झालावाड़. जिले में सबसे ज्यादा बोयाबीन की फसल पर इल्लियों का असर देखा जा रहा है जिसकी वजह से फसल पीला मोजेक रोग की चपेट में आ गई है. पकने से पहले ही फसल खेतों में खड़ी खराब हो रही है. सोयाबीन की फसल फिलहाल तैयार है पौधों में फल लग रहे हैं और आने आ रहे हैं लेकिन दानों के पकने से पहले ही इसे इल्लियां चट कर जा रही है. खेत खड्हर से नजर आ रहे हैं और किसान हैरान परेशान हैं. धरतीपुत्रों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वो इस समस्या से कैसे निजात पाए और कैसे अपनी फसल को बचाएं.
झालावाड़ जिले में इस वर्ष कृषि विभाग ने 2 लाख 25 हजार हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई का लक्ष्य रखा था. ऐसे में किसानों ने लक्ष्य से 7 हजार हेक्टेयर अधिक क्षेत्र में बुआई करते हुए कुल 2 लाख 32 हजार 250 हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की फसल की बुआई की है. लेकिन किसानों की सोयाबीन की फसल बर्बाद होती जा रही है. सोयाबीन की फसल में इल्लियों के कारण पीला मोजेक बढ़ रहा है जिससे फसलें बर्बाद हो रही हैं. वहीं किसानों को प्रशासन से भी राहत मिलती हुई नजर नहीं आ रही है क्योंकि प्रशासन को कई बार लिखित मदद मांगने के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.
फसल बर्बादी की कगार पर-
किसान ललित राठौर ने बताया कि उसने अपनी तीन बीघा जमीन में सोयाबीन की फसल तैयार की है. फसल में पौधे जैसे ही बड़े हुए हैं उसके बाद से खड़े-खड़े ही सूख रहे हैंं उनमें न जाने कौन सा ऐसा कीट लग रहा है जिसकी वजह से पौधों में सोयाबीन का दाना नहीं बन पा रहा है. ललित ने कहा वो परेशान है उनकी तीन बीघा की पूरी फसल बर्बादी की कगार पर पहुंच चुकी है.
किसानों को फसल की लागत भी नहीं मिल रही-
वहीं किसान विष्णु प्रसाद कहते हैं कि उन्होंने 10 बीघा जमीन में सोयाबीन की फसल तैयार की थी. एक बीघा में करीबन 5 हजार रुपये की लागत आती है ऐसे में अब पूरी फसल इल्लियों और पीलिया की वजह से चौपट हो गई है. विष्णु कहते हैं कि करीबन 40 से 50 हजार रुपये का उनको इसकी वजह से नुकसान हुआ है.
ऐसा हाल सिर्फ एक दो किसानों का नहीं है बल्कि ज्यादातर किसानों का यही हाल है जिले में तेजी से यह बीमारी और इल्लियों का प्रकोप बढ़ रहा है. ऐसी ही परेशानी कुछ किसान चंद्र प्रकाश शर्मा की है. शर्मा कहते हैं कि उन्होंने 8 बीघा जमीन में सोयाबीन की फसल तैयार की थी. उन्होंने कहा पौधों में दाने आने से पहले ही पीलिया रोग की शुरूआत हो गई थी पौधे सूखने लगे थे. जैसे ही दाने पड़ना शुरू हुआ अब इल्लियों का खतरा मड़राने लगा लगा है.
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शर्मा कहते हैं कि अब सोयाबीन की फसल में या तो दाने ही नहीं आ रहे हैं या फिर जो दाने आए हैं वह मोटे नहीं हो पा रहे हैं. पौधे मुर्झा रहे हैं और धीरे-धीरे पूरी फसल बर्बाद हो रही है.
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किसानों का कहना है कि मामले को लेकर कई बार जिला प्रशासन को ज्ञापन भी दिया गया. मदद की गुहार लगाई गई लेकिन किसी तरह की कोई मदद नहीं हुई. हालांकि, अब जब ज्यादातर फसल बर्बाद हो चुकी तो सर्वे किया जा रहा है. लेकिन किसानों का अब विश्वास उठ गया है. धरतीपुत्र परेशान किसानों कहना है कि कहा जा रहा है कि उन्हें फसल खराबे का मुआवजा मिलेगा लेकिन हालतों को देखते हुए उन्हें नहीं लगता की मुआवजा मिलेगा और अगर मिलेगा भी तो उनके नुकसान की भरपाई करना भी मुश्किल है.
क्या होता है पीला मोजेक रोग ?
रोग ग्रसित पौधों की पत्तियां की नसें साफ दिखाई देने लगती हैं उनका नरमपन कम होना, बदशक्ल होना, ऐंठ जाना, सिकुड़ जाना जैसे लक्षण पीला मोजेक रोग के होते हैं. कभी-कभी पत्तियां भी खुरदरी हो जाती हैं. इस रोग के लक्षण शुरू में फसल पर कुछ ही पौधों पर दिखते हैं लेकिन धीरे-धीरे यह रोग बढ़कर भयंकर रूप धारण कर लेता है और फसल को बर्बाद कर देता है.