जैसलमेर. विश्व धरोहर घोषित सोनार किला को 'स्वर्ण किले' के रूप में भी जाना जाता है. क्योंकि सूर्यास्त के समय यह पीले बलुआ पत्थर का किला सोने की तरह चमकता है. किले का निर्माण राजपूत राजा रावल जैसल ने सन् 1156 में करवाया था. इसमें तीन स्तरीय दीवारों से मजबूत किलेबंदी की गई थी. जैसलमेर किला थार मरुस्थल के त्रिकुटा पर्वत पर बना है. यहां कई इतिहासिक लड़ाईयां भी हुई हैं. अपनी बनावट और खूबसूरती की वजह से ये किला यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल है. यह राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा किला है.
भाटी राजपूत शासक राव जैसल ने सोनार किले का निर्माण कराया
वर्ष 1156 में भाटी राजपूत शासक राव जैसल ने त्रिकूट पर्वत पर इस किले का निर्माण कराया था. उनके नाम पर ही जैसलमेर शहर की स्थापना हुई. जैसलमेर किले में कई खूबसूरत हवेलियां या मकान, मंदिर और सैनिकों तथा व्यापारियों के आवासीय परिसर हैं. उस समय जैसलमेर की आबादी काफी कम थी. ऐसे में अपने लोगों को बाहर हमलों से बचाने के लिए किले के भीतर ही बसा दिया गया. यहीं कारण है कि यह दुनिया का एकमात्र ऐसा किला है. जिसमें आमजन भी राजा के साथ रहते थे.
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किले में आज भी रहते हैं 4 हजार से अधिक लोग
इस किले में आज भी 4 हजार से अधिक लोग निवास कर रहे है. सोनार किले की बनावट विशाल पीले पत्थरों से बना हुआ है. सोनार किला देखने में जितना खूबसूरत है उसका निर्माण उतना ही रोचक. चूने और गारे के बिना इस्तेमाल से बना ये किला अपने आप में अचंभित करने वाला है. यह किला1500 फीट लंबा और 750 फीट चौड़ा है. किले के चारों ओर 99 गढ़ बने हुए हैं. जिनमें से 92 गढ़ों का निर्माण 1633 से 1647 के बीच हुआ था. इसका तहखाना लगभग 15 फीट लंबा है. भारत के किसी भी किले में इतने बुर्ज नहीं हैं. किले का खास आकर्षण है पहला प्रवेशद्वार, जिस पर शानदार नक्काशी का नमूना देखने को मिलता है.
कई बार युद्धों का साक्षी रहा ये किला
रेगिस्तान में होने के कारण इस किले पर कम हमले हुए, इसके बावजूद कई बार युद्धों का यह किला साक्षी रहा. इस किले पर सबसे पहला हमला वर्ष 1276 में जैतसी के राजा ने दिल्ली के सुल्तान की तरफ से हमला बोला. 8 साल बाद वह इस किले पर कब्जा जमा पाया. तेरहवीं सदी में अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया. खिलजी से बचने के लिए राजपूत महिलाओं ने जौहर किया था. वर्ष 1541 में मुगल बादशाह हूमायूं ने जैसलमेर पर कब्जा जमा लिया. वर्ष 1762 तक यह मुगलों के अधीन रहा. इसके बाद किले पर महारावल मूलराज ने अपना कब्जा जमा लिया. इसके बाद मूलराज और अंग्रेजों के बीच संधि हो गई और उसका कब्जा किले पर बना रहा.
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863 सालों से सीना ताने खड़ा सोनार का किला
1820 में मूलराज की मौत के बाद पोते गज सिंह के हाथों यहां का शासन आ गया. थार के रेगिस्तान में एक किला 863 साल से सीना ताने खड़ा है, दूर से देखने पर ये किला सोने के किले से कम नजर नहीं आता है. सूरज की किरणों से रोशन हो यह सोने के समान दमकना शुरू हो जाता है. यह किला पीले पत्थरों से बने होने के कारण दूर से ही सोने जैसी आभा देता है. अपनी इस खासियत के कारण किले का नाम सोनार पड़ा है. रात में जब किले में फ्लड लाइट्स की रोशनी पड़ती है तो एक अनोखी छवि दिखाई देती है.
सोनार दुर्ग की वजह से ही स्वर्णनगरी की पहचान मिली
जैसलमेर का सोनार दुर्ग पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. सोनार दुर्ग की वजह से ही जैसलमेर की पहचान स्वर्णनगरी के रूप में विख्यात है. रात में किले की आकर्षक छवि देखने के लिए साल भर देशी-विदेशी पर्यटकों की भीड़ रहती है. यह किला एक 30 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है. यह एक विशाल 99 बुर्जों वाला किला है. वर्तमान में शहर की आबादी के एक चौथाई के लिए एक आवासीय स्थान है. किला परिसर में कई कुएं हैं, जो यहां के निवासियों के लिए पानी का नियमित स्रोत हैं. किला राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली का आदर्श संलयन दर्शाता है.
किले में कुल चार प्रवेश द्वार
किले में अखाई पोल, हवा पोल, सूरज पोल और गणेश पोल नाम के द्वार हैं. इनमें अखाई पोल या प्रथम द्वार अपनी शानदार स्थापत्य शैली के लिए प्रसिद्ध है. इस प्रवेश द्वार को 1156 में बनाया गया था. शाही परिवारों और विशेष आगंतुकों द्वारा यही प्रवेश द्वार उपयोग किया जाता था. 1500 फीट लंबाई यह किला 1500 फीट (460 मी.) लंबा और 750 फीट (230 मी.) चौड़ा और 250 फीट (76 मी.) ऊंचे पर्वत पर बना हुआ है. किले का तहखाना 15 फीट लंबा है. किले में कुल चार प्रवेश द्वार है, जिनमें से एक द्वार पर तोपे भी लगी हुई है.
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किले में जलनिकासी का शानदार सिस्टम
वहीं व्यापारियों ने बड़ी-बड़ी हवेलियां भी बनवायी है. जिनमें से कुछ हवेलियां तो एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है. जैसलमेर शहर में पीले पत्थरों से बनी ऐसी कई विशाल और सुंदर हवेलियां हैं. किले में एक शानदार जलनिकासी का सिस्टम भी है, जो बारिश के पानी को आसानी से चारों दिशाओ में किले से दूर ले जाता है.
दुश्मन को नहीं दिखता था इस किले का द्वार
ढाई सौ फीट ऊंचे और विशाल रेगिस्तान के बीच 30 फीट ऊंची दीवारों से किला घिरा हुआ है. इसके मुख्य द्वार की बनावट ऐसी है कि दुश्मन चाहे कहीं से भी देख ले उसे किले का मुख्य द्वार नहीं दिखाई देता. यही कारण है कि यहां चढ़ाई करने के लिए आने वाले दुश्मन अक्सर चकमा खा जाते थे. वो जितने देर में इस किले का द्वारा देखते उतने में उनपर हमला हो जाता था.
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यहां बॉलीवुड के लिए प्राइम लोकेशन
जैसलमेर के पर्यटन स्थल और यहां की विरासत बॉलीवुड के लिए प्राइम लोकेशन है. अब तक जैसलमेर में कई बॉलीवुड फिल्मों, ऐड, रीजनल फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है. अभी तक यहां मुख्य रूप से कच्चे धागे, कृष्णा, सरफरोश, टशन, रुदाली जैसी फिल्मों के साथ-साथ कई बड़ी कंपनियों कंपनियों के ऐड भी यहां शूट हो चुके हैं.