भीनमाल (जालोर). राजस्थान की धरती यू ही नहीं वीरों की धरती कहलाती है. कई महान योद्धा ने इस धरती पर ही जन्म लिया है. उस में से एक नाम है बारवटिया सिरदार राव भोजराज सिंह लोल. पश्चिम राजस्थान में जसवंतपुरा तहसील के मनधर गांव में सन् 1517 में एक महान योद्धा हुए, जो जीवन भर तक लोगों की रक्षा करने के लिए लड़ते रहे. कहा जाता है कि वह एकमात्र पुरुष हैं, जिनके शरीर में स्वाभिमान की लड़ाई लड़ते हुए अग्नि प्रज्ज्वलित हुई और सती के रूप में अमर हो गए.
बाण तू ही ब्रह्माणी, मां बायण सू विख्यात
सूर संत सुमरे सदा, भोजो लोल है मात
मारवाड़ के बारवटिया सिरदार भोजराज लोल की वीर गाथा :
महान योद्धाओं को बारवटिया की उपाद्धि दी जाती थी. मेवाड़ में सिरदार कल्ला राठौड़ और मारवाड़ में राव भोजराज सिंह बारवटिया सिरदार हुए. उन्होंने 18 साल की आयु में ही घर बार छोड़ कर जीवन कल्याणकारी कार्यों में समर्पित कर दिया. जीवन भर दूसरों की रक्षा करने में ही अपना जीवन बीताया.
गोगुंदा में राजदान चारण की गायों को अफगानी फौजी से छुड़ाया. जालोर का गढ़ जीतकर जालोर शासक खान पठान को बंदी बनाया. गुजरात बादशाही सेना को परास्त किया. दांतलावास पर जोधपुर शासक चंद्रसेन ने भीमसेन के नेतृत्व में हमला किया. सागी नदी में राव भोजाजी ने उनका सामना किया और सती के रुप में हमेशा के लिए अमर हो गए.
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वर्तमान में भी अष्टमी को सागी नदी में उमड़ते है लोग :
राव भोजाजी लोल का सतीत्व प्राप्त स्थल दांतलावास और राजीकावास गांव की सरहद पर स्थित बहने वाली सागी नदी में स्थित है. जहां हर मास की अष्टमी के दिन भक्तों की भीड़ अपना शीश नमाने जाती है.
कहा जाता है कि दाता हर सच्चे मन से आए हुए भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं. मनधर गांव में इनका देवरा बना हुआ है. जहां पर हर मास की आठम और दशमी पक्ष को मेला लगता है और दुखी पीड़ित लोगों की सच्चे मन से की गई मनोकामना पूरी होती है.