जयपुर. विश्व में 26 अगस्त को महिला समानता दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन अमेरिकी संविधान में 19वें संशोधन के पारित होने की याद दिलाता है, जिसने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया. इस साल महिला समानता दिवस 2023 की थीम 'Embrace Equity' है यानी समानता को अपनाओ, लेकिन जमीनी स्तर पर महिला समानता को लेकर अब तक हुआ काम नाकाफी ही है. बात अगर राजस्थान में महिलाओं की समानता की करें तो आज भी सामाजिक रूप से महिला और पुरुष की खाई बरकरार है.
भले ही महिलाओं को कानूनी तौर पर पुरुषों के समान ही अधिकार मिले हैं, लेकिन समाज में उनकी स्थिति को लेकर असमानता बरकरार है. फिर चाहे वो शिक्षा का क्षेत्र हो या फिर रोजगार का, हर जगह असमानता की खाई अभी भी बनी हुई है.
क्या कहते हैं आंकड़े : राजस्थान में महिलाओं की समानता की बात करें तो लैंड ओनरशिप में प्रदेश की महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 10 प्रतिशत ही है. इसी तरह के हालत शिक्षा, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में भी है. कानूनी तौर पर मिला बराबरी का दर्जा, सामाजिक रूप से आज भी समान नहीं है. समाज में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता है. बजट एनालिसिस एवं रिसर्च सेंटर के निदेशक निसार अहमद बताते हैं कि दुनियाभर में महिलाओं को समान अधिकार और स्थान दिलाने के लिए प्रयास किया जा रहा है. देश में समानता लाने के लिए अब तक जो भी कुछ हो पाया है, वह नाकाफी ही है. महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं, फिर चाहे वह राजनीति का क्षेत्र हो या कोई और. महिलाओं ने कई बड़ी जिम्मेदारियों को निभाकर यह साबित कर दिया है कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं, लेकिन आज भी उन्हें समाज की सोच कहीं न कहीं रोक रही है.
36 फीसदी ही चला रही इंटरनेट : निसार अहमद बताते हैं कि राजस्थान में अगर आंकड़े देखें तो सामने आता है कि नौकरी के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले कम है. 16 से 59 एज ग्रुप को देखें तो शहरी क्षेत्र में मात्र 21 फीसदी महिलाएं काम पर जा रही हैं या काम की तलाश कर रही हैं, हालांकि ये आंकड़ा ग्रामीण क्षेत्र में ठीक उल्टा है. वहां 51 फीसदी महिलाएं काम पर जा रही हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर कृषि या पशुपालन जो कि परिवारक काम है उसे ही कर रही हैं. निसार बताते हैं कि प्रदेश में 2 करोड़ 51 लाख 10 हजार महिलाएं हैं. इनमें से 1 करोड़ 52 लाख 72 हजार महिलाएं 16 से 59 के बीच के एज ग्रुप की हैं. ये महिलाएं काम पर जा सकती हैं, लेकिन 65 हजार से ज्यादा महिलाएं आज भी घरों में चूल्हे चौके संभाल रही हैं. इसी तरह से शिक्षा के क्षेत्र में देखें तो प्रदेश की हर चौथी बच्ची को 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है. उन्होंने बताया कि 33 प्रतिशत बच्चियां कक्षा 10वीं के बाद ड्रॉप आउट हो गईं. वहीं, इंटरनेट के इस्तेमाल की बात करें तो 36 फीसदी प्रदेश की महिलाएं इंटरनेट का उपयोग कर रही हैंं.
सोच बनी बेड़ियां : भारत में आजादी के बाद से ही महिलाओं को वोट करने का अधिकार मिला हुआ है. भारतीय संविधान में महिला और पुरुष दोनों को ही बराबर का अधिकार मिला हुआ है, लेकिन समाज में अभी भी महिलाओं को लेकर दोहरी मानसिकता बरकरार है. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता निशा सिद्धू बताती हैं कि महिला मानव जाति का आधार है, बावजूद इसके महिलाओं को आज भी बराबरी के लिए लड़ाई लड़नी पड़ रही है. घर हो या ऑफिस महिलाओं को हमेशा पुरुषों और पुरुषवादी सोच ने कम ही समझा है.
सालों से लड़ रही हक की लड़ाई : आज भी महिला को अपने ससुराल से मायके जाने के लिए पूछना पड़ता है. बीमार हो या ऑफिस का काम करके आओ, इसके बाद भी घर का पूरा काम करना पड़ता है, क्योंकि वो महिला है. उन्होंने कहा कि ऐसी सोच बनी हुई है कि ये सब उसकी ही जिम्मेदारी है. जब तक महिला को उसके फैसले लेने का अधिकार नहीं मिलेगा तब तक हम समानता की बात नहीं कर सकते. निशा सिद्धू कहती हैं कि कानून से मिले अधिकारों के लिए भी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है. महिला को लेकर समाज में सोच बदलने की जरूरत है. महिला किसी काम में पुरुषों से पीछे नहीं है. एक बार किसी महिला को कोई जिम्मेदारी देकर तो देखो वो उसे पुरुषों से कहीं बेहतर तरीके से निभा सकती है.