जैसलमेर. सरकारी विभागों के आपसी तालमेल के अभाव में करोड़ों रुपए के सरकारी नुकसान का मामला सरहदी जिले में सामने आया है. विद्युत विभाग द्वारा जहां 22 करोड़ की लागत से 132 केवी के जीएसएस का निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था और लगभग सात करोड़ के खर्च के बाद 60 प्रतिशत के करीब काम पूरा भी हो चुका है. लेकिन विद्युत विभाग द्वारा इलाके के वन विभाग से एनओसी मांगे जाने पर वन विभाग ने मौके पर जांच करने के बाद तत्काल काम पर रोक लगा दी है.
साथ ही कहा है कि राज्य पक्षी गोडावण के विचरण क्षेत्र में बिजली की हाईटेंशन लाइनें लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि गोडावण के उड़ने की क्षमता और हाईटेंशन वायर की ऊंचाई समान होती है. जिससे राज्य पक्षी गोडावण की जान के लिए खतरा साबित हो सकता है. ऐसे में अब दोनों विभागों की खींचतान के चलते मौके पर काम रुकवाया गया है और सरकारी पैसों के खर्च पर भी लगातार सवाल खड़े हो रहे हैं.
जैसलमेर जिला जहां देशभर में विलुप्त हो रहे प्रदेश के राज्य पक्षी गोडावण की कुछ संख्या बची है और वन विभाग द्वारा इसके संरक्षण के लिए यहां लगातार प्रयास भी किए जा रहे हैं. जिसमें इलाके में वन विभाग ने बड़े भू-भाग को गोडावण के विचरण क्षेत्र के रूप में रिजर्व किया हुआ है. जहां पर इंसानों के आवागमन और किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य पर रोक लगाई हुई है.
लेकिन वन विभाग के इस इलाके में विद्युत विभाग ने पिछले दिनों 22 करोड़ रुपए की लागत से 132 केवी के जीएसएस का निर्माण कार्य आरंभ कर दिया था और मौके पर विद्युत विभाग द्वारा तकरीबन 7 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन अब वन विभाग ने इस निर्माण को गलत बताते हुए इस पर तत्काल रोक लगा दी है.
डेजर्ट नेशनल पार्क के उपवन संरक्षक कपिल चंद्रवाल का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा गोडावण संरक्षण के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इस जीएसएस के लिए जो हाईटेंशन वायर होगी. उससे गोडावण की जान का खतरा रहेगा. इसलिए बिजली विभाग को इन वायर को भूमिगत करने के लिए कहा गया है. गौरतलब है कि जिले में पिछले कुछ वर्षों में हाईटेंशन तारों की चपेट में आने से 5 गोडावण की मौत के मामले सामने आए है.
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डेजर्ट नेशनल पार्क के उपवन संरक्षक चंद्रवाल का कहना है कि विद्युत विभाग को हाईटेंशन वायर को भूमिगत करने के लिए कहा गया है. जिस पर विद्युत विभाग द्वारा इसके लिए आपत्ति जताते हुए पुनः पत्र भेजा गया है. जिसे राज्य सरकार को भेजा गया है. ऐसे में मौके पर 7 करोड़ के करीब खर्च हुए सरकारी पैसों को लेकर सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या गोडावण को अनदेखा करते हुए मौके पर बाकी रहा काम करवाया जाएगा या फिर राज्य पक्षी की हिफाजत को ज्यादा तवज्जो देते हुए कोई और रास्ता निकाला जाएगा.