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स्पेशल रिपोर्ट: पहले बाढ़ की मार झेली, अब मंडियों के भाव रुला रहे...झालावाड़ के 'धरती पुत्र'

झालावाड़ के किसान जहां पहले अपनी 80 से 90 प्रतिशत तक फसलें बाढ़ में गंवा चुके हैं. वहीं अब बचा-कुचा माल जब वो मंडियों में लेकर जा रहे हैं तो उनका सही भाव नहीं मिल पा रहा है.

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Published : Nov 7, 2019, 1:11 PM IST

झालावाड़. जिले में इस बार मानसून का जबरदस्त कहर देखने को मिला था. मानसून के दौरान हुई भारी बारिश के चलते जिले में बाढ़ आ गई थी, जिसमें हर एक वर्ग के लोगों को परेशान होना पड़ा था. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा किसान वर्ग प्रभावित हुआ था. आलम ये है कि बाढ़ की मार किसानों को अभी भी झेलनी पड़ रही है.

झालावाड़ के किसान मंडी में फसलों की कीमतों से नाखुश

बता दें कि किसान पहले बाढ़ अतिवृष्टि के चलते अपनी 80 से 90 प्रतिशत तक फसलें गवा चुके हैं. ऐसे में जो बची कुची फसलें तैयार हो पाई थी, उनके भी दाम किसानों को सही से नहीं मिल पा रहे हैं. किसान तैयार माल को मंडी में लेकर आ रहे हैं, लेकिन फसलों के भाव किसानों को रुला रहे हैं. झालावाड़ में मुख्य तौर पर सोयाबीन और उड़द की खेती की जाती है. ऐसे में इस बार सोयाबीन का भाव 3 हजार 700 से 4 हजार रुपये क्विंटल के बीच में है. वहीं उड़द का भाव 5 हजार 700 से 6 हजार रुपये क्विंटल है.

किसानों ने बताया कि उनका माल 2 हजार 500 से 3 हजार रुपये क्विंटल के बीच में ही बिक रहा है. जितना बीज उन्होंने बुवाई के वक्त खेतों में लगाया था, उतना भी बीज खेतों से नहीं निकल पाया है. जब वो तैयार माल को मंडियों में बेचने के लिए आ रहे हैं तो उनको बहुत ही कम भाव मिल रहे हैं. किसानों ने बताया कि इस बार खेती के लिए उनको जेब से पैसे लगाने पड़े हैं. उन्होंने जो बीज, खाद और मजदूरी की थी, उसकी रकम भी उनको इस फसल से नहीं मिल पाई है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह भारी बारिश रही है.

यह भी पढ़ें :छत्तीसगढ़ : नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में CRPF का जवान शहीद

किसानों का कहना है कि भारी बारिश की वजह से सोयाबीन के पौधे गल गए और उनमें सोयाबीन का दाना अच्छे से तैयार नहीं हो पाया और काला पड़ गया. ऐसे में व्यापारी भी किसानों के माल को देखकर मुंह फेर रहें हैं. साथ ही कहा कि जो हो गया वह तो हो गया, लेकिन उपज का उचित दाम नहीं मिल पाने के कारण अब उनके सामने रबी की फसल की बुवाई का संकट भी खड़ा हो गया है.

झालावाड़. जिले में इस बार मानसून का जबरदस्त कहर देखने को मिला था. मानसून के दौरान हुई भारी बारिश के चलते जिले में बाढ़ आ गई थी, जिसमें हर एक वर्ग के लोगों को परेशान होना पड़ा था. लेकिन इसमें सबसे ज्यादा किसान वर्ग प्रभावित हुआ था. आलम ये है कि बाढ़ की मार किसानों को अभी भी झेलनी पड़ रही है.

झालावाड़ के किसान मंडी में फसलों की कीमतों से नाखुश

बता दें कि किसान पहले बाढ़ अतिवृष्टि के चलते अपनी 80 से 90 प्रतिशत तक फसलें गवा चुके हैं. ऐसे में जो बची कुची फसलें तैयार हो पाई थी, उनके भी दाम किसानों को सही से नहीं मिल पा रहे हैं. किसान तैयार माल को मंडी में लेकर आ रहे हैं, लेकिन फसलों के भाव किसानों को रुला रहे हैं. झालावाड़ में मुख्य तौर पर सोयाबीन और उड़द की खेती की जाती है. ऐसे में इस बार सोयाबीन का भाव 3 हजार 700 से 4 हजार रुपये क्विंटल के बीच में है. वहीं उड़द का भाव 5 हजार 700 से 6 हजार रुपये क्विंटल है.

