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सावन विशेष: राजस्थान का ऐसा मंदिर जहां शिवलिंग के नीचे कुंड, जिसमें नहाने से मिलता है चर्म रोगों से छुटकारा

झालावाड़ जिले के क्यासरा गांव का कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर जो पूरे देश में प्रसिद्ध है. सावन का महीना शुरू होते ही यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है. इस मंदिर में हजारों की संख्या में लोग कावड़ लेकर यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर मनोकामना मांगते हैं.

Kayavarneshwar Mahadev Temple, jhalawar news
कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यों है इतना खास
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Published : Jul 27, 2020, 2:57 PM IST

डग (झालावाड़). जिले के डग उपखंड का क्यासरा गांव जो जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है. इस गांव की आबादी करीब 3 हजार के आस-पास है. क्यासरा गांव अपनी एक अलग पहचान रखता है. पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

इस मंदिर में एक शिवलिंग है. शिवलिंग के नीचे एक कुंड बना हुआ है, जो चर्म रोगों के लिए बहुत कारगर साबित होता है. इसके साथ ही यहां पर एक दूध तलाई भी है. इस गांव की खासियत यह है कि यहां अनेक कथाएं हैं जो इतिहास में लिखी हुई है. राजा जनमेजय का इतिहास भी इसी गांव से जुड़ा हुआ है. खास बात यह है कि पूरे देश से लोग सावन के महीने में यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर मनोकामना मांगते हैं. यहां हजारों की संख्या में कलश यात्राएं, पैदल यात्राएं और कावड़ यात्राए पहुंचती है.

कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यों है इतना खास

मंदिर की विशेषताएं...

कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर का नाम कायावर्णेश्वर इसलिए रखा गया कि यहां पर राजा जन्मेजय जिनके पूरे शरीर पर कोड हुआ करता था. राजा एक दिन शिकार पर निकले तो वह सूअर के पीछे भाग रहे थे. अचानक सूअर दूध तलाई नामक पानी के कुंड से निकलकर बाहर भागा तो वह कंचनवर्णीय हो गया. राजा ने सोचा कि जब सूअर चर्म रोग से ग्रसित था, वह कंचन काया के रूप में परिवर्तित हो गया. उन्होंने सोचा तो क्यों ना मैं भी इस पानी से स्नान कर लूं.

तब राजा ने अपनी नाक पकड़कर पानी में डुबकी लगाई. जिसके बाद उनके पूरे शरीर का रोग खत्म हो गया. उसके बाद राजा को सपना आया कि पानी की तलैया में अंकुश प्रमाण के बराबर शिवलिंग है. जिन्हें वह वहां से लाकर कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित करें. स्थापित करने के बाद लगातार कहा जाता है कि शिवलिंग बढ़ता ही रहता है, जो आज करीब 2 से ढाई फीट ऊंचा हो गया है. शिवलिंग के नीचे मंदाकिनी कुंड बना हुआ है, जिसके पानी को यहां से हजारों लोग चर्म रोग के लिए ले जाते हैं. जो भी इस पानी से स्नान करता है, उसका चर्म रोग खत्म हो जाता है.

Kayavarneshwar Mahadev Temple, jhalawar news
शिव जी की प्रतिमा...

पढे़ंः सावन के पहले सोमवार पर महादेव की पूजा-अर्चना, कोरोना के कारण प्रमुख मंदिर भक्तों के लिए बंद

सावन के महीने में यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. कस्बे के भावसार समाज द्वारा यहां पर चांदी का मुकुट भी बनाया गया है. मगर शिवलिंग के छोटा बड़ा होने से वह आज तक भगवान भोलेनाथ के सिर की शोभा नहीं बन सका. जो सिर्फ भगवान कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यासरा में परिक्रमा के दौरान 5 किमी की पैदल परिक्रमा में आकर्षक का केंद्र रहता है. सावन के महीने में चारों सोमवार पर यहां पर भारी भीड़ उमड़ती है. जिसको लेकर पुलिस प्रशासन द्वारा यहां सुरक्षा व्यवस्थाएं की जाती है.

