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SPECIAL: रंग लाने लगी मुहिम, इस मानसून में भर जाएगा बंका सेठ की जोहड़ी में पानी

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Published : Jun 27, 2020, 9:21 PM IST

झुंझुनू जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर मलसीसर कस्बे के पास स्थित बंका सेठ की जोहड़ी में गत बारिश से पहले खुदाई करवाई थी. जिसके बाद वहां पर करीब 30 साल बाद पानी आया था. ग्रामीणों का कहना है ईटीवी भारत और तत्कालीन जिला कलेक्टर रवि जैन के प्रयास से यह संभव हो पाया.

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खिल उठे रेगिस्तानी फूलदार पौधे और पेड़

झुंझुनू. ईटीवी भारत ने पानी की महत्ता को समझते हुए जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर मलसीसर कस्बे के पास स्थित बंका सेठ की जोहड़ी में गत बारिश से पहले खुदाई करवाई थी. वहां करीब 30 साल बाद पानी आया था. बंका सेठ की जोहड़ी ने करीब 6 महीने में ही पूरा पानी अपने गर्भ में समा लिया था, लेकिन पानी से जो वहां का जलस्तर बढ़ा है उसकी वजह से वहां आसपास रेगिस्तानी फूलदार पौधे उग आए हैं. इसके साथ ही दूसरी ओर पास में खड़े हुए खेजड़ी के पेड़ों को भी नया जीवनदान मिला है.

खिल उठे रेगिस्तानी फूलदार पौधे और पेड़

इस बार लबालब होने की उम्मीद

जल सरंक्षण के परंपरागत स्रोत के रूप में राजस्थान में पुरातन काल से ही जोहड़े बनाए जाते थे. लगातार पानी आने की वजह से उनमें एक परत बन जाया करती थी और इस वजह से पानी बहुत धीमी गति से धरती के गर्भ में समाया करता था. इससे एक तरफ वह पशुओं की लगभग सालभर तक प्यास बुझाया करती थी. दूसरी ओर पानी भी धीरे-धीरे रिसने से जलस्तर भी बरकरार रहा करता था. अब बंका सेठ की जोहड़ी में गत 30 साल के बाद पानी आने की वजह से जल्दी पानी समा गया, लेकिन इस बार से एक परत बनना शुरू हो जाएगा और संभवतः लंबे समय तक ना केवल पानी रहेगा बल्कि जलस्तर को आगे बढ़ाने के लिए धीरे-धीरे रिसता हुआ पानी धरती के गर्भ में जाएगा.

पढ़ेंः SPECIAL: प्रदेश के करीब 20 जिलों में पेयजल संकट, विभाग टैंकरों से कर रहा है पानी सप्लाई

लोग खुद पीते थे इस जोहड़ी का पानी

रेगिस्तानी क्षेत्रों में हमेशा से ही पानी की महत्ता रही है और पुराने समय में जोहड़ों का पानी खुद ग्रामीण भी काम में लिया करते थे. इसलिए इनकी खास देखभाल भी की जाती थी और इंसान के पानी पीने के काम में आने की वजह से इन जोहड़ों की सुरक्षा भी की जाती थी. आजादी के बाद हुए विकास में यहां पर लोगों ने खुद के खेतों में ट्यूबवेल बना लिए हैं. सरकारी योजनाओं का पानी भी गांव में आता है और इसलिए धीरे-धीरे यह जल सरंक्षण के परंपरागत स्त्रोत समाप्त होते जा रहे हैं.

ग्रामीण करते हैं ईटीवी की प्रशंसा

ग्रामीण इसमें खुलकर बताते हैं कि ईटीवी ने तत्कालीन जिला कलेक्टर रवि जैन के साथ मिलकर जो प्रयास किया है वह काबिले तारीफ है. आने वाले समय में इसका बड़ा फायदा मिलेगा. ग्रामीण वहां पर पास में ही योग करने आते हैं. इसके अलावा घूमने के लिए ट्रैक भी बनाया गया है. कई समितियां भी अब यहां पर पौधे लगाने का विचार कर रहे हैं. ईटीवी भारत भी आने वाले समय में प्रयास कर यहां पर पौधरोपण भी करवाएगा ताकि जल सरंक्षण के यह परंपरागत स्रोत बरकरार रहे.

झुंझुनू. ईटीवी भारत ने पानी की महत्ता को समझते हुए जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर मलसीसर कस्बे के पास स्थित बंका सेठ की जोहड़ी में गत बारिश से पहले खुदाई करवाई थी. वहां करीब 30 साल बाद पानी आया था. बंका सेठ की जोहड़ी ने करीब 6 महीने में ही पूरा पानी अपने गर्भ में समा लिया था, लेकिन पानी से जो वहां का जलस्तर बढ़ा है उसकी वजह से वहां आसपास रेगिस्तानी फूलदार पौधे उग आए हैं. इसके साथ ही दूसरी ओर पास में खड़े हुए खेजड़ी के पेड़ों को भी नया जीवनदान मिला है.

खिल उठे रेगिस्तानी फूलदार पौधे और पेड़

इस बार लबालब होने की उम्मीद

जल सरंक्षण के परंपरागत स्रोत के रूप में राजस्थान में पुरातन काल से ही जोहड़े बनाए जाते थे. लगातार पानी आने की वजह से उनमें एक परत बन जाया करती थी और इस वजह से पानी बहुत धीमी गति से धरती के गर्भ में समाया करता था. इससे एक तरफ वह पशुओं की लगभग सालभर तक प्यास बुझाया करती थी. दूसरी ओर पानी भी धीरे-धीरे रिसने से जलस्तर भी बरकरार रहा करता था. अब बंका सेठ की जोहड़ी में गत 30 साल के बाद पानी आने की वजह से जल्दी पानी समा गया, लेकिन इस बार से एक परत बनना शुरू हो जाएगा और संभवतः लंबे समय तक ना केवल पानी रहेगा बल्कि जलस्तर को आगे बढ़ाने के लिए धीरे-धीरे रिसता हुआ पानी धरती के गर्भ में जाएगा.

पढ़ेंः SPECIAL: प्रदेश के करीब 20 जिलों में पेयजल संकट, विभाग टैंकरों से कर रहा है पानी सप्लाई

लोग खुद पीते थे इस जोहड़ी का पानी

रेगिस्तानी क्षेत्रों में हमेशा से ही पानी की महत्ता रही है और पुराने समय में जोहड़ों का पानी खुद ग्रामीण भी काम में लिया करते थे. इसलिए इनकी खास देखभाल भी की जाती थी और इंसान के पानी पीने के काम में आने की वजह से इन जोहड़ों की सुरक्षा भी की जाती थी. आजादी के बाद हुए विकास में यहां पर लोगों ने खुद के खेतों में ट्यूबवेल बना लिए हैं. सरकारी योजनाओं का पानी भी गांव में आता है और इसलिए धीरे-धीरे यह जल सरंक्षण के परंपरागत स्त्रोत समाप्त होते जा रहे हैं.

ग्रामीण करते हैं ईटीवी की प्रशंसा

ग्रामीण इसमें खुलकर बताते हैं कि ईटीवी ने तत्कालीन जिला कलेक्टर रवि जैन के साथ मिलकर जो प्रयास किया है वह काबिले तारीफ है. आने वाले समय में इसका बड़ा फायदा मिलेगा. ग्रामीण वहां पर पास में ही योग करने आते हैं. इसके अलावा घूमने के लिए ट्रैक भी बनाया गया है. कई समितियां भी अब यहां पर पौधे लगाने का विचार कर रहे हैं. ईटीवी भारत भी आने वाले समय में प्रयास कर यहां पर पौधरोपण भी करवाएगा ताकि जल सरंक्षण के यह परंपरागत स्रोत बरकरार रहे.

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