किसानों ने बताया कि उनका माल 2 हजार 500 से 3 हजार रुपये क्विंटल के बीच में ही बिक रहा है. जितना बीज उन्होंने बुवाई के वक्त खेतों में लगाया था, उतना भी बीज खेतों से नहीं निकल पाया है. जब वो तैयार माल को मंडियों में बेचने के लिए आ रहे हैं तो उनको बहुत ही कम भाव मिल रहे हैं. किसानों ने बताया कि इस बार खेती के लिए उनको जेब से पैसे लगाने पड़े हैं. उन्होंने जो बीज, खाद और मजदूरी की थी, उसकी रकम भी उनको इस फसल से नहीं मिल पाई है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह भारी बारिश रही है.

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किसानों का कहना है कि भारी बारिश की वजह से सोयाबीन के पौधे गल गए और उनमें सोयाबीन का दाना अच्छे से तैयार नहीं हो पाया और काला पड़ गया. ऐसे में व्यापारी भी किसानों के माल को देखकर मुंह फेर रहें हैं. साथ ही कहा कि जो हो गया वह तो हो गया, लेकिन उपज का उचित दाम नहीं मिल पाने के कारण अब उनके सामने रबी की फसल की बुवाई का संकट भी खड़ा हो गया है.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट

झालावाड़ के किसान जहां पहले अपनी 80 से 90% तक फसलें बाढ़ में गंवा चुके हैं वहीं अब बचा कुचा माल जब वो मंडियों में लेकर आ रहे हैं तो उनका सही भाव नहीं मिल पा रहा है।


Body:झालावाड़ में इस बार मानसून का जबरदस्त कहर देखने को मिला था। मानसून के दौरान हुई भारी बारिश के चलते जिले में बाढ़ आ गई थी जिसमें हर एक वर्ग के लोगों को परेशान होना पड़ा था लेकिन इसमें सबसे ज्यादा किसान वर्ग को प्रभावित हुआ था। आलम ये है कि बाढ़ की मार किसानों को अभी भी झेलनी पड़ रही है। जहां किसान पहले बाढ़ अतिवृष्टि के चलते अपनी 80 से 90% तक फसलें गवा चुके हैं ऐसे में जो बची कुची फसलें तैयार हो पाई थी उनके भी दाम किसानों को सही से नहीं मिल पा रहे हैं। किसान तैयार माल को मंडी में लेकर आ रहे हैं लेकिन फसलों के भाव किसानों को रुला रहे हैं। झालावाड़ में मुख्यतः सोयाबीन व उड़द की खेती की जाती है। ऐसे में इस बार सोयाबीन का भाव 3700 से 4000 रुपये क्विंटल के बीच में है तो वहीं उड़द का भाव 5700 से 6000 रुपये क्विंटल है लेकिन जब हमने किसानों से बात की तो उन्होंने बताया कि उनका माल 2500 से 3000 रुपये क्विंटल के बीच में ही बिक रहा है।

किसानों ने बताया कि जितना बीज उन्होंने बुवाई के वक्त खेतों में लगाया था उतना भी बीज खेतों से नहीं निकल पाया है और जब वो तैयार माल को मंडियों में बेचने के लिए आ रहे हैं तो उनको बहुत ही कम भाव मिल रहे हैं।

किसानों ने बताया कि इस बार खेती के लिए उनको जेब से पैसे लगाने पड़े हैं। उन्होंने जो बीज, खाद व मजदूरी की थी उसकी रकम भी उनको इस फसल से नहीं मिल पाई है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह भारी बारिश रही है। किसानों ने बताया कि भारी बारिश की वजह से सोयाबीन के पौधे गल गए तथा उनमें सोयाबीन का दाना अच्छे से तैयार नहीं हो पाया और काला पड़ गया। ऐसे में व्यापारी भी किसानों के माल की देखकर मुंह फेर रहें हैं।

किसानों का कहना है कि जो हो गया वह तो हो गया लेकिन उपज का उचित दाम नहीं मिल पाने के कारण अब हमारे सामने रबी की फसल की बुवाई का संकट भी खड़ा हो गया है


Conclusion:बाइट 1 - शंकरलाल
बाइट 2 - जगदीश
बाइट 3 - जयलाल
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