पढ़ेंः सावन के पहले सोमवार पर इंद्रदेव भी मेहरबान...बारिश से किया महादेव का 'अभिषेक'

यहां पर जिले का एकमात्र वेद विद्यापीठ स्कूल भी है, जहां से पूरे राजस्थान और मध्य प्रदेश के छात्र यहां पर पंडिताई शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं. कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यासरा में कई राजनेता अपनी राजनीति की शुरुआत यहीं से करते हैं. जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी यहां से ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. यहां के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर में हेलीपैड भी बनाया हुआ है. सावन माह में यहां हर सोमवार को शिवलिंग पर आकर्षक श्रृंगार किया जाता है.

डग (झालावाड़). जिले के डग उपखंड का क्यासरा गांव जो जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है. इस गांव की आबादी करीब 3 हजार के आस-पास है. क्यासरा गांव अपनी एक अलग पहचान रखता है. पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है.

इस मंदिर में एक शिवलिंग है. शिवलिंग के नीचे एक कुंड बना हुआ है, जो चर्म रोगों के लिए बहुत कारगर साबित होता है. इसके साथ ही यहां पर एक दूध तलाई भी है. इस गांव की खासियत यह है कि यहां अनेक कथाएं हैं जो इतिहास में लिखी हुई है. राजा जनमेजय का इतिहास भी इसी गांव से जुड़ा हुआ है. खास बात यह है कि पूरे देश से लोग सावन के महीने में यहां पहुंचते हैं और भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर मनोकामना मांगते हैं. यहां हजारों की संख्या में कलश यात्राएं, पैदल यात्राएं और कावड़ यात्राए पहुंचती है.

कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यों है इतना खास

मंदिर की विशेषताएं...

कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर का नाम कायावर्णेश्वर इसलिए रखा गया कि यहां पर राजा जन्मेजय जिनके पूरे शरीर पर कोड हुआ करता था. राजा एक दिन शिकार पर निकले तो वह सूअर के पीछे भाग रहे थे. अचानक सूअर दूध तलाई नामक पानी के कुंड से निकलकर बाहर भागा तो वह कंचनवर्णीय हो गया. राजा ने सोचा कि जब सूअर चर्म रोग से ग्रसित था, वह कंचन काया के रूप में परिवर्तित हो गया. उन्होंने सोचा तो क्यों ना मैं भी इस पानी से स्नान कर लूं.

तब राजा ने अपनी नाक पकड़कर पानी में डुबकी लगाई. जिसके बाद उनके पूरे शरीर का रोग खत्म हो गया. उसके बाद राजा को सपना आया कि पानी की तलैया में अंकुश प्रमाण के बराबर शिवलिंग है. जिन्हें वह वहां से लाकर कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित करें. स्थापित करने के बाद लगातार कहा जाता है कि शिवलिंग बढ़ता ही रहता है, जो आज करीब 2 से ढाई फीट ऊंचा हो गया है. शिवलिंग के नीचे मंदाकिनी कुंड बना हुआ है, जिसके पानी को यहां से हजारों लोग चर्म रोग के लिए ले जाते हैं. जो भी इस पानी से स्नान करता है, उसका चर्म रोग खत्म हो जाता है.

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सावन के महीने में यहां पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. कस्बे के भावसार समाज द्वारा यहां पर चांदी का मुकुट भी बनाया गया है. मगर शिवलिंग के छोटा बड़ा होने से वह आज तक भगवान भोलेनाथ के सिर की शोभा नहीं बन सका. जो सिर्फ भगवान कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यासरा में परिक्रमा के दौरान 5 किमी की पैदल परिक्रमा में आकर्षक का केंद्र रहता है. सावन के महीने में चारों सोमवार पर यहां पर भारी भीड़ उमड़ती है. जिसको लेकर पुलिस प्रशासन द्वारा यहां सुरक्षा व्यवस्थाएं की जाती है.

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यहां पर जिले का एकमात्र वेद विद्यापीठ स्कूल भी है, जहां से पूरे राजस्थान और मध्य प्रदेश के छात्र यहां पर पंडिताई शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं. कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर क्यासरा में कई राजनेता अपनी राजनीति की शुरुआत यहीं से करते हैं. जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी यहां से ही अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. यहां के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर में हेलीपैड भी बनाया हुआ है. सावन माह में यहां हर सोमवार को शिवलिंग पर आकर्षक श्रृंगार किया जाता है.

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