दौरान पहली ज्वॉइनिंग दी गई. छत्रपालसिंह ने गत 3 अप्रैल को सुबह 11 बजे अपने माता - पिता से फोन पर बात की थी. तब बताया था कि दो-तीन दिन के लिए अपने साथियों के साथ किसी कोर्स पर जा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में लोहा लेते हुए मुठभेड़ के दौरान देश के लिए शहीद हो गए.

यह भी पढें- स्पेशल: ऑयल पेंटिंग से शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं जयपुर के चित्रकार चंद्र प्रकाश

छत्रपाल सिंह जम्मू में पैरा ट्रूपर के पद पर तैनात थे. रविवार सुबह जम्मू स्थित कुपवाड़ा क्षेत्र में जब आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश की. उस दौरान आतंकियों से हुई मुठभेड़ में सेना के पांच जवान शहीद हो गए. इन्हीं शहीद जवानों में छावसरी के छत्रपालसिंह भी शामिल थे. शहीद छत्रपाल सिंह अपने परिवार में सबसे छोटे थे. गांव के मुख्य चौक में शहीद की पार्थिव देह की अंत्येष्टि की गई. इससे पहले शहीद की पार्थिव देह जैसे ही घर पहुंची तो परिजन बिलख पड़े. शहीद को पुलिस के जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया. पार्थिव देह के साथ आए शहीद के साथी जितेंद्र कुमावत, जितेंद्र कुमार व अन्य सेना के जवानों ने शहीद के पिता सुरेश कुमार को तिरंगा सौंपा.

उदयपुरवाटी(झुंझुनूं). उपखंड क्षेत्र के छावसरी गांव के रहने वाले छत्रपाल सिंह ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में आतंकियों से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की. शहीद होने की सूचना गांव में आते ही माहौल गमगीन हो गया. सोमवार सुबह साढ़े 7 बजे सेना के अधिकारियों ने छत्रपाल सिंह के बड़े भाई सूर्यप्रतापसिंह को शहादत की सूचना दी. शहीद होने की सूचना मिलते ही परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल हो गया.

विदा हुआ 'लाल'

शहीद‌ की मां शशिकला देवी बस यही कहती रही कि इतनी छोटी उम्र में ही छत्रपालसिंह क्यों उनकी गोद सूनी कर गए? पिता सुरेश कुमार बेसुध होकर बैठे हुए रह-रहकर रो उठते. शहीद छत्रपालसिंह की पार्थिव देह छावसरी गांव में पहुंचते ही चप्पा-चप्पा भारत मां के जयकारों से गूंजने लगा. छत्रपालसिंह छावसरी गांव के पहले शहीद हैं. जिन गलियों में छत्रपाल अपने दोस्तों के साथ घूमते थे, उन्ही गलियों से उनके पार्थिव शरीर को गांव में घूमाकर जयकारों के साथ अंतिम संस्कार किया गया.

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शहीद के बड़े भाई सूर्य प्रताप सिंह घर पर रहकर नौकरी की तैयारी कर रहे है. पिता सुरेश कुमार छावसरी में मेडिकल की दुकान चलाते हैं. माता शशिकला देवी गृहणी है. शहीद का परिवार मूलतः उत्तरप्रदेश के रोरा क्षेत्र से है. लेकिन करीब 28 सालों से छावसरी में ही रह रहे हैं. छत्रपालसिंह का जन्म और शिक्षा भी छावसरी में हुई. वे बचपन से ही मेधावी और देशसेवा में जाने के इच्छुक रहे. रोजाना वे स्कूल से आने के बाद सेना की तैयारी करते.

शहीद के बड़े भाई सूर्यप्रताप सिंह ने बताया कि छत्रपाल सिंह को‌ 10 वीं कक्षा में पढ़ते हुए 15 जून 2015 को बैंगलोर में ट्रेनिंग के दौरान पहली ज्वॉइनिंग दी गई. छत्रपालसिंह ने गत 3 अप्रैल को सुबह 11 बजे अपने माता - पिता से फोन पर बात की थी. तब बताया था कि दो-तीन दिन के लिए अपने साथियों के साथ किसी कोर्स पर जा रहे हैं. जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा क्षेत्र में लोहा लेते हुए मुठभेड़ के दौरान देश के लिए शहीद हो गए.

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छत्रपाल सिंह जम्मू में पैरा ट्रूपर के पद पर तैनात थे. रविवार सुबह जम्मू स्थित कुपवाड़ा क्षेत्र में जब आतंकवादियों ने घुसपैठ की कोशिश की. उस दौरान आतंकियों से हुई मुठभेड़ में सेना के पांच जवान शहीद हो गए. इन्हीं शहीद जवानों में छावसरी के छत्रपालसिंह भी शामिल थे. शहीद छत्रपाल सिंह अपने परिवार में सबसे छोटे थे. गांव के मुख्य चौक में शहीद की पार्थिव देह की अंत्येष्टि की गई. इससे पहले शहीद की पार्थिव देह जैसे ही घर पहुंची तो परिजन बिलख पड़े. शहीद को पुलिस के जवानों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया. पार्थिव देह के साथ आए शहीद के साथी जितेंद्र कुमावत, जितेंद्र कुमार व अन्य सेना के जवानों ने शहीद के पिता सुरेश कुमार को तिरंगा सौंपा.

Last Updated : Apr 7, 2020, 1:48 PM IST
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