मनोहरथाना (झालावाड़). जिले के मनोहरथाना क्षेत्र के विभिन इलाकों में कामखेड़ा जावर नान्देड़ा में बछ बारस को लेकर महिलाओं ने की पूजा. परंपरा अनुसार गांव ढाणी कस्बों शहरों में आज सुहागिन महिलाओं ने अपने पुत्र के अच्छे जीवन की मंगलकामनाओं और पुत्र प्राप्ति के लिए बछबारस की पूजा की.
बछ बारस के दिन अंकुरित चने, मटर, मोठ, मुंगयुक्त का भोजन बनाया गया. इस दिन महिलाएं गाय के दूध और उससे बनी वस्तुओं का, जौ और गेहूं का प्रयोग नहीं करेंगी. महिलाओं ने गोबर का ओगड़ा बना कर उसकी पूजा की. वहीं, महिलाएं आज के दिन कटा हुआ खाने का सेवन नहीं करती है. महिलाएं गाय को वस्त्र ओढ़ाकर उसकी और उसके बछड़े की पूजा की और खाने में मोठ, चने की सब्जियां, मक्के बाजरे की रोटी, चने की दाल का भोजन बना कर भोग लगाया और बछ बारस के महत्व की महिलाओं ने कहानी भी सुनी.
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कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहा है. इसे बछ बारस या बाघ बारस भी कहा जाता है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा होती है तो आइए हम आपको गोवत्स द्वादशी के बारे में कुछ खास जानकारी देते हैं. जानें गोवत्स द्वादशी के बारे में गोवत्स द्वादशी के दिन गाय और बछडे की पूजा करने का खास महत्व है.
द्वादशी के दिन अगर घर में गाय और बछड़ा न मिले तो आस-पास किसी गाय की पूजा की जानी चाहिए. इसके अलावा मिट्टी के भी गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. गोवत्स द्वादशी के दिन यह पूजा गोधुली बेला में की जाती है. ऐसा माना जाता है कि सभी देवी-देवताओं एवं अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए गौसेवा से बढ़कर कोई पूजा नहीं है. गोवत्स द्वादशी की महत्ता के कारण ही अपने संतान की सलामती तथा परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है. इस त्यौहार पर लोग अपने घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बना कर खाते हैं और खुशियां मनाते हैं.
गोवत्स द्वादशी का महत्व...
ऐसी मान्यता है कि गोवत्स द्वादशी की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है. यह निःसंतान दम्पत्तियों के लिए विशेष फलदायी होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन सदैव सात्त्विक गुणों वाले कर्म करने चाहिए. गोवत्स द्वादशी के दिन गाय माता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गाय की पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि गाय की पूजा करने से विष्णु भगवान प्रसन्न होकर आर्शीवाद देते हैं.
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परंपरा अनुसार गांव ढाणी कस्बों शहरों में आज सुहागिन महिलाओं ने अपने पुत्र के अच्छे जीवन की मंगलकामनाओं और पुत्र प्राप्ति के लिए बछ बारस की पूजा की. बछ बारस के दिन अंकुरित चने,मटर, मोठ,मुंगयुक्त का भोजन बनाया गया.इस दिन महिलाओं द्वारा गाय के दूध व उससे बनी वस्तुओं का तथा जौ व गेहूँ के प्रयोग नही करेगी.महिलाओं ने गोबर का ओगड़ा बना कर उसकी पूजा की.वही महिलाएं आज के दिन कटा हुआ खाने का सेवन नही करती है.महिलाएं गाय को वस्त्र ओढ़ाकर उसकी व उसके बछड़े की पूजा की तथा खाने में मोठ,चने की सब्जियां, मक्की बाजरे की रोटी,चने की दाल का भोजन बना कर भोग लगाया और बछ बारस के महत्व की महिलाओं ने कहानी भी सुनी. कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहा है. इसे बछ बारस या बाघ बरस भी कहा जाता है. इस दिन गाय और बछड़े की पूजा होती है तो आइए हम आपको गोवत्स द्वादशी के बारे में कुछ खास जानकारी देते हैं.
जानें गोवत्स द्वादशी के बारे में...
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय तथा बछेडे की पूजा करने का खास महत्व है. द्वादशी के दिन अगर घर में गाय और बछड़ा न मिले तो आसपास किसी गाय की पूजा की जानी चाहिए. इसके अलावा मिट्टी के भी गाय और बछड़े की पूजा की जाती है. गोवत्स द्वादशी के दिन यह पूजा गोधुली बेला में की जाती है. ऐसा माना जाता है कि सभी देवी-देवताओं एवं अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए गौसेवा से बढ़कर कोई पूजा नहीं है. गोवत्स द्वादशी की महत्ता के कारण ही अपने संतान की सलामती तथा परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है. इस त्यौहार पर लोग अपने घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बना कर खाते हैं और खुशियां मनाते हैं.