जालौर.जिले में सड़क निर्माण के चलते बच्चों को स्कूल में प्रवेश करने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ,एक तरफ जिले में छोटे बच्चों को स्कूल से जोड़ने के लिए प्रवेशोत्सव अभियान चलाया जा रहा है जिसमें करोड़ो रूपये खर्च किये जा रहे है,दूसरी तरफ जिले में एक स्कूल ऐसा भी है जहां पढ़ने जा रहे बच्चे शिक्षा विभाग व 'भारतमाला परियोजना' के अधिकारियों की लापरवाही के चलते स्कूल छोड़ने पर मजबूर है.
जी हां,हम बात कर रहे हैं चितलवाना उपखंड के अगड़ावा गांव के जाखड़ों की ढाणी स्कूल की,जहां छोटे बच्चों के सामने शिक्षा के मंदिर में जाना भी किसी पर्वतीय चोटी को फतेह करने से कम नहीं है.जिसके कारण अभिभावक किसी प्रकार की अनहोनी होने के डर से छोटे बच्चों के साथ स्कूल छोड़ने तक आते हैं और दीवार फांद कर या छोटे बच्चे अपने स्तर पर घुटनों के बल होकर स्कूल में पहुंचते है.
यह कोई नई समस्या नहीं बल्कि प्रसासन के जानकारी में पिछले 6 माह से ऐसा होता आ रहा है .लेकिन अभी तक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है .स्कूल में अध्ययन करवाने वाले अध्यापकों में से एक अध्यापक दृष्टिहीन है जिसके लिए भी स्कूल पहुंचना जंग लड़ने के बराबर है,लेकिन पापी पेट के लिए दीवार फांद कर नेत्रहीन अध्यापक स्कूल आता है.स्कूल में नामांकित 40 व अनामांकित 10 बच्चों का भविष्य अंधेरे में है.ऐसे में ये सवाल खड़ा हो रहा है कि जिस प्रकार से स्कूल में आने का रास्ता पिछले 6 माह से बंद है,उसे देखते हुए शिक्षा विभाग व प्रशासनिक अधिकारियों को इससे अवगत करवाने के बावजूद कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है ?
स्कूल का मुख्य रास्ता बंद होने की शिकायत पर ईटीवी भारत की टीम जालोर जिला मुख्यालय से 200 किमी स्कूल पहुंची. वहां पहुंचकर देखा कि स्कूल का मुख्य गेट जमीन स्तर से तकरीबन 20 फ़ीट ऊंचा था.और छोटे बच्चों के लिए ऊपर जाने का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था.छोटे बच्चे एक दूसरे बच्चों की मदद से स्कूल पहुंचते है.
इस संबंध में अभिभावकों से पूछताछ करने पर पता चला कि जाखड़ों की ढाणी स्कूल के आगे भारतमाला परियोजना के तहत सड़क का निर्माण कार्य चल रहा है,जिसमें काम करने वाली कंपनी ने निर्माण कार्य के लिए स्कूल के आगे करीबन 20 फ़ीट से ज्यादा की खुदाई कर दी गई है.जिसके बाद स्कूल आने-जाने का रास्ता पूरी तरह से बन्द हो गया है.स्कूल में पानी का टैंक तो बना हुआ है लेकिन पानी का सप्लाई नहीं हो पाने के कारण छोटे बच्चों को पानी की बोतले घर से लानी पड़ती है.पोषाहार सामग्री भी नहीं पहुंच पाती है.
बता दें कि,सभी सरकारी स्कूलों में राज्य सरकार पोषाहार सामग्री भेजती है जिसको स्कूल तक पहुंचाए जाने में दिक्कतें आ रही हैं.इस संदर्भ में शिक्षकों ने बताया कि पोषाहार सामग्री ठेकेदार गाड़ी लेकर देने के लिए आता है लेकिन सड़क से स्कूल की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण बाहर सड़क पर ही छोड़ कर जाता है जिसके बाद आसपास के ग्रामीणों के मदद से सामग्री को स्कूल में रखवाया जाता है.इस समस्या को लेकर हल्के के पीईओ को अवगत भी करवाया था लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.
खुदाई के कारण स्कूल की दीवार व शौचालय भी गिरने के कगार पर हैं .ऐसे में अगर दीवार या शौचालय भवन गिरते हैं तो जन-हानि हो सकती है.समस्या को लेकर अभिभावकों ने गुस्सा जताते हुए कहा कि समस्या के समाधान की उम्मीद लेकर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ वन व पर्यावरण मंत्री सुखराम बिश्नोई को भी ज्ञापन सौंपा है लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया है.उन्होंने अल्टीमेटम दिया कि अगर प्रशासन द्वारा कार्यवाही करके स्कूल में आने -जाने का रास्ता ठीक नहीं करवाया गया तो स्कूल का तालाबंदी करके सड़क-मार्ग निर्माण कार्य बंद करवाकर विरोध प्रदर्शन किया जाएगा.जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी.अब ये देखना होगा कि चेतावनी के बाद प्रशआसन की आंखें खुलती हैं या नहीं?