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Special: जैसलमेर के लोंगेवाला में 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की कहानी, सुनिए नायक भैरो सिंह राठौड़ की जुबानी...

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Published : Dec 19, 2020, 8:35 PM IST

आज हम आपको एक ऐसे योद्धा से मिला रहे हैं, जिसने 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. बीएसएफ के नायक भैरो सिंह राठौड़ वही असली हीरो हैं, जिन्हें बॉर्डर फिल्म में शहीद बताया गया था. भैरों सिंह की जुबानी सुनिए 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध की दास्तां...

Story of 1971 Indo-Pak war, Bhairo Singh rathore
1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की कहानी

जैसलमेर. 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना के 120 जवानों ने पश्चिमी राजस्थान में थार के धोरों में स्थित जैसलमेर के लोंगेवाला में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. वैसे तो आर्मी ने उस दौरान युद्ध लड़ा था, लेकिन बीएसएफ के एक जवान ने इस युद्ध को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. वह नाम है भैरो सिंह राठौड़. इनको आपने 'बॉर्डर' फिल्म में देश के लिए शहीद होता देखा होगा. लेकिन असल जिंदगी में वो वीर आज भी जिंदा है. जोधपुर के शेरगढ़ स्थित एक गांव में वो योद्धा अपना जीवन यापन कर रहा है. भैरों सिंह की जुबानी सुनिए इस युद्ध की दास्तां.

1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की कहानी

भारत की इस कमजोर सीमा पर हमले के साथ पाकिस्तानी सेना की मंशा थी कि रात को हमला किया जाए और सुबह का नाश्ता जैसलमेर में, दोपहर का भोजन जोधपुर में और रात का खाना दिल्ली में किया जाए. पाकिस्तानी सेना को अंदाजा नहीं था कि संख्या में भले ही इस सीमा पर सैनिक कम थे, लेकिन इनके हौसले किसी भी दुश्मन को पस्त करने के लिए भरपूर थे. इन्हीं हौसलों की बानगी थी कि टैंक और पैदल रेजिमेंट के साथ पूरे संसाधनों सहित लोंगेवाला सीमा पर पहुंची पाक सेना को उल्टे पांव लौटना पड़ा और उनके जोधपुर और दिल्ली के सपने, सपने ही रह गए.

Story of 1971 Indo-Pak war, Bhairo Singh rathore
भैरो सिंह राठौड़

5 और 6 दिसंबर 1971 को हुआ था युद्ध

लोंगेवाला युद्ध के नायक भैरो सिंह ने उस युद्ध के बारे में बताते हुए कहा कि थार रेगिस्‍तान में लोंगेवाला की लड़ाई 5 और 6 दिसंबर 1971 को लड़ी गई थी. इस लड़ाई के दौरान 23वीं पंजाब रेजीमेंट के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्‍तानी सेना के 3000 फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी. भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी.

लड़ाई का मुख्य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्सा था

1971 की भारत-पाकिस्‍तान लड़ाई का मुख्‍य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्‍सा था. पश्चिमी हिस्‍से की निगरानी सिर्फ इसलिए की जा रही थी ताकि पाकिस्‍तानी सेना इस इलाके पर कब्जा करके भारत सरकार को पूर्वी सीमा पर समझौते के लिए मजबूर ना कर दें. पाकिस्‍तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्‍वास प्रकट करते हुए कहा था कि इंशाअल्‍लाह हम नाश्‍ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा. यानी उनकी नजर में सारा खेल एक ही दिन में खत्‍म हो जाना था.

पढ़ें- जिंदा है बॉर्डर फिल्म का असली हीरो भैरों सिंह, जांबाजी के लिए मेडल तो मिले लेकिन सुविधाएं नहीं

नायक भैरो सिंह ने बताया कि वे उस समय 14 बीएसएफ में तैनात थे और लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सेना के साथ गाइड के लिए उन्हें अटैच किया गया था. 3 दिसंबर को मेजर चांदपुरी ने लेफ्टिनेंट धरमवीर के नेतृत्‍व में जवानों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफाजत के लिए गश्‍त लगाने भेज दिया. ये पिलर भारत-पाकिस्‍तान की अंतर्राष्‍ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था.

इसी गश्‍त ने पाकिस्‍तानी सेना की मौजूदगी को सबसे पहले पहचाना था. 5 दिसंबर की सुबह लेफ्टिनेंट धरमवीर को गश्‍त के दौरान सीमा पर घरघराहट की आवाजें सुनाई दी. जल्‍द ही इस बात की पुष्टि हो गई कि पाकिस्‍तानी सेना अपने टैंकों के साथ लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ रही है. इसके बाद मेजर चांदपुरी ने बटालियन के मुख्‍यालय से संपर्क कर हथियार और फौजियों की टोली को भेजने का निवेदन किया. इस समय तक लोंगेवाला पोस्‍ट पर ज्‍यादा हथियार नहीं थे.

भारतीय सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी

भैरो सिंह कहते हैं कि मुख्‍यालय से निर्देश मिला कि वो चाहे तो अपनी पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाए, लेकिन कोई भारतीय वीर इसके लिए तैयार नहीं हुआ. भारतीय वीरों ने जिंदा रहने तक पाकिस्‍तानी सेना को आगे नही बढ़ने देने का मन बना लिया. लोंगेवाला पोस्‍ट पर पहुंचने के बाद पाकिस्‍तानी टैंकों ने फायरिंग शुरू कर दी और सीमा सुरक्षा बल के 5 ऊंटों को मार गिराया. इस दौरान भारतीय फौजियों ने पाकिस्‍तान के दो टैंकों को उड़ाने में कामयाबी हासिल कर ली. संख्‍या और हथियारों में पीछे होने के बावजूद भारतीय सिपाहियों ने हिम्‍मत नहीं हारी.

Story of 1971 Indo-Pak war, Bhairo Singh rathore
भारत-पाक युद्ध के नायक भैरो सिंह राठौड़

अब भी आंखें हो जाती हैं नम

नायक भैरो सिंह ने बताया कि इस दौरान उन्होंने एमएमजी संभाली और रात के अंधेरे में उन्होंने 20 से 25 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था. इसी लड़ाई के चलते उन्हें सेना मैडल से सम्मानित भी किया गया. भैरो सिंह का कहना है कि आज भी जब वे उस मंजर को याद करते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती है.

युद्ध में तनोट माता का चमत्कार

भैरो सिंह का कहना है कि उस लड़ाई में तनोट माता का चमत्कार ही था कि भारतीय 123 जवानों ने पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड और टेंक रेजिमेंट से डटकर मुकाबला कर उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया. साथ ही के चमत्कार के चलते पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से फेंके गए बम नहीं फटे.

लोंगेवाला युद्ध पर 'बॉर्डर' फिल्म

गौरतलब है कि जेपी दत्ता के निर्देशन पर लोंगेवाला युद्ध पर बॉर्डर फिल्म बनाई गई थी. इस फिल्म में नायक भैरो सिंह का किरदार सुनील शेट्टी ने अदा किया था. लेकिन उनका कहना है कि फिल्म में उन्हें शहीद दिखाया गया है, जबकि वे वास्तव में जीवित हैं. बैटल ऑफ लोंगेवाला के रीयल हीरो भैरो सिंह का कहना है कि वे जीवन में एक बार जेपी दत्ता और अभिनेता सुनील शेट्टी से मिलना चाहते हैं, लेकिन उनका ये सपना साकार होगा या नहीं ये भी उनको नहीं पता.

जैसलमेर. 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना के 120 जवानों ने पश्चिमी राजस्थान में थार के धोरों में स्थित जैसलमेर के लोंगेवाला में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. वैसे तो आर्मी ने उस दौरान युद्ध लड़ा था, लेकिन बीएसएफ के एक जवान ने इस युद्ध को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. वह नाम है भैरो सिंह राठौड़. इनको आपने 'बॉर्डर' फिल्म में देश के लिए शहीद होता देखा होगा. लेकिन असल जिंदगी में वो वीर आज भी जिंदा है. जोधपुर के शेरगढ़ स्थित एक गांव में वो योद्धा अपना जीवन यापन कर रहा है. भैरों सिंह की जुबानी सुनिए इस युद्ध की दास्तां.

1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की कहानी

भारत की इस कमजोर सीमा पर हमले के साथ पाकिस्तानी सेना की मंशा थी कि रात को हमला किया जाए और सुबह का नाश्ता जैसलमेर में, दोपहर का भोजन जोधपुर में और रात का खाना दिल्ली में किया जाए. पाकिस्तानी सेना को अंदाजा नहीं था कि संख्या में भले ही इस सीमा पर सैनिक कम थे, लेकिन इनके हौसले किसी भी दुश्मन को पस्त करने के लिए भरपूर थे. इन्हीं हौसलों की बानगी थी कि टैंक और पैदल रेजिमेंट के साथ पूरे संसाधनों सहित लोंगेवाला सीमा पर पहुंची पाक सेना को उल्टे पांव लौटना पड़ा और उनके जोधपुर और दिल्ली के सपने, सपने ही रह गए.

Story of 1971 Indo-Pak war, Bhairo Singh rathore
भैरो सिंह राठौड़

5 और 6 दिसंबर 1971 को हुआ था युद्ध

लोंगेवाला युद्ध के नायक भैरो सिंह ने उस युद्ध के बारे में बताते हुए कहा कि थार रेगिस्‍तान में लोंगेवाला की लड़ाई 5 और 6 दिसंबर 1971 को लड़ी गई थी. इस लड़ाई के दौरान 23वीं पंजाब रेजीमेंट के 120 भारतीय सिपाहियों की एक टोली ने पाकिस्‍तानी सेना के 3000 फौजियों के समूह को धूल चटा दी थी. भारतीय वायु सेना ने इस लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी.

लड़ाई का मुख्य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्सा था

1971 की भारत-पाकिस्‍तान लड़ाई का मुख्‍य फोकस सीमा का पूर्वी हिस्‍सा था. पश्चिमी हिस्‍से की निगरानी सिर्फ इसलिए की जा रही थी ताकि पाकिस्‍तानी सेना इस इलाके पर कब्जा करके भारत सरकार को पूर्वी सीमा पर समझौते के लिए मजबूर ना कर दें. पाकिस्‍तान के ब्रिगेडियर तारिक मीर ने अपनी योजना पर विश्‍वास प्रकट करते हुए कहा था कि इंशाअल्‍लाह हम नाश्‍ता लोंगेवाला में करेंगे, दोपहर का खाना रामगढ़ में खाएंगे और रात का खाना जैसलमेर में होगा. यानी उनकी नजर में सारा खेल एक ही दिन में खत्‍म हो जाना था.

पढ़ें- जिंदा है बॉर्डर फिल्म का असली हीरो भैरों सिंह, जांबाजी के लिए मेडल तो मिले लेकिन सुविधाएं नहीं

नायक भैरो सिंह ने बताया कि वे उस समय 14 बीएसएफ में तैनात थे और लोंगेवाला पोस्ट पर भारतीय सेना के साथ गाइड के लिए उन्हें अटैच किया गया था. 3 दिसंबर को मेजर चांदपुरी ने लेफ्टिनेंट धरमवीर के नेतृत्‍व में जवानों की टोली को बाउंड्री पिलर 638 की हिफाजत के लिए गश्‍त लगाने भेज दिया. ये पिलर भारत-पाकिस्‍तान की अंतर्राष्‍ट्रीय सीमा पर लगा हुआ था.

इसी गश्‍त ने पाकिस्‍तानी सेना की मौजूदगी को सबसे पहले पहचाना था. 5 दिसंबर की सुबह लेफ्टिनेंट धरमवीर को गश्‍त के दौरान सीमा पर घरघराहट की आवाजें सुनाई दी. जल्‍द ही इस बात की पुष्टि हो गई कि पाकिस्‍तानी सेना अपने टैंकों के साथ लोंगेवाला पोस्ट की तरफ बढ़ रही है. इसके बाद मेजर चांदपुरी ने बटालियन के मुख्‍यालय से संपर्क कर हथियार और फौजियों की टोली को भेजने का निवेदन किया. इस समय तक लोंगेवाला पोस्‍ट पर ज्‍यादा हथियार नहीं थे.

भारतीय सिपाहियों ने हिम्मत नहीं हारी

भैरो सिंह कहते हैं कि मुख्‍यालय से निर्देश मिला कि वो चाहे तो अपनी पोस्ट छोड़कर पीछे हट जाए, लेकिन कोई भारतीय वीर इसके लिए तैयार नहीं हुआ. भारतीय वीरों ने जिंदा रहने तक पाकिस्‍तानी सेना को आगे नही बढ़ने देने का मन बना लिया. लोंगेवाला पोस्‍ट पर पहुंचने के बाद पाकिस्‍तानी टैंकों ने फायरिंग शुरू कर दी और सीमा सुरक्षा बल के 5 ऊंटों को मार गिराया. इस दौरान भारतीय फौजियों ने पाकिस्‍तान के दो टैंकों को उड़ाने में कामयाबी हासिल कर ली. संख्‍या और हथियारों में पीछे होने के बावजूद भारतीय सिपाहियों ने हिम्‍मत नहीं हारी.

Story of 1971 Indo-Pak war, Bhairo Singh rathore
भारत-पाक युद्ध के नायक भैरो सिंह राठौड़

अब भी आंखें हो जाती हैं नम

नायक भैरो सिंह ने बताया कि इस दौरान उन्होंने एमएमजी संभाली और रात के अंधेरे में उन्होंने 20 से 25 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था. इसी लड़ाई के चलते उन्हें सेना मैडल से सम्मानित भी किया गया. भैरो सिंह का कहना है कि आज भी जब वे उस मंजर को याद करते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती है.

युद्ध में तनोट माता का चमत्कार

भैरो सिंह का कहना है कि उस लड़ाई में तनोट माता का चमत्कार ही था कि भारतीय 123 जवानों ने पाकिस्तान की पूरी ब्रिगेड और टेंक रेजिमेंट से डटकर मुकाबला कर उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया. साथ ही के चमत्कार के चलते पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से फेंके गए बम नहीं फटे.

लोंगेवाला युद्ध पर 'बॉर्डर' फिल्म

गौरतलब है कि जेपी दत्ता के निर्देशन पर लोंगेवाला युद्ध पर बॉर्डर फिल्म बनाई गई थी. इस फिल्म में नायक भैरो सिंह का किरदार सुनील शेट्टी ने अदा किया था. लेकिन उनका कहना है कि फिल्म में उन्हें शहीद दिखाया गया है, जबकि वे वास्तव में जीवित हैं. बैटल ऑफ लोंगेवाला के रीयल हीरो भैरो सिंह का कहना है कि वे जीवन में एक बार जेपी दत्ता और अभिनेता सुनील शेट्टी से मिलना चाहते हैं, लेकिन उनका ये सपना साकार होगा या नहीं ये भी उनको नहीं पता.

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