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स्पेशल: यहां शत-प्रतिशत हुई है सुप्रीम कोर्ट और प्रदेश सरकार के आदेशों की पालना

झुंझुनू में इतने अपराध बढ़ गए हैं लेकिन इसका दूसरा आंकड़ा यह सिद्ध करता है कि झुंझुनू जिला पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार के आदेशों की शत-प्रतिशत पालना की है. सरकार के आदेशों के अनुसार पुलिस को हर एक परिवादी की रिपोर्ट दर्ज करनी है और बिना किसी का मामला दर्ज किए हुए परिवादी को नहीं भेजना है. जिसके तहत यहां पर साल 2018 में कुल 4 हजार 402 मामले दर्ज हुए थे तो साल 2019 में 6 हजार 18 एफआईआर दर्ज हुए हैं.

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न्यायालय ने सभी परिवादियों के मामले दर्ज करने के दिए आदेश
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Published : Jan 13, 2020, 1:05 PM IST

झुंझुनू. जिले के क्राइम रिकॉर्ड की बात की जाए और आंकड़ों की बात की जाए तो ऐसा लगेगा कि जिले में क्राइम के रिकॉर्ड ही टूट गए हैं. जी हां, पिछले 2 साल की तुलना में इस बार 1 हजार 700 ज्यादा मुकदमे दर्ज किए गए हैं. यहां पर जहां साल 2018 में कुल 4 हजार 402 मामले दर्ज हुए थे तो साल 2019 में 6 हजार 18 एफआईआर दर्ज हुए. ऐसे में जहां किसी को लग सकता है कि अचानक झुंझुनू में इतने अपराध बढ़ गए हैं. लेकिन इसका दूसरा आंकड़ा यह सिद्ध करता है कि झुंझुनू जिला पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार के आदेशों की शत-प्रतिशत पालना की है.

न्यायालय ने सभी परिवादियों के मामले दर्ज करने के दिए आदेश

यह है इसका सबूत...

यहां किसी भी परिवादी को जांच या थाने के बाहर से नहीं भेजा गया है और हर किसी का मामला दर्ज किया गया है. इसका सबूत यह है कि इतने अधिक मामले दर्ज हुए हैं लेकिन, क्राइम में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. इसका सबूत यह है कि जितने प्रतिशत अधिक मामले दर्ज हुए हैं उतनी ही बढ़ोतरी एफआर में भी हुई है. यानी उतने ही प्रतिशत मामले पुलिस की जांच में झूठे पाए गए हैं. इनको इसलिए भी झूठा माना जा सकता है कि न्यायालय ने यह एफआर स्वीकार कर ली है.

यानि पुलिस ने इसे अपने स्तर पर झूठ नहीं माना हैं जो पहले परिवाद की जांच के नाम पर कर लिया जाता था. अब आपको इस आंकड़े से रूबरू करवाते हैं कि जहां साल 2018 में 1 हजार 294 मामलों में एफआर लगी थी तो इस बार 1 हजार 807 मामलों को पुलिस के साथ-साथ न्यायालय ने भी झूठा माना है.

जिला पुलिस अधीक्षक ने यह निकाला तोड़...

दरअसल जिला पुलिस अधीक्षक को यह पता था कि हर थानाधिकारी अपने थाने में क्राइम रिकॉर्ड कम करने के चक्कर में निर्देशों के बाद भी परिवादीयों की व्यथा नहीं सुनी जाएगी और शत-प्रतिशत मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएंगे. इसलिए उन्होंने थाने के गेट से थाना अधिकारी के कक्ष तक को कवर करते हुए कैमरे लगवाए. ऐसे में यदि कोई परिवादी जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आता है और उसके जाने के बाद भी उसका मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है.

यह भी पढ़ेंः स्पेशल: 90 लाख के केमिकल के अवैध कारोबार का खुलासा, टैंकरों से केमिकल चोरी कर भर देते थे पानी

ऐसे में एसपी परिवादी के बताए गए समय की कैमरे की रिकॉर्डिंग निकलवा ले और उसकी बात सही होने पर थाना अधिकारियों को सीधे कार्रवाई की चेतावनी दे डाली. थाना अधिकारी की अनुपस्थिति में यह जिम्मेदारी द्वितीय अफसर की थी ऐसे में थाने के स्टाफ की सीधे-सीधे जिम्मेदारी हो गई कि मुकदमे दर्ज किए जाएं इसके साथ ही उनको इस विश्वास में भी लिया गया कि ज्यादा मुकदमे दर्ज होने का यह अर्थ कतई नहीं लगाया जाएगा कि आपके थाना क्षेत्र में अपराध में भी बढ़ोतरी हुई है.

