जयपुर. वर्ल्ड अर्थ डे पर आज हम आपको जयपुर के झालाना डूंगरी स्थित जंगल की कहानी बताने जा रहे हैं. यहां पर लगभग 10 साल पहले अवैध खनन के साथ-साथ जंगल में मानवीय दखल भी था. हालात ऐसे थे कि पेड़ों की अवैध कटाई के अलावा बची हुई जमीन पर विलायती बबूल ने कब्जा कर लिया था, लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है. 14 वर्ग किलोमीटर का यह जंगल शहर की आबादी के लिए ऑक्सीजन बैंक के रूप में काम कर रहा है. दावा किया जाता है कि यह जंगल छोटे एरिया में लेपर्ड की बड़ी आबादी को लेकर दुनिया भर में पहचान रखता है.
जंगल के साथ वन्य जीवन भी आए सामने : जयपुर के झालाना के जंगल किसी भी शहर में पेड़ों की कटाई और घटते हुए जंगल के संकट से उबरने के लिए एक उदाहरण के रूप में सामने है. जैसे ही झालाना में जंगल मूर्त रूप लेने लगा, वैसे ही यहां पर वन्यजीवों ने भी अपना बसेरा शुरू किया. क्षेत्रीय वन अधिकारी जेनेश्वर चौधरी कहते हैं कि यही वजह है कि आज झालाना के जंगलों में लेपर्ड की सबसे घनी आबादी रहती है. बघेरों के अलावा अन्य प्रजाति के वन्यजीव बड़ी संख्या में यहां रहने लगे हैं. इकोलॉजिकल सिस्टम को मेंटेन करने के लिए जूलीफ्लोरा (विलायती बबूल) को जब हटाया गया तो एक ग्रास लैंड को यहां डेवलप किया गया.
उन्होंने बताया कि यही वजह है कि पक्षियों की करीब 250 के आसपास की प्रजातियां अब झालाना के जंगलों में साल भर विचरण करने लगी हैं. 220 के आसपास यहां जंगली वनस्पतियां मौजूद हैं. 30 के करीब रेप्टाइल्स इस इलाके में अब अपना घर बना चुके हैं. रेंजर चौधरी के मुताबिक आग झालाना से सटे अन्य जंगलों को भी सरकार की मदद से सवांरने का काम जारी है. आमागढ़ को जयपुर के दूसरे लेपर्ड रिजर्व के रूप में तैयार किया जा चुका है. वहीं, नाहरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण पर भी पूरी मुस्तैदी के साथ काम चल रहा है, इसकी वजह से जयपुर में पर्यावरण संतुलन कायम रखा जा सकेगा.
जिंदगी के लिए इकोलॉजिकल सिस्टम जरूरी : जेनेश्वर चौधरी कहते हैं कि जीवन की रक्षा के लिए इकोलॉजिकल सिस्टम का बेहतर होना जरूरी है. उन्होंने कहा कि यह हम सबका दायित्व है कि पृथ्वी को रहने लायक रखा जाए और जंगलों का संरक्षण किया जाए. इसके लिए वन और पेड़ होना जरूरी हैं, जयपुर में झालाना और आमागढ़ इसका उदाहरण है. 14 साल पहले तक इन क्षेत्रों में पहाड़ों की कटाई हो रही थी. अवैध खनन चरम पर था और 20 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में जंगली जीवन के लिए तमाम मुश्किलें थीं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की निर्देशों की पालना के बाद यह जंगल साकार रूप लेने लगा और वन विभाग ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए चारों तरफ से दीवार खड़ी की गई है. शहर के बीचों-बीच एक घना जंगल तैयार हो गया है, जो जयपुर शहर की आवाम को ऑक्सीजन भी मुहैया करवा रहा है.