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Reality Check: झालावाड़ के आंगनबाड़ी केंद्रों की ये है हकीकत, यंत्रों के अभाव में कैसे होगा उजला होगा भारत का भविष्य - आंगनबाड़ी कार्यकर्ता

झालावाड़ जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी को कितना बेहतर तरीके से अंजाम दे पा रही हैं. ईटीवी भारत की टीम ने इस मामले पर गहरी पड़ताल की और जानने का प्रयास किया वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्र किन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.

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आंगनबाड़ी केंद्रों की ये है हकीकत
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Published : Aug 23, 2020, 10:58 PM IST

झालावाड़. भारत का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों के विकास की पहली सीढ़ी आंगनबाड़ी केंद्रों से होकर गुजरती है. जहां पर बच्चों के पोषण पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है ताकि बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर ना हो. ऐसे में झालावाड़ जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी को कितना बेहतर तरीके से अंजाम दे पा रही हैं. इसे जानने का प्रयास ईटीवी भारत की टीम ने किया. इस पड़ताल में कई चिंताजनक और चौंकाने वाली बातें निकल कर सामने आईं.

आंगनवाड़ी केंद्रों की ये है हकीकत

विभागीय जानकारी के अनुसार जिले में कुल 1,515 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या 1,475 है. जिले में इन आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 से 3 वर्ष तक के 54,077 बच्चे पंजीकृत हैं. वहीं 3 से 6 वर्ष तक के 37,552 बच्चों का पंजीकरण हो रखा है. इसके अलावा 11 से 14 वर्ष की 537 किशोरी बालिकाएं भी पंजीकृत हैं जो स्कूल नहीं जाती. ऐसे में उनके पोषण की जिम्मेदारी भी इन्हीं आंगनबाड़ी केंद्रों की होती है.

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आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का दौरा

पढ़ेंः बांसवाड़ा : वरदान बनी इंदिरा रसोई, नाश्ते के पैसों में दोनों वक्त भोजन कर पा रहे गरीब

ईटीवी भारत की टीम ने आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया. जिसमें सामने आया कि कोरोना वायरस के चलते वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्र तो खोले जा रहे हैं. लेकिन उनमें बच्चों को नहीं बुलाया जा रहा है. बच्चों के लिए पोषाहार या तो उनके घर पर जाकर वितरित किया जा रहा है या फिर उनके परिजनों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुला लिया जाता है और पोषाहार की सामग्री दे दी जाती है.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याएं...

इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कोरोना महामारी के दौरान उनके सामने आई समस्याओं के बारे में भी बताया. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि मेडिकल टीम को तो सुरक्षा के सारे उपकरण दे दिए जाते हैं. लेकिन उनके साथ हर वक्त सर्वे से लेकर सैंपलिंग का काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को समय से मास्क और सैनिटाइजर भी उपलब्ध नहीं करवाये जाते हैं. कार्यकर्ताओं ने बताया कि सर्वे, स्क्रीनिंग और सैंपलिंग के साथ-साथ क्वॉरेंटाइन करने का भी काम उनको सौंपा जाता है. वहीं प्रशासन के द्वारा उनको कोई सहयोग नहीं मिल पाता है. ऐसे में वे खुद अपने स्तर से लोगों के बीच जाकर ये काम करती हैं. कभी-कभी तो रात में जाकर उन्होंने लोगों को क्वॉरेंटाइन करने का काम किया है. इस दौरान लोगों के बुरे बर्ताव का भी उनको सामना करना पड़ता है.

आंगनबाड़ी केंद्रों की खामियां...

झालावाड़ जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों की बात करें तो उनमें कई प्रकार की खामियां है. जिनमें सबसे पहली तो यह कि जिले में 1,515 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिनमें 1,510 केंद्र संचालित हो रहे हैं. वहीं 5 केंद्र बन्द पड़े हैं. ये 5 आंगनबाड़ी केंद्र ऐसी जगहों पर बनाये गए हैं जो बारिश और अन्य किसी समस्या के कारण बन्द हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर भवानी मंडी के गंगपुरा का खेड़ा आंगनबाड़ी केंद्र जो डूब क्षेत्र में आने की वजह से बंद कर दिया गया है. बारिश खत्म होने के बाद ही शुरू किया जा सकेगा. ऐसे में 5 आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों के पोषण का क्या होगा इसका कोई जवाब नहीं है.

पदों की रिक्तता

झालावाड़ में चार सीडीपीओ के पद खाली है. वहीं 49 सेक्टर में से 22 सेक्टर पर सुपरवाइजर के पद भी खाली हैं. वहीं जिले में 35 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पद रिक्त हैं. ऐसे में आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों के विकास की गति बाधित होना भी सरकारी लापरवाही का एक उदाहरण है.

जिले के कई आंगनबाड़ी केंद्रों पर जरूरी सामानों का अभाव देखने को मिला. जिनमें सबसे मुख्य बच्चों के तुलाई के यंत्र का नहीं होना. इसको लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनको उपकरण उपलब्ध ही नहीं करवाए गए हैं. इसलिए उनको गर्भवती महिलाओं की तुलाई के यंत्रों से बच्चों को तोलना पड़ता है या फिर जुगाड़ करते हुए कई बार पहले महिला का वजन कर लिया जाता है.

पढ़ेंः कोरोना संक्रमण की भेंट चढ़ा कामां का भोजन थाली मेला और कुश्ती दंगल

उसके बाद उसकी गोद में बच्चे को देते हुए उसका वजन निकाला जाता है. ऐसे में जाहिर सी बात है कि बच्चे के तोलने का सही यंत्र नहीं होने से उसके बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती है. जिससे उसके पोषण में कमी रहने की संभावना बनी रहती है. वहीं कई आंगनबाड़ी केंद्रों पर पर्याप्त रोशनी और हवा की व्यवस्था भी नहीं है. इसके अलावा कई जगहों पर पीने के पानी की सुविधा भी नहीं मिल पाती है.

वहीं पोषाहार को लेकर भी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बड़ी प्रशासनिक लापरवाही देखी जा सकती है. इसको लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने बताया कि बच्चों का एनरोलमेंट लगातार बढ़ता रहता है. जिससे उनके केन्द्र पर बच्चों के पोषाहार की कमी पड़ती रहती है. क्योंकि बच्चों का पंजीकरण होने में एक महीना लग जाता है उसके बाद पोषाहार की मात्रा बढ़कर आने में एक महीना और लग जाता है, जिससे बच्चों के लिए पोषाहार की कमी भी देखने को मिलती है.

झालावाड़. भारत का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों के विकास की पहली सीढ़ी आंगनबाड़ी केंद्रों से होकर गुजरती है. जहां पर बच्चों के पोषण पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है ताकि बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर ना हो. ऐसे में झालावाड़ जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी को कितना बेहतर तरीके से अंजाम दे पा रही हैं. इसे जानने का प्रयास ईटीवी भारत की टीम ने किया. इस पड़ताल में कई चिंताजनक और चौंकाने वाली बातें निकल कर सामने आईं.

आंगनवाड़ी केंद्रों की ये है हकीकत

विभागीय जानकारी के अनुसार जिले में कुल 1,515 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. वहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या 1,475 है. जिले में इन आंगनबाड़ी केंद्रों में 6 से 3 वर्ष तक के 54,077 बच्चे पंजीकृत हैं. वहीं 3 से 6 वर्ष तक के 37,552 बच्चों का पंजीकरण हो रखा है. इसके अलावा 11 से 14 वर्ष की 537 किशोरी बालिकाएं भी पंजीकृत हैं जो स्कूल नहीं जाती. ऐसे में उनके पोषण की जिम्मेदारी भी इन्हीं आंगनबाड़ी केंद्रों की होती है.

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आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का दौरा

पढ़ेंः बांसवाड़ा : वरदान बनी इंदिरा रसोई, नाश्ते के पैसों में दोनों वक्त भोजन कर पा रहे गरीब

ईटीवी भारत की टीम ने आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए जमीनी हकीकत जानने का प्रयास किया. जिसमें सामने आया कि कोरोना वायरस के चलते वर्तमान में आंगनबाड़ी केंद्र तो खोले जा रहे हैं. लेकिन उनमें बच्चों को नहीं बुलाया जा रहा है. बच्चों के लिए पोषाहार या तो उनके घर पर जाकर वितरित किया जा रहा है या फिर उनके परिजनों को आंगनबाड़ी केंद्रों पर बुला लिया जाता है और पोषाहार की सामग्री दे दी जाती है.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्याएं...

इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने कोरोना महामारी के दौरान उनके सामने आई समस्याओं के बारे में भी बताया. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि मेडिकल टीम को तो सुरक्षा के सारे उपकरण दे दिए जाते हैं. लेकिन उनके साथ हर वक्त सर्वे से लेकर सैंपलिंग का काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को समय से मास्क और सैनिटाइजर भी उपलब्ध नहीं करवाये जाते हैं. कार्यकर्ताओं ने बताया कि सर्वे, स्क्रीनिंग और सैंपलिंग के साथ-साथ क्वॉरेंटाइन करने का भी काम उनको सौंपा जाता है. वहीं प्रशासन के द्वारा उनको कोई सहयोग नहीं मिल पाता है. ऐसे में वे खुद अपने स्तर से लोगों के बीच जाकर ये काम करती हैं. कभी-कभी तो रात में जाकर उन्होंने लोगों को क्वॉरेंटाइन करने का काम किया है. इस दौरान लोगों के बुरे बर्ताव का भी उनको सामना करना पड़ता है.

आंगनबाड़ी केंद्रों की खामियां...

झालावाड़ जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों की बात करें तो उनमें कई प्रकार की खामियां है. जिनमें सबसे पहली तो यह कि जिले में 1,515 आंगनबाड़ी केंद्र हैं. जिनमें 1,510 केंद्र संचालित हो रहे हैं. वहीं 5 केंद्र बन्द पड़े हैं. ये 5 आंगनबाड़ी केंद्र ऐसी जगहों पर बनाये गए हैं जो बारिश और अन्य किसी समस्या के कारण बन्द हो जाते हैं. उदाहरण के तौर पर भवानी मंडी के गंगपुरा का खेड़ा आंगनबाड़ी केंद्र जो डूब क्षेत्र में आने की वजह से बंद कर दिया गया है. बारिश खत्म होने के बाद ही शुरू किया जा सकेगा. ऐसे में 5 आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों के पोषण का क्या होगा इसका कोई जवाब नहीं है.

पदों की रिक्तता

झालावाड़ में चार सीडीपीओ के पद खाली है. वहीं 49 सेक्टर में से 22 सेक्टर पर सुपरवाइजर के पद भी खाली हैं. वहीं जिले में 35 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के पद रिक्त हैं. ऐसे में आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों के विकास की गति बाधित होना भी सरकारी लापरवाही का एक उदाहरण है.

जिले के कई आंगनबाड़ी केंद्रों पर जरूरी सामानों का अभाव देखने को मिला. जिनमें सबसे मुख्य बच्चों के तुलाई के यंत्र का नहीं होना. इसको लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि उनको उपकरण उपलब्ध ही नहीं करवाए गए हैं. इसलिए उनको गर्भवती महिलाओं की तुलाई के यंत्रों से बच्चों को तोलना पड़ता है या फिर जुगाड़ करते हुए कई बार पहले महिला का वजन कर लिया जाता है.

पढ़ेंः कोरोना संक्रमण की भेंट चढ़ा कामां का भोजन थाली मेला और कुश्ती दंगल

उसके बाद उसकी गोद में बच्चे को देते हुए उसका वजन निकाला जाता है. ऐसे में जाहिर सी बात है कि बच्चे के तोलने का सही यंत्र नहीं होने से उसके बारे में सही जानकारी नहीं मिल पाती है. जिससे उसके पोषण में कमी रहने की संभावना बनी रहती है. वहीं कई आंगनबाड़ी केंद्रों पर पर्याप्त रोशनी और हवा की व्यवस्था भी नहीं है. इसके अलावा कई जगहों पर पीने के पानी की सुविधा भी नहीं मिल पाती है.

वहीं पोषाहार को लेकर भी आंगनबाड़ी केंद्रों पर बड़ी प्रशासनिक लापरवाही देखी जा सकती है. इसको लेकर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने बताया कि बच्चों का एनरोलमेंट लगातार बढ़ता रहता है. जिससे उनके केन्द्र पर बच्चों के पोषाहार की कमी पड़ती रहती है. क्योंकि बच्चों का पंजीकरण होने में एक महीना लग जाता है उसके बाद पोषाहार की मात्रा बढ़कर आने में एक महीना और लग जाता है, जिससे बच्चों के लिए पोषाहार की कमी भी देखने को मिलती है.

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