झुंझुनू. जिले के क्राइम रिकॉर्ड की बात की जाए और आंकड़ों की बात की जाए तो ऐसा लगेगा कि जिले में क्राइम के रिकॉर्ड ही टूट गए हैं. जी हां, पिछले 2 साल की तुलना में इस बार 1 हजार 700 ज्यादा मुकदमे दर्ज किए गए हैं. यहां पर जहां साल 2018 में कुल 4 हजार 402 मामले दर्ज हुए थे तो साल 2019 में 6 हजार 18 एफआईआर दर्ज हुए. ऐसे में जहां किसी को लग सकता है कि अचानक झुंझुनू में इतने अपराध बढ़ गए हैं. लेकिन इसका दूसरा आंकड़ा यह सिद्ध करता है कि झुंझुनू जिला पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार के आदेशों की शत-प्रतिशत पालना की है.

न्यायालय ने सभी परिवादियों के मामले दर्ज करने के दिए आदेश

यह है इसका सबूत...

यहां किसी भी परिवादी को जांच या थाने के बाहर से नहीं भेजा गया है और हर किसी का मामला दर्ज किया गया है. इसका सबूत यह है कि इतने अधिक मामले दर्ज हुए हैं लेकिन, क्राइम में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है. इसका सबूत यह है कि जितने प्रतिशत अधिक मामले दर्ज हुए हैं उतनी ही बढ़ोतरी एफआर में भी हुई है. यानी उतने ही प्रतिशत मामले पुलिस की जांच में झूठे पाए गए हैं. इनको इसलिए भी झूठा माना जा सकता है कि न्यायालय ने यह एफआर स्वीकार कर ली है.

यानि पुलिस ने इसे अपने स्तर पर झूठ नहीं माना हैं जो पहले परिवाद की जांच के नाम पर कर लिया जाता था. अब आपको इस आंकड़े से रूबरू करवाते हैं कि जहां साल 2018 में 1 हजार 294 मामलों में एफआर लगी थी तो इस बार 1 हजार 807 मामलों को पुलिस के साथ-साथ न्यायालय ने भी झूठा माना है.

जिला पुलिस अधीक्षक ने यह निकाला तोड़...

दरअसल जिला पुलिस अधीक्षक को यह पता था कि हर थानाधिकारी अपने थाने में क्राइम रिकॉर्ड कम करने के चक्कर में निर्देशों के बाद भी परिवादीयों की व्यथा नहीं सुनी जाएगी और शत-प्रतिशत मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएंगे. इसलिए उन्होंने थाने के गेट से थाना अधिकारी के कक्ष तक को कवर करते हुए कैमरे लगवाए. ऐसे में यदि कोई परिवादी जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आता है और उसके जाने के बाद भी उसका मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है.

यह भी पढ़ेंः स्पेशल: 90 लाख के केमिकल के अवैध कारोबार का खुलासा, टैंकरों से केमिकल चोरी कर भर देते थे पानी

ऐसे में एसपी परिवादी के बताए गए समय की कैमरे की रिकॉर्डिंग निकलवा ले और उसकी बात सही होने पर थाना अधिकारियों को सीधे कार्रवाई की चेतावनी दे डाली. थाना अधिकारी की अनुपस्थिति में यह जिम्मेदारी द्वितीय अफसर की थी ऐसे में थाने के स्टाफ की सीधे-सीधे जिम्मेदारी हो गई कि मुकदमे दर्ज किए जाएं इसके साथ ही उनको इस विश्वास में भी लिया गया कि ज्यादा मुकदमे दर्ज होने का यह अर्थ कतई नहीं लगाया जाएगा कि आपके थाना क्षेत्र में अपराध में भी बढ़ोतरी हुई है.

Intro:उच्चतम न्यायालय बार बार यह कह चुका है कि किसी भी परिवादी को थाने से लौटाया नहीं जाए और हर किसी का मुकदमा दर्ज हो लेकिन इसके बावजूद थानों से उनको ठरकाने की प्रवृत्ति बनी रहती है। इस तरह से अलवर में पीड़िता के रेप प्रकरण वीडियो बनाने व ब्लैक मेलिंग की घटना के बाद राज्य सरकार ने भी यह विशेष निर्देश दिए गए कि किसी भी प्रार्थना पत्र को परिवाद को जांच के नाम पर नहीं रखा जाए और हर हालत में एफ आई आर दर्ज हो, झुंझुनू जिला पुलिस ने इसकी शत-प्रतिशत पालना की है और यह हम नहीं आंकड़ा कहते हैं।


Body:झुंझुनू। झुंझुनू जिले के क्राइम रिकॉर्ड कि यदि बात की जाए और आंकड़ों की बात की जाए तो ऐसा लगेगा कि जिले में क्राइम के रिकॉर्ड ही टूट गए हैं। जी हां, गत 2 वर्ष की तुलना में इस बार 1700 ज्यादा मुकदमे दर्ज किए गए हैं यहां पर जहां वर्ष 2018 में कुल 4402 मामले दर्ज हुए थे तो वर्ष 2019 में 6018 f.i.r. हुई है। ऐसे में जहां किसी को लग सकता है कि अचानक झुंझुनू में इतने अपराध बढ़ गए हैं लेकिन इसका दूसरा आंकड़ा यह सिद्ध करता है कि झुंझुनू जिला पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट व राज्य सरकार के आदेशों की शत-प्रतिशत पालना की है।

यह है इसका सबूत
यहां किसी भी परिवादी को जांच या थाने के बाहर से नहीं भेजा गया है और हर किसी का मामला दर्ज किया गया है इसका सबूत यह है कि इतने अधिक मामले दर्ज हुए हैं लेकिन क्राइम में बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसका सबूत यह है कि जितने प्रतिशत अधिक मामले दर्ज हुए हैं उतनी ही बढ़ोतरी एफआर में भी हुई है यानी उतने ही प्रतिशत मामले पुलिस की जांच में झूठे पाए गए हैं इनको इसलिए भी झूठा माना जा सकता है कि न्यायालय ने यह एफआर स्वीकार कर ली है। यानी पुलिस ने इसे अपने स्तर पर झूठ नहीं माना हैं जो पहले परिवाद की जांच के नाम पर कर लिया जाता था अब आपको इस आंकड़े से रूबरू करवाते हैं कि जहां वर्ष 2018 में 1294 मामलों में एफआर लगी थी तो इस बार 1807 मामलों को पुलिस के साथ-साथ न्यायालय ने भी झूठा माना है।

जिला पुलिस अधीक्षक ने यह निकाला तोड़
दरअसल जिला पुलिस अधीक्षक को यह पता था कि हर थानाधिकारी अपने थाने में क्राइम रिकॉर्ड कम करने के चक्कर में निर्देशों के बाद भी परिवादीयों की व्यथा नहीं सुनी जाएगी और शत-प्रतिशत मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएंगे। इसलिए उन्होंने थाने के गेट से थाना अधिकारी के कक्ष तक को कवर करते हुए कैमरे लगवाए ऐसे में यदि कोई परिवादी जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय में आता है कि उसके जाने के बाद भी उसका मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है ऐसे में एसपी परिवादी के बताएं समय की कैमरे की रिकॉर्डिंग निकलवा दे और उसकी बात सही होने पर थाना अधिकारियों को सीधे कार्रवाई की चेतावनी दे डाली। थाना अधिकारी की अनुपस्थिति में यह जिम्मेदारी द्वितीय अफसर की थी ऐसे में थाने के स्टाफ की सीधे-सीधे जिम्मेदारी हो गई कि मुकदमे दर्ज किए जाएं इसके साथ ही उनको इस विश्वास में भी लिया गया कि ज्यादा मुकदमे दर्ज होने का यह अर्थ कतई नहीं लगाया जाएगा कि आपके थाना क्षेत्र में अपराध में भी बढ़ोतरी हुई है।


बाइट वन गौरव यादव जिला पुलिस अधीक्षक झुंझुनू

बाइट टू विमला बुडानिया सेकंड अफसर सदर थाना


Conclusion:
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