जयपुर. बुधवार 15 मार्च को शीतला माता की पूजन का पर्व शीतलाष्टमी मनाया जाएगा. इससे पहले 14 मार्च को रांधा पुआ होगा. जिसमें घर-घर महिलाएं शीतलाष्टमी के लिए पकवान बनाएंगी, और इन ठंडे पकवानों का भोग अगले दिन शीतलाष्टमी पर माता शीतला को लगाया जाएगा. उसके बाद वही ठंडा भोजन ग्रहण किए जाने की परंपरा है. मान्यता और वैज्ञानिक कारणों के आधार पर शीतलाष्टमी आखिरी दिन होता है, जब ठंडा भोजन किया जा सकता है. इसके बाद रखा हुआ भोजन खराब होना शुरू हो जाता है.
राजस्थान में सबसे ज्यादा प्रचलित है शीतलाष्टमीः ये चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर मनाया जाता है. अष्टमी तिथि होने के कारण ही इसे शीतलाष्टमी कहते हैं. ज्योतिषाचार्य डॉ. मनोज गुप्ता के अनुसार राजस्थान में गर्मी बहुत तेज पड़ती है. सर्दी का मौसम खत्म होने के साथ ही गर्मियों के दिन शुरू होते हैं. घरों में अमूमन सुबह का खाना शाम को और शाम का खाना अगले दिन सुबह इस्तेमाल कर लिया जाता है. शीतलाष्टमी के बाद से सुबह का बना हुआ खाना शाम को खाना ठीक नहीं है, क्योंकि वो खाना खराब होना शुरू हो जाता हैं. यानी शीतलाष्टमी आखिरी दिन होता है. इसके बाद बासा भोजन इस्तेमाल करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. ये पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार रखता है. उन्होंने बताया कि शीतलाष्टमी से 1 दिन पहले सप्तमी के दिन रांधा पुआ (भोग के लिए पकवान बनाए जाते हैं) होता है. अष्टमी के दिन उसी ठंडे भोजन को माता शीतला को भोग लगा कर उसे ग्रहण करते हैं. कैसे मौसम के परिवर्तन के साथ अपनी दिनचर्या को बदलना है. इस बात को जीवन के अंदर उतारने के लिए त्योहारों के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने ऐसे तरीके दिए. जिसके जरिए एक आम ग्रहणी भी इन साइंटिफिक बातों को समझ सके, और अपने परिवार और स्वयं के लिए कुछ अच्छे प्रयोगों को जीवन में शामिल कर सके.
माता-बहनें करती हैं बच्चों के उत्तम स्वास्थ की कामनाः ज्योतिषाचार्य डॉ. गिरिजा शंकर शास्त्री ने बताया कि इस त्योहार पर वार की विशेषता रहती है. जिसमें मुख्य रुप से ठंडा वार (सोमवार, बुधवार और शुक्रवार) देखा जाता है. उसी दिन शीतला अष्टमी की पूजा होती है. इससे ठीक एक दिन पहले जो भोजन बनता है, उसे रांधा पुआ कहते हैं. माