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जालोर: बाल विवाह रोकथाम के लिए बच्चों ने दिया संदेश

देश में फैले कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन लगाया गया है. ऐसे में कई त्योहार अपने सांस्कृतिक रंग नहीं दिखा पाएं. वहीं, अक्षय तृतीया के मौके पर आहोर में रविवार को कई जगह बच्चे अपने घरों में रिति रिवाजों के साथ अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाते दिखाई दिए. साथ ही बच्चों ने लोगों को बाल विवाह की रोकथाम के लिए संदेश भी दिया.

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जालोर में बाल विवाह रोकथाम के लिए बच्चों ने दिया संदेश
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Published : Apr 26, 2020, 8:13 PM IST

Updated : May 24, 2020, 10:22 PM IST

आहोर (जालोर). जिले के भाद्राजून कस्बे समेत क्षेत्रभर में इन दिनों कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक के अनूठे त्योहारों के कुछ सांस्कृति रंग नहीं दिखाई दिए. परम्परानुसार इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है. बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं.

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जालोर में बाल विवाह रोकथाम के लिए बच्चों ने दिया संदेश

बता दें कि कस्बे में रविवार को अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे अपने घरों में भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाते दिखाई दिए. बच्चों ने विवाह से जूड़े राजस्थानी गीतों के साथ दूल्ला-दूल्हन का भेष कर रिति-रिवाज की परम्परा का निर्वहन किया. इसके साथ ही बच्चों ने बाल विवाह को रोकने के लिए भी संदेश दिया.

पढ़ें- सांसद देवजी पटेल ने अमित शाह से की बात, कहा- प्रवासियों को राजस्थान लाने के लिए गहलोत सरकार को करें निर्देशित

गांवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते और आत्मसात करते हुए नजर आए. इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक और सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्योहार है. कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं. ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं.

आहोर (जालोर). जिले के भाद्राजून कस्बे समेत क्षेत्रभर में इन दिनों कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक के अनूठे त्योहारों के कुछ सांस्कृति रंग नहीं दिखाई दिए. परम्परानुसार इस दिन से शादी-ब्याह करने की शुरुआत हो जाती है. बड़े-बुजुर्ग अपने पुत्र-पुत्रियों के लगन का मांगलिक कार्य आरंभ कर देते हैं.

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बता दें कि कस्बे में रविवार को अनेक स्थानों पर छोटे बच्चे अपने घरों में भी पूरी रीति-रिवाज के साथ अपने गुड्डा-गुड़िया का विवाह रचाते दिखाई दिए. बच्चों ने विवाह से जूड़े राजस्थानी गीतों के साथ दूल्ला-दूल्हन का भेष कर रिति-रिवाज की परम्परा का निर्वहन किया. इसके साथ ही बच्चों ने बाल विवाह को रोकने के लिए भी संदेश दिया.

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गांवों में बच्चे सामाजिक कार्य व्यवहारों को स्वयं सीखते और आत्मसात करते हुए नजर आए. इसलिए कहा जा सकता है कि अक्षय तृतीया सामाजिक और सांस्कृतिक शिक्षा का अनूठा त्योहार है. कृषक समुदाय में इस दिन एकत्रित होकर आने वाले वर्ष के आगमन, कृषि पैदावार आदि के शगुन देखते हैं. ऐसा विश्वास है कि इस दिन जो सगुन कृषकों को मिलते हैं, वे शत-प्रतिशत सत्य होते हैं.

Last Updated : May 24, 2020, 10:22 PM IST
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