झुंझुनूं. एक दौर था जब जिले का किसान परंपरागत खेती ही करता था. फसलों की बुआई, कटाई आदि में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जाता था. इससे लाभ भी कम मिल पाता था और परिवार का पेट पालना मुश्किल होता था.परंतु अब किसानों के खेती करने के तौर-तरीकों में परिवर्तन से उन्हें लाभ होने लगा है. ऐसे में इन अन्नदाताओं के हालात में भी सुधार हो रहा है.
झुंझुनूं जिले के किसानों की बात की जाए तो एक वक्त था कि खरीफ फसल में केवल ग्वार, बाजरा, मूंग, चंवला के अलावा किसी अन्य फसल की बुआई के बारे में सोचा भी नहीं जाता था. परंतु अब देखने में आ रहा है कि पिछले तीन खरीफ फसल के सीजन में किसानों में कपास और मूंगफली की फसल की बुआई के प्रति रुझान बढ़ा है. अब जिले में किसी भी क्षेत्र में देखें तो कपास और मूंगफली की फसल का शुरुआती दौर नजर आ जाएगा.
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कपास और मूंगफली की तरफ बढ़ा रुझान
कृषि अधिकारियों की मानें तो दो सीजन के दौरान लगातार कपास और मूंगफली की फसल बुआई का रकबा बढ़ा है. खरीफ 2019 के सीजन में कृषि विभाग ने कपास का मामूली लक्ष्य रखा था, फिर भी किसानों ने 13 हजार 500 हैक्टेयर में बुआई कर डाली थी. इसके बाद इस सीजन में कृषि विभाग ने महज आठ हजार का लक्ष्य रखा, लेकिन अब तक 16 हजार 200 हैक्टेयर में कपास की बुआई की जा चुकी है. इसी तरह मूंगफली की फसल की बात की जाए तो 2019 में आठ हजार हैक्टेयर तथा 2020 में यह रकबा बढ़कर 17 हजार 400 हैक्टेयर पहुंच गया. क्षेत्र में ज्यादा मूंगफली की बुआई जिले के उदयपुरवाटी, गुढ़ा व नवलगढ़ क्षेत्र के गांवों में हो रही है. इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में किसान कपास और अन्य फसलों की बुआई करते हैं.
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कृषि विस्तार (झुंझुनूं) के सहायक निदेशक डॉ. विजयपाल कस्वां बताते हैं पहले जिले के किसान केवल परंपरागत फसलों की बुआई ही करते थे. लेकिन दो-तीन सीजन से किसान ऐसी फसलों की बुआई कर रहे हैं जिससे उन्हें अधिक लाभ हो. लगातार दो सीजन से किसानों में कपास और मूंगफली के प्रति रुझान बढ़ा है. हालांकि कपास में उपयोग होने वाले पेस्टीसाइड से जमीन को हल्का नुकसान भी पहुंचता है.
जलदोहन से बिगड़ सकते हैं हालात
कपास व मूंगफली की बुआई से भले ही किसानों को फायदा होता हो लेकिन इसमें एक बड़ा नुकसान भी है. दरअसल जिले के मलसीसर ब्लॉक को छोड़कर अन्य सभी ब्लॉक डार्क जोन में आते हैं और ऐसे में यहां पर पानी की स्थिति बेहद खराब है. जबकि कपास व मूंगफली जैसी नगदी फसलों को पानी की खास जरूरत पड़ती है. यह करीब 5 महीने में तैयार होती है. ऐसे में केवल बरसाती पानी के आधार पर यह खेती नहीं हो सकती है और लोग सिंचाई कर भी इनमें पानी देते हैं. जिससे जल दोहन की स्थिति बन जाती है. डार्क जोन वाले क्षेत्र में इस तरह से जल दोहन से आने वाले समय में परेशानी खड़ी हो सकती है.