झालावाड़. बगैर मिट्टी के, कम जगह में बड़ी मात्रा में सब्जी और औषधि उपजाने वाली खेती है हाइड्रोपोनिक फार्मिंग (Hydroponic farming in Jhalawar). ऐसी तकनीक जिसमें पानी के प्रयोग से ही खेती की जाती है. तकनीक के प्रयोग से पानी का दुरुपयोग भी नहीं होता है. झालावाड़ स्थित उद्यानिकी एवं वानिकी कॉलेज ने सफलता से ऐसा ही प्रयोग किया है.
यूं तो खेती की यह पद्धति पुरानी ही मानी जाती हैं, लेकिन इसका प्रचलन बिलकुल न के बराबर है. ऐसे में झालावाड़ की उद्यानिकी और वानिकी कॉलेज (college of horticulture and forestry Jhalawar) में हाइड्रोपोनिक खेती का प्रयोग सफल हो गया हैं. जिसमें हॉर्टिकल्चर कॉलेज ने 18 सब्जियां और 1 औषधीय पौधे का सफल उत्पादन करने में कामयाबी हासिल की है.
उद्यानिकी और वानिकी कॉलेज के डीन आईबी मौर्य इस उपलब्धि को अहम मानते हैं. इस खेती से संबंधित बारिकियों को स्पष्ट करते हैं. कहते हैं- हाइड्रोपोनिक खेती का सीधा सा अर्थ है कम क्षेत्रफल और संसाधनों में अधिक उत्पादन. इसे बिना मिट्टी से की जाने वाली खेती भी कहा जाता है. हाइड्रोपोनिक खेती में बिना जमीन के छोटी सी जगह में पानी की बचत करते हुए अधिक उत्पादन किया जाता है.
जिस तरह की ये खेती है उससे साफ है कि सिकुड़ती दुनिया और बढ़ती आबादी के लिए ये लाजवाब साबित होगी. जैसा कि एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कम जगह में, बगैर मिट्टी के पानी में घुले पोषक तत्वों से खेती लाभकारी साबित हो सकती है.
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आईए समझते हैं कैसे होती है हाइड्रोपोनिक फार्मिंग: इसके लिए जरूरी संसाधनों में वाटर टैंक, पानी की मोटर, पानी में हवा पहुंचाने के लिए एरेटर (Aerator) की जरूरत पड़ती है. इनको व्यवस्थित रूप से तैयार करने के बाद पौधों को एक प्लास्टिक के डिब्बे में जिसमें साइड और नीचे से छेद रहते हैं उनमें रखा जाता है. उनको बनाए गए ढांचे में रख दिया जाता है. हाइड्रोपोनिक का ढांचा सुविधानुसार हॉरिजॉन्टल और वर्टिकल दोनों तरीके से बनाया जा सकता है. इनमें हर घंटे पानी की सप्लाई की जाती है.
पौधों के लिए 16 तरह के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है. जिसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटाश और सल्फर है. जिनको जरूरत के अनुसार सीधे पानी में घोल दिया जाता है. जो पौधों में पहुंच जाते हैं. दरअसल, मृदा में पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है जिससे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन नहीं मिल पाता है और इसी कमी को हाइड्रोपोनिक फार्मिंग दूर करती है. इसमें पोषक तत्वों को आसानी से जरूरत के अनुसार सीधा पौधे के अंदर पहुंचा दिया जाता है.
हाइड्रोपोनिक खेती के दौरान सबसे ज्यादा सावधानी पीएच और टीडीएस की मात्रा में रखा जानी चाहिए. पौधों को जो पानी दिया जा रहा है उसका पीएच 7 से ज्यादा नहीं होना चाहिए और टीडीएस की मात्रा 1500 से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
हाइड्रोपोनिक खेती से होने वाले फायदे: इसमें (Hydroponic farming in Jhalawar) सबसे बड़ा फायदा पानी का होता है. सामान्य खेती में जहां एक बीघा के लिए 20 लाख लीटर की पानी जरूरत होती है वहीं तकनीक इसे काफी कम कर देती है. हाइड्रोपोनिक खेती में 2.50 लाख लीटर पानी से ही काम चल जाता है. कम जगह में अच्छी फसल इसकी खूबी है. जिससे समय और मेहनत की भी बचत होती है. तीसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें पोषक तत्व सीधे फसलों तक पहुंच जाते हैं. हानिकारक बैक्टीरिया का इसमें कोई इफेक्ट नहीं होता है. जिससे हमारे स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.