झुंझुनूं. चूरू और झुंझुनूं की सीमा पर बसा हुआ निराधनु गांव कहने को एक सामान्य गांव है. लेकिन इस गांव की खास बात यह है कि यहां हर शाम को कौओं की बारात आती है. स्थानीय भाषा में कौओं को 'कागला' कहा जाता है और गांव हर शाम इन कागलों के आने का साक्षी रहता है.
पहले गांव के पेड़ों पर विश्राम, फिर वहां से उड़ान
दरअसल, इस गांव में पेड़ों के झुरमुटनुमा समूह है और ऐसे में दिनभर आस-पास के गांव में विचरण करने के बाद यह शाम को अपने ठांव में लौटते हैं. दूसरे गांव से लंबी उड़ान भरकर आने की वजह से यह आते ही सबसे पहले गांव की स्कूल के पेड़ों पर विश्राम करते हैं.
एक समय में गांव में जब भी कोई बारात आती थी, तो उसे गांव की स्कूल में ही सबसे पहले रुकवाया जाता था और जहां पर थके हुए बाराती थोड़ी देर के लिए विश्राम करते थे. इसी तरह से कौएं यहां सबसे पहले स्कूल के पेड़ों पर आते हैं और थोड़ा सुस्ताते हैं. इसके बाद जिस तरह से बारात में डांस होता है. उसी तरह से यह भी कावं-कावं करते हुए किलोल करते हैं. ऐसे में गांव के लोग कहने लगे कि इन कोओं की बारात तो हर शाम को आती है.
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कहीं तो देखने को ही नहीं मिलते
कई स्थानों पर काला कौआ दिखाई नहीं देता, बिगड़ रहे पर्यावरण की मार कौओं पर भी पड़ी है. स्थिति यह है कि श्राद्ध में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कोए तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं. कौओं के विकल्प के रूप में लोग बंदर, गाय और अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर अनुष्ठान पूरा करते हैं. लेकिन निराधनु और आसपास के गांव में इस तरह की समस्या कभी नहीं आती, यह तो नहीं कहा जा सकता की कौओं को यहां बुलाने या उनके संरक्षण के लिए गांव के लोग कोई प्रयास करते हैं.
लेकिन यह जरूर है कि लोग गांव के पेड़ों के झुरमुट को बरकरार रखते है और इसलिए ही इस गांव में हर शाम को इतने कौए मिल जाते हैं. वहीं यदि इनकी प्रजाति की बात की जाए तो यह पश्चिमी राजस्थान में पाया जाने वाला काले रंग का घरेलू कौआ ही है.
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किसान का मित्र भी हैं कौआ
किसानों के मित्र के रूप में कौआ मदद करता है. यह पक्षी खेतों में बड़ी संख्या में कीड़ों को मार कर खाते हैं. एक बड़ी बात यह भी है कि इस क्षेत्र में ज्यादातर लोग बारिश से होने वाली फसल ही लेते हैं और इसलिए कीटनाशकों का उपयोग कम होता है. यह भी एक वजह है कि निराधनु में इतने कौए आते हैं.