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जालौर में स्कूल जाना....हिमालय पर चढ़ने से कम नहीं...देखें वीडियो - 6 months

जहां एक तरफ प्रदेश भर में शिक्षा विभाग द्वारा छोटे बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए अभियान चलाया जा रहा है,तो वहीं दूसरी तरफ जालौर जिले में एक जगह ऐसी भी है जहां पिछले 6 महीनों से स्कूली बच्चे ही स्कूल छोड़ने पर मजबूर है.दरअसल,स्कूल में प्रवेश करने के लिए बने रास्ते पर सड़क निर्माण के लिए खुदाई कर दी गई है.जिसके चलते सड़क के लेवल से स्कूल की ऊँचाई तकरीबन 20 फीट ऊपर हो गई जिसे पार कर पाना बच्चों के लिए किसी आफत से कम नहीं.

सड़क निर्माण के कारण स्कूल में प्रवेश करने के मुख्य रास्ते में पड़ी अड़चन
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Published : Jul 26, 2019, 3:23 PM IST

Updated : Jul 26, 2019, 7:12 PM IST

जालौर.जिले में सड़क निर्माण के चलते बच्चों को स्कूल में प्रवेश करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ,एक तरफ जिले में छोटे बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए प्रवेशोत्सव अभियान चलाया जा रहा है जिसमें करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे है,दूसरी तरफ जिले में एक स्कूल ऐसा भी है जहां पढ़ने जा रहे बच्चे शिक्षा विभाग व 'भारतमाला परियोजना' के अधिकारियों की लापरवाही के चलते स्कूल छोड़ने पर मजबूर है.


जी हां,हम बात कर रहे हैं चितलवाना उपखंड के अगड़ावा गांव के जाखड़ों की ढाणी स्कूल की,जहां छोटे बच्चों के सामने शिक्षा के मंदिर में जाना भी किसी पर्वतीय चोटी को फतेह करने से कम नहीं है.जिसके कारण अभिभावक किसी प्रकार की अनहोनी होने के डर से छोटे बच्चों के साथ स्कूल छोड़ने तक आते हैं और दीवार फांद कर या छोटे बच्चे अपने स्तर पर घुटनों के बल होकर स्कूल में पहुंचते है.


यह कोई नई समस्या नहीं बल्कि प्रसासन के जानकारी में पिछले 6 माह से ऐसा होता आ रहा है .लेकिन अभी तक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है .स्कूल में अध्ययन करवाने वाले अध्यापकों में से एक अध्यापक दृष्टिहीन है जिसके लिए भी स्कूल पहुंचना जंग लड़ने के बराबर है,लेकिन पापी पेट के लिए दीवार फांद कर नेत्रहीन अध्यापक स्कूल आता है.स्कूल में नामांकित 40 व अनामांकित 10 बच्चों का भविष्य अंधेरे में है.ऐसे में ये सवाल खड़ा हो रहा है कि जिस प्रकार से स्कूल में आने का रास्ता पिछले 6 माह से बंद है,उसे देखते हुए शिक्षा विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों को इससे अवगत करवाने के बावजूद कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है ?


स्कूल का मुख्य रास्ता बंद होने की शिकायत पर ईटीवी भारत की टीम जालोर जिला मुख्यालय से 200 किमी स्कूल पहुंची. वहां पहुंचकर देखा कि स्कूल का मुख्य गेट जमीन स्तर से तकरीबन 20 फ़ीट ऊंचा था.और छोटे बच्चों के लिए ऊपर जाने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था.छोटे बच्चे एक दूसरे बच्चों की मदद से स्कूल पहुंचते है.

सड़क निर्माण के कारण स्कूल में प्रवेश करने के मुख्य रास्ते में पड़ी अड़चन


इस संबंध में अभिभावकों से पूछताछ करने पर पता चला कि जाखड़ों की ढाणी स्कूल के आगे भारतमाला परियोजना के तहत सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है,जिसमें काम करने वाली कंपनी ने निर्माण कार्य के लिए स्कूल के आगे करीबन 20 फ़ीट से ज्यादा की खुदाई कर दी गई है.जिसके बाद स्कूल आने-जाने का रास्ता पूरी तरह से बन्द हो गया है.स्कूल में पानी का टैंक तो बना हुआ है लेकिन पानी का सप्लाई नहीं हो पाने के कारण छोटे बच्चों को पानी की बोतले घर से लानी पड़ती है.पोषाहार सामग्री भी नहीं पहुंच पाती है.

बता दें कि,सभी सरकारी स्कूलों में राज्य सरकार पोषाहार सामग्री भेजती है जिसको स्कूल तक पहुंचाए जाने में दिक्कतें आ रही हैं.इस संदर्भ में शिक्षकों ने बताया कि पोषाहार सामग्री ठेकेदार गाड़ी लेकर देने के लिए आता है लेकिन सड़क से स्कूल की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण बाहर सड़क पर ही छोड़ कर जाता है जिसके बाद आसपास के ग्रामीणों के मदद से सामग्री को स्कूल में रखवाया जाता है.इस समस्या को लेकर हल्के के पीईओ को अवगत भी करवाया था लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.


खुदाई के कारण स्कूल की दीवार व शौचालय भी गिरने के कगार पर हैं .ऐसे में अगर दीवार या शौचालय भवन गिरते हैं तो जन-हानि हो सकती है.समस्या को लेकर अभिभावकों ने गुस्सा जताते हुए कहा कि समस्या के समाधान की उम्मीद लेकर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ वन व पर्यावरण मंत्री सुखराम बिश्नोई को भी ज्ञापन सौंपा है लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.उन्होंने अल्टीमेटम दिया कि अगर प्रशासन द्वारा कार्यवाही करके स्कूल में आने -जाने का रास्ता ठीक नहीं करवाया गया तो स्कूल का तालाबंदी करके सड़क-मार्ग निर्माण कार्य बंद करवाकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी.अब ये देखना होगा कि चेतावनी के बाद प्रशआसन की आंखें खुलती हैं या नहीं?

जालौर.जिले में सड़क निर्माण के चलते बच्चों को स्कूल में प्रवेश करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ,एक तरफ जिले में छोटे बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए प्रवेशोत्सव अभियान चलाया जा रहा है जिसमें करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे है,दूसरी तरफ जिले में एक स्कूल ऐसा भी है जहां पढ़ने जा रहे बच्चे शिक्षा विभाग व 'भारतमाला परियोजना' के अधिकारियों की लापरवाही के चलते स्कूल छोड़ने पर मजबूर है.


जी हां,हम बात कर रहे हैं चितलवाना उपखंड के अगड़ावा गांव के जाखड़ों की ढाणी स्कूल की,जहां छोटे बच्चों के सामने शिक्षा के मंदिर में जाना भी किसी पर्वतीय चोटी को फतेह करने से कम नहीं है.जिसके कारण अभिभावक किसी प्रकार की अनहोनी होने के डर से छोटे बच्चों के साथ स्कूल छोड़ने तक आते हैं और दीवार फांद कर या छोटे बच्चे अपने स्तर पर घुटनों के बल होकर स्कूल में पहुंचते है.


यह कोई नई समस्या नहीं बल्कि प्रसासन के जानकारी में पिछले 6 माह से ऐसा होता आ रहा है .लेकिन अभी तक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है .स्कूल में अध्ययन करवाने वाले अध्यापकों में से एक अध्यापक दृष्टिहीन है जिसके लिए भी स्कूल पहुंचना जंग लड़ने के बराबर है,लेकिन पापी पेट के लिए दीवार फांद कर नेत्रहीन अध्यापक स्कूल आता है.स्कूल में नामांकित 40 व अनामांकित 10 बच्चों का भविष्य अंधेरे में है.ऐसे में ये सवाल खड़ा हो रहा है कि जिस प्रकार से स्कूल में आने का रास्ता पिछले 6 माह से बंद है,उसे देखते हुए शिक्षा विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों को इससे अवगत करवाने के बावजूद कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है ?


स्कूल का मुख्य रास्ता बंद होने की शिकायत पर ईटीवी भारत की टीम जालोर जिला मुख्यालय से 200 किमी स्कूल पहुंची. वहां पहुंचकर देखा कि स्कूल का मुख्य गेट जमीन स्तर से तकरीबन 20 फ़ीट ऊंचा था.और छोटे बच्चों के लिए ऊपर जाने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था.छोटे बच्चे एक दूसरे बच्चों की मदद से स्कूल पहुंचते है.

सड़क निर्माण के कारण स्कूल में प्रवेश करने के मुख्य रास्ते में पड़ी अड़चन


इस संबंध में अभिभावकों से पूछताछ करने पर पता चला कि जाखड़ों की ढाणी स्कूल के आगे भारतमाला परियोजना के तहत सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है,जिसमें काम करने वाली कंपनी ने निर्माण कार्य के लिए स्कूल के आगे करीबन 20 फ़ीट से ज्यादा की खुदाई कर दी गई है.जिसके बाद स्कूल आने-जाने का रास्ता पूरी तरह से बन्द हो गया है.स्कूल में पानी का टैंक तो बना हुआ है लेकिन पानी का सप्लाई नहीं हो पाने के कारण छोटे बच्चों को पानी की बोतले घर से लानी पड़ती है.पोषाहार सामग्री भी नहीं पहुंच पाती है.

बता दें कि,सभी सरकारी स्कूलों में राज्य सरकार पोषाहार सामग्री भेजती है जिसको स्कूल तक पहुंचाए जाने में दिक्कतें आ रही हैं.इस संदर्भ में शिक्षकों ने बताया कि पोषाहार सामग्री ठेकेदार गाड़ी लेकर देने के लिए आता है लेकिन सड़क से स्कूल की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण बाहर सड़क पर ही छोड़ कर जाता है जिसके बाद आसपास के ग्रामीणों के मदद से सामग्री को स्कूल में रखवाया जाता है.इस समस्या को लेकर हल्के के पीईओ को अवगत भी करवाया था लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.


खुदाई के कारण स्कूल की दीवार व शौचालय भी गिरने के कगार पर हैं .ऐसे में अगर दीवार या शौचालय भवन गिरते हैं तो जन-हानि हो सकती है.समस्या को लेकर अभिभावकों ने गुस्सा जताते हुए कहा कि समस्या के समाधान की उम्मीद लेकर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ वन व पर्यावरण मंत्री सुखराम बिश्नोई को भी ज्ञापन सौंपा है लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.उन्होंने अल्टीमेटम दिया कि अगर प्रशासन द्वारा कार्यवाही करके स्कूल में आने -जाने का रास्ता ठीक नहीं करवाया गया तो स्कूल का तालाबंदी करके सड़क-मार्ग निर्माण कार्य बंद करवाकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी.अब ये देखना होगा कि चेतावनी के बाद प्रशआसन की आंखें खुलती हैं या नहीं?

Intro:प्रदेश में शिक्षा विभाग द्वारा छोटे बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन एक जगह ऐसा मामला है की स्कूल से जुड़े बच्चे ही स्कूल छोड़ने को मजबूर है। स्कूल के अंदर जाने के लिए रास्ते जो था उस जगह सड़क निर्माण के लिए खुदाई कर दी। जिसके कारण सड़क के लेवल से स्कूल की ऊँचाई करीबन 20 फीट उपर हो गई है।


Body:आसमान में झूलती स्कूल में प्रवेश नहीं कर पा रहे है छोटे बच्चे, रेत में दफन हो सकते है नोनिहाल, जिम्मेदार अधिकारी नहीं दे रहे है ध्यान जालोर प्रदेश में इन दिनों छोटे बच्चो को स्कूल से जोड़ने के लिए प्रवेशोत्सव अभियान चलाया जा रहा है जिसमें करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे है, लेकिन एक स्कूल ऐसी भी है जहां पर पढ़ने वाले बच्चे शिक्षा विभाग व भारतमाला परियोजना के अधिकारियों की लापरवाही के चलते स्कूल छोड़ने पर मजबूर है। हम बात कर रहे है चितलवाना उपखंड के अगड़ावा गांव के जाखड़ों की ढाणी स्कूल की, जहां पर स्कूल खुद आसमान में झूल रही है। छोटे बच्चों के सामने शिक्षा के मंदिर में जाना भी किसी कारगिल को फतेह करने के बराबर है। जिसके कारण अभिभावक किसी अनहोनी के डर के कारण छोटे बच्चों के साथ स्कूल तक आते है और दीवार फांद कर या छोटे बच्चे अपने स्तर में घुटनो के बल होकर स्कूल में पहुंचते है। यह समस्या पिछले 6 माह से बनी हुई है लेकिन आज तक शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कोई ध्यान तक नहीं दिया है। स्कूल में अध्ययन करवाने वाले अध्यापकों में से एक अध्यापक भी दृष्टिहीन है जिसके लिए भी स्कूल में पहुंचना भी काफी मुश्किल है, लेकिन पापी पेट के लिए दीवार फांद कर नेत्रहीन अध्यापक स्कूल आता है। स्कूल में नामांकित 40 व अनामांकित 10 बच्चों के भविष्य पर बर्बाद हो रहा है। ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि इस प्रकार स्कूल में आने का रास्ता 6 माह से बंद है, लेकिन शिक्षा विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों को अवगत करवाने के बावजूद कोई कदम क्यों नहीं उठाया। इस स्कूल के मुख्य रास्ता बंद होने की शिकायत पर ईटीवी भारत की टीम जालोर जिले मुख्यालय से 200 किमी दूर पहुंची और मौका देखा तो स्कूल का मुख्य गेट जमीन लेवल से करीबन 20 फ़ीट ऊपर आसमान में था, जबकि छोटे बच्चों के लिए ऊपर जाने का कोई रास्ता नहीं था। छोटे बच्चे एक दूसरे बच्चों की मदद से स्कूल में पढ़ने के लिए पहुंचते है। इस संबंध में अभिभावकों से जाना तो पता चला कि जाखड़ों की ढाणी स्कूल के आगे भारतमाला परियोजना के तहत सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है, जिसमें काम करने वाली कंपनी ने निर्माण कार्य के लिए स्कूल के आगे करीबन 20 फ़ीट से ज्यादा की खुदाई कर दी। जिसके बाद स्कूल में आने जाने का रास्ता पूरी तरह बन्द हो गया। अब ग्रामीण अपने छोटे बच्चों को खुद स्कूल छोड़ने आते है और सहारा देकर या दीवार फांद कर बच्चों को स्कूल में छोड़कर जाते है। ऐसे में अभिभावकों को अनहोनी का डर भी सता रहा है कि स्कूल में छोड़ने के बाद कहीं कोई हादसा नहीं हो जाये। वहीं आसमान में झूलती स्कूल में पानी का टांका बना हुआ है लेकिन पानी का टैंकर स्कूल में नहीं आने के कारण छोटे बच्चों को पानी की बोतले घर से लानी पड़ती है। पोषाहार सामग्री भी नहीं पहुंच पाती है स्कूल में राज्य सरकार में सरकारी स्कूलों में पोषाहार सामग्री भेजती है जिसको भी स्कूल में लेकर जाना भारी पड़ता है। शिक्षकों ने बताया की पोषाहार सामग्री ठेकेदार गाड़ी लेकर देने के लिए आता है लेकिन सड़क से स्कूल की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण बाहर सड़क पर ही छोड़ कर जाता है जिसके बाद आसपास के ग्रामीणों को बुलाकर सामग्री को स्कूल में रखनी पड़ती है। इस समस्या को लेकर हल्के के पीईओ को अवगत भी करवाया था लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। स्कूल में शौचालय भी गिरने के कगार पर, हो सकता है बड़ा हादसा चितलवाना के अगड़ावा गांव में जाखड़ों की ढाणी स्कूल के आगे सड़क निर्माण के लिए खुदाई की गई है। जिसके कारण अब स्कूल सड़क लेवल से 20 फ़ीट उपर हो चुकी है। वहीं खुदाई के कारण स्कूल की दीवार व शौचालय भी गिरने के कगार पर पहुंच गए है। ऐसे में स्कूल में छोटे बच्चे शौचालय के लिए जाते है और अगर दीवार या शौचालय भवन गिरते है तो जन हानि हो सकती है। इसी समस्या को लेकर अभिभावकों ने गुस्सा जताते हुए कहा को समस्या के समाधान को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ वन व पर्यावरण मंत्री सुखराम बिश्नोई को भी ज्ञापन देकर आये है लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है। उन्होंने अल्टीमेटम दिया कि अगर प्रशासन द्वारा कार्यवाही करके स्कूल में आने जाने का रास्ता ठीक नहीं करवाया गया तो स्कूल के तालाबंदी करके सड़क मार्ग का निर्माण कार्य बंद करवाकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की रहेगी। बाईट- भाखराराम बिश्नोई, अभिभावक बाईट- हापुराम सुथार, अभिभावक बाईट- हजारी ऐचरा, अभिभावक बाईट- जीवन भील, दृष्टिहीन शिक्षक बाईट- ओमप्रकाश, प्रधानाध्यापक राजकीय स्कूल जाखड़ों की ढाणी


Conclusion:इस खबर में 4 अभिभावकों, एक दृष्टिहीन शिक्षक व एक इंचार्ज शिक्षक पीटीसी है। जिसके कारण पैकेज थोड़ा बना हुआ है। प्लीज इसको चलवाये। सादर विक्रम गर्ग, जालोर
Last Updated : Jul 26, 2019, 7:12 PM IST
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