पोकरण (जैसलमेर). समंदर में आप को सीप मिल सकते हैं और मरुस्थल में दूर-दूर तक खीप और कूचे. लेकिन परमाणु नगरी के पास स्थित भादरिया गांव में रेत के बीच ज्ञान का 'समंदर' है. पोकरण के पास स्थित भादरिया गांव में देश का ही नहीं बल्कि एशिया की प्रमुख पुस्तकों का संग्रह भादरिया स्थित भूमिगत पुस्तकालय है. अगर इस पुस्तकालय को एशिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
दुनिया के सभी धर्मों के ग्रन्थ हो या फिर भारत के तमाम उच्च न्यायालयों के निर्णयों की पुस्तक छोटे बडे़ लेखकों के आलेख हो या फिर महापुरुषों की जीवन कथाएं सभी यहां मौजूद हैं. इस पुस्तकालय में करीब 8 लाख पुस्तकों का संग्रह किया गया है. इस अंडरग्राउंड लाइब्रेरी को कुछ ही महीनों में आमजन के लिए शुरू कर दिया जाएगा. जिससे देश के युवाओं को एक ही छत के नीचे सारे ग्रन्थों और महापुरुषों की जीवन कथाओं के साथ ही विभिन्न देशों की पुस्तकों का अध्ययन करने का मौका मिलेगा.
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हरवंश सिंह निर्मल हैं इस 'गंगा' के 'भागीरथ'
ज्ञान की इस 'गंगा' को यहां एकत्रित करने का श्रेय संत हरवंश सिंह निर्मल को जाता है. 1930 में पंजाब के फिरोज जिले में जन्मे हरवंश सिंह निर्मल घुमते हुए भादरिया गांव पहुंचे. यहां उन्हें एकांत वास पसंद आया और भादरिया शक्ति पीठ से ही सामाजिक सेवा, शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने का कार्य उन्होंने शुरू किया. हरवंश सिंह ने लोगों के बीच गिरते मानवीय स्तर और बढ़ते हुए अवगुणों की रोकथाम के लिए 14 जिलों की प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर कुल 4000 हजार पुस्तकालयों की स्थापना करवाई.
लाखों पुस्तकों का भंडार
भादरिया शक्ति पीठ में 21 अप्रैल 1983 को विशाल ग्रन्थागार की स्थापना कर पुस्तकालय में प्रमुख ग्रन्थों का संकलन प्रारंभ किया गया. जिसके बाद देखते ही देखते पुस्तकालय में लाखों पुस्तकों का संग्रह होना शुरू हो गया. विश्व की प्रमुख दर्शन, नीति, इतिहास, ज्ञान-विज्ञान, कानून, अर्थशास्त्र, जीव-जगत, चिकित्सा विज्ञान, शब्द कोष सहित विभिन्न विषयों पर विश्व की दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह किया.
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किताबों की अद्भुत दुनिया
हरवंश सिंह निर्मल की सोच थी कि ग्रन्थागार को इतना समृद्ध बनाया जाए कि ज्ञान के शोधकर्ताओं को कहीं और ना जाना पड़े. लोगों का मानना है कि इस सराहनीय प्रयास से इस मरु भूमि का नाम विश्व में रौशन हुआ है. भादरिया मंदिर परिसर के पास बने भूमिगत पुस्तकालय के विशाल भवन में कदम रखते ही किताबों की अद्भुत दुनिया दिखाई देती है. अलमारियों में सजी पुस्तकों को देखने के बाद एक अलग ही एहसास महसूस होता है. पुस्तक प्रेमियों ने हरवंश सिंह निर्मल के इस कार्य को बहुत ही अनुकरणीय बताया है.
मंदिर के किनारे 15 हजार वर्ग फीट में बने विशाल पुस्तकालय में 3x6 फीट के आकार की 562 अलमारियां, 16 हजार फीट लंबी रैक बनाकर करीब 8 लाख पुस्तकों को स्थान दिया गया है. इस पुस्तकालय में 18 कमरे बनाए गए हैं. यहां बाहर से आने वाले शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए अलग से व्यवसथा की गई है. पुस्तकालय में विभिन्न राष्ट्रों की नई-पुरानी मुद्राएं और नोटों के संग्रहण के लिए भवनों का निर्माण भी हुआ है.