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ऐतिहासिक गड़िसर सरोवर हो रहा उपेक्षा का शिकार...पानी के आवक रास्ते में अतिक्रमण पर नहीं है किसी का ध्यान

रेगिस्तान में नखलिस्तान की प्रतिमूर्ति और जैसलमेर में सैकड़ों साल प्राचीन गड़ीसर सरोवर को लेकर जिम्मेदारों की उपेक्षा का भाव टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है. इस ऐतिहासिक विरासत के भीतर और आसपास कलात्मक बांगलिया और अन्य निर्माण कार्य लगातार जर्जर हो रहे हैं.

कहीं इतिहास ना बन जाए यह ऐतिहासिक विरासत
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Published : May 20, 2019, 1:48 PM IST

जैसलमेर.चंद दशक पहले तक ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर शहरवासियों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करता था. लेकिन आज ऐसे हालत है कि इसका पानी नहाने के काबिल भी नहीं रह गया है. गड़ीसर को निहारने आज भी सालाना लाखों देसी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं.

कहीं इतिहास ना बन जाए यह ऐतिहासिक विरासत

वहीं जैसलमेर आने वाला प्रत्येक सैलानी गड़ीसर जरूर जाता है. लेकिन पानी के बीचों-बीच और किनारे बनी हुई प्राचीन बंगालियों व झरोखों को जीर्ण अवस्था को सुधारने के लिए कई काम नहीं हो रहा है. ऐसे ही पानी की आवक के रास्ते में होने वाले अतिक्रमणओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.

गड़ीसर और उसके आसपास धड़ल्ले से अतिक्रमण और अवैध निर्माण का सिलसिला बेधड़क चल रहा है.नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन की ओर से समाधान के प्रयास अभी तक नहीं किए जा रहे हैं. जैसलमेर नगर परिषद की ओर से विगत सालों के दौरान गड़ीसर के आसपास घाट निर्माण तथा दो सुलभ शौचालय का निर्माण ही कराया गया है और लाखों रुपए की राशि इन कार्यों पर खर्च हो चुकी है. लेकिन प्राचीन और कलात्मक उंगलियों पर क्षत्रियों की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं जा रहा है.

गड़ीसर में प्राचीन स्मारकों के जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग पर है वह इन स्मारकों के प्रति उपेक्षा पूर्ण बर्ताव करता रहा है.पिछले 3 साल में बंगाली पर बनी पत्थर की मयुरकर्ति नीचे गिरी हुई है उससे अब तक यथास्थान तक नहीं लगाया गया है .

वहीं गड़ीसर क्षेत्र में साफ सफाई के इंतजाम भी पर्याप्त नहीं है. सैलानियों और अन्य लोगों की शिकायत यह रहती है कि कचरा डालने के लिए डस्टबिन तक नहीं लगे. दिन और रात के समय सरोवर के आसपास शराब बीयर पीने वालों को रोकने वाला कोई नहीं है वह तो के कांच बिखरे हुए नजर आते हैं.

जैसलमेर.चंद दशक पहले तक ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर शहरवासियों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करता था. लेकिन आज ऐसे हालत है कि इसका पानी नहाने के काबिल भी नहीं रह गया है. गड़ीसर को निहारने आज भी सालाना लाखों देसी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं.

कहीं इतिहास ना बन जाए यह ऐतिहासिक विरासत

वहीं जैसलमेर आने वाला प्रत्येक सैलानी गड़ीसर जरूर जाता है. लेकिन पानी के बीचों-बीच और किनारे बनी हुई प्राचीन बंगालियों व झरोखों को जीर्ण अवस्था को सुधारने के लिए कई काम नहीं हो रहा है. ऐसे ही पानी की आवक के रास्ते में होने वाले अतिक्रमणओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.

गड़ीसर और उसके आसपास धड़ल्ले से अतिक्रमण और अवैध निर्माण का सिलसिला बेधड़क चल रहा है.नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन की ओर से समाधान के प्रयास अभी तक नहीं किए जा रहे हैं. जैसलमेर नगर परिषद की ओर से विगत सालों के दौरान गड़ीसर के आसपास घाट निर्माण तथा दो सुलभ शौचालय का निर्माण ही कराया गया है और लाखों रुपए की राशि इन कार्यों पर खर्च हो चुकी है. लेकिन प्राचीन और कलात्मक उंगलियों पर क्षत्रियों की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं जा रहा है.

गड़ीसर में प्राचीन स्मारकों के जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग पर है वह इन स्मारकों के प्रति उपेक्षा पूर्ण बर्ताव करता रहा है.पिछले 3 साल में बंगाली पर बनी पत्थर की मयुरकर्ति नीचे गिरी हुई है उससे अब तक यथास्थान तक नहीं लगाया गया है .

वहीं गड़ीसर क्षेत्र में साफ सफाई के इंतजाम भी पर्याप्त नहीं है. सैलानियों और अन्य लोगों की शिकायत यह रहती है कि कचरा डालने के लिए डस्टबिन तक नहीं लगे. दिन और रात के समय सरोवर के आसपास शराब बीयर पीने वालों को रोकने वाला कोई नहीं है वह तो के कांच बिखरे हुए नजर आते हैं.

Intro:मनीष व्यास जैसलमेर

रेगिस्तान में नखलिस्तान की प्रतिमूर्ति और जैसलमेर में सैकड़ों साल प्राचीन गड़ीसर सरोवर को लेकर जिम्मेदारों की उपेक्षा का भाव टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है ।इस ऐतिहासिक विरासत के भीतर और आसपास कलात्मक बंगलिया और अन्य निर्माण कार्य लगातार जर्जर हो रहे हैं तथा साफ सफाई व्यवस्था का कोई पुख्ता बंदोबस्त नहीं किया जा रहा। एक बार फिर मानसून सिर पर है उस से पहले गड़ीसर तालाब को नवजीवन देने के लिए जिस गंभीरता की दरकार है वहां कहीं दिखाई नहीं देती।


Body:आज से चंद दशक पहले तक ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर जैसलमेर शहर वासियों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करता था और आज हालत यह है कि इसका पानी नहाने के काबिल भी नहीं रह गया है। गड़ीसर को निहारने आज भी सालाना लाखों देसी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं और जैसलमेर आने वाला प्रत्येक सैलानी गड़ीसर जरूर जाता है। लेकिन पानी के बीचों-बीच और किनारे बनी हुई प्राचीन बंगालियों व झरोखों को जीर्ण अवस्था को सुधारने के लिए कई काम नहीं हो रहा है। ऐसे ही पानी की आवक के रास्ते में होने वाले अतिक्रमण ओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है ।गड़ीसर और उसके आसपास धड़ल्ले से अतिक्रमण और अवैध निर्माण का सिलसिला बेधड़क चल रहा है ।यह समस्या अब बरसो पुरानी हो चुकी है तथा नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन की ओर से इसके लिए समाधान के प्रयास तक नहीं किए जा रहे हैं ।जैसलमेर नगर परिषद की ओर से विगत सालों के दौरान गड़ीसर के आसपास घाट निर्माण तथा दो सुलभ शौचालय का निर्माण ही कराया गया है और लाखों रुपए की राशि इन कार्यों पर खर्च हो चुकी है। लेकिन प्राचीन और कलात्मक उंगलियों पर क्षत्रियों की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं जा रहा है


Conclusion:गौरतलब है कि गड़ीसर में प्राचीन स्मारकों के जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग पर है वह इन स्मारकों के प्रति उपेक्षा पूर्ण बर्ताव करता रहा है ।पिछले 3 साल में बंगाली पर बनी पत्थर की मयुरकर्ति नीचे गिरी हुई है उससे अब तक यथास्थान तक नहीं लगाया गया है ।बीच बंगली तो इतनी जर्जर है कि कभी भी भरभरा कर जल समाधि ले सकती है ।गड़ीसर क्षेत्र में साफ सफाई के इंतजाम भी पर्याप्त नहीं है। सैलानियों और अन्य लोगों की शिकायत यह रहती है कि कचरा डालने के लिए डस्टबिन तक नहीं लगे। दिन और रात के समय सरोवर के आसपास शराब बीयर पीने वालों को रोकने वाला कोई नहीं है वह तो के कांच बिखरे हुए नजर आते हैं।
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