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झुंझुनूं : शेखावटी के नाम से जानी जाने वाली काटली नदी खोती जा रही है अपना अस्तित्व - सिरानी पीर

शेखावाटी नाम से जानी जाने वाली काटली नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है. जब इस नदी में पानी आता है तो सिरानी पीर की दरगाह को छू लेती है.लोग काटली नदी के उफान व बहाव को नहीं भूले हैं. वहीं नई पीढी काटली नदी की जानकारियों से अंजान हैं.

हाशिए पर काटली नदी
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Published : Jul 30, 2019, 12:11 PM IST

झुंझुनूं. शेखावाटी की जीवन रेखा के नाम से जानी जाने वाली काटली नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है. जब इस नदी में पानी आता है तो सिरानी पीर की दरगाह को छू लेती है. .लोग काटली नदी के उफान व बहाव को नहीं भूले हैं. वहीं नई पीढी काटली नदी की जानकारियों से अंजान हैं.

हाशिए पर काटली नदी

लागों ने बताया कि कई बार तो इतना पानी आता था कि सड़कों पर पानी भर जाता था.जिससे लोगों का आवागमन रूक जाता था. वहीं कई लोग इस नदी से परिचित भी थे तो कई अंजान. उदयपुरवाटी के आस-पास के गांवों में काटली नदी को पचलंगी, पापडा, जोधपुरा, बाघोली, सुनारी गांव में इस कदर खोदा गया है कि आगे पानी की निकासी ही नहीं है. पिछले तीन दिन से नेवरी, ककराना, मैनपुरा, केड, खटकड़, भाटीवाड़, सीथल, शिवनाथपुरा आदि गांवों के लोग काटली नदी के आने का इंतजार कर रहे हैं.

पढ़ें.गहलोत सरकार का 'मानसून धमाका', की ये अहम घोषणाएं

केड गांव के धीरसिंह राठौड़ ने बताया कि वह रोजाना टीले पर चढ़कर नदी के आने की राह देखते हैं. केड में प्रसिद्ध सिरानी पीर की दरगाह एक टीले पर स्थित है. नदी के बहाव से यह टीला भी कई बार डूबा है और दरगाह के दरवाजे तक पानी छूता था.

नदी का आना कम होने के साथ ही पानी दो सौ फीट तक गहरा हो गया है. पहले नदी दो-तीन महीने लगातार चलती थी. नदी का अधिक बहाव होने से लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ता था. खेत कई दिन तक डूब जाते थे और फसल भी नहीं हो पाती थी.

झुंझुनूं. शेखावाटी की जीवन रेखा के नाम से जानी जाने वाली काटली नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है. जब इस नदी में पानी आता है तो सिरानी पीर की दरगाह को छू लेती है. .लोग काटली नदी के उफान व बहाव को नहीं भूले हैं. वहीं नई पीढी काटली नदी की जानकारियों से अंजान हैं.

हाशिए पर काटली नदी

लागों ने बताया कि कई बार तो इतना पानी आता था कि सड़कों पर पानी भर जाता था.जिससे लोगों का आवागमन रूक जाता था. वहीं कई लोग इस नदी से परिचित भी थे तो कई अंजान. उदयपुरवाटी के आस-पास के गांवों में काटली नदी को पचलंगी, पापडा, जोधपुरा, बाघोली, सुनारी गांव में इस कदर खोदा गया है कि आगे पानी की निकासी ही नहीं है. पिछले तीन दिन से नेवरी, ककराना, मैनपुरा, केड, खटकड़, भाटीवाड़, सीथल, शिवनाथपुरा आदि गांवों के लोग काटली नदी के आने का इंतजार कर रहे हैं.

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केड गांव के धीरसिंह राठौड़ ने बताया कि वह रोजाना टीले पर चढ़कर नदी के आने की राह देखते हैं. केड में प्रसिद्ध सिरानी पीर की दरगाह एक टीले पर स्थित है. नदी के बहाव से यह टीला भी कई बार डूबा है और दरगाह के दरवाजे तक पानी छूता था.

नदी का आना कम होने के साथ ही पानी दो सौ फीट तक गहरा हो गया है. पहले नदी दो-तीन महीने लगातार चलती थी. नदी का अधिक बहाव होने से लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ता था. खेत कई दिन तक डूब जाते थे और फसल भी नहीं हो पाती थी.

Intro:शेखावाटी की लाइफ लाइन मानी जाने वाली काटली नदी सिमटी यादों में

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काटली नदी नही आने से पानी का स्तर गया दो सौ फीट गहरा

किसी जमाने मे मिट्टी में थोड़ा सा गड्ढ़ा करने से आ जाया करता था पानीBody:उदयपुरवाटी (झुंझुनूं)
शेखावाटी की जीवन रेखा नदी के नाम से जानी जाने वाली काटली नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। काटली नदी कभी केड के सिरानी पीर की जियारत करती थी। जब भी नदी आती तो सिरानी पीर की दरगाह को जरूर छूती। बड़े बुजुर्ग काटली नदी के उफान व बहाव को नहीं भूले हैं। वहीं नई पीढी को काटली की कलकल का पता नहीं है। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि कई बार तो इतना पानी आता था कि पूरा आवागमन प्रभावित हो जाता था। लोगों से बात की जिन्होंने नदी के सुनहरे दिन देखे और उनसे भी बात की जिन्होंने लहरों की कलकल नहीं सुनी। उदयपुरवाटी के आस-पास के गांवों में काटली नदी को पचलंगी, पापडा, जोधपुरा, बाघोली, सुनारी गांव में इस कदर खोद दिया है कि पानी आगे बढ़ता ही नहीं। पिछले तीन दिन से नेवरी, ककराना, मैनपुरा, केड, खटकड़, भाटीवाड़, सीथल, शिवनाथपुरा आदि गांवों के लोग काटली नदी के आने का इंतजार कर रहे हैं। केड गांव के धीरसिंह राठौड़ ने बताया कि वह रोजाना टीले पर चढ़कर नदी के आने की राह देखता है। केड में प्रसिद्ध सिरानी पीर की दरगाह एक टीले पर स्थित है। लोग कहते हैं कि यह टीला भी कई बार डूबा है और दरगाह के दरवाजे तक पानी छूता था। नदी का पेटा सुखा होने के कारण इस पर अतिक्रमण बढ़ गए हैं। जिनके खेत काटली नदी के मुहाने पर है। उसे याद है कि जब भी वे खेतों में मवेशी चराने आते थे और प्यास लगती थी तो थोड़ा सा गड्‌ढा खोदने पर ही पानी आ जाता था। वे पी लिया करते थे। नदी का आना कम होने के साथ ही पानी दो सौ फीट तक गहरा हो गया है। पहले नदी दो-तीन महीने लगातार चलती थी। अधिक बहाव राहगीरों को नदी पार करने से रोकता था। कई बार ऐसा हुआ है कि वे लोग राहगीरों को अपने घर पर ठहरा लिया करते थे। एक-दो दिन रहने खाने का इंतजाम भी करते थे। खेत कई दिन तक डूब जाते थे और फसल भी नहीं हो पाती थी।
Conclusion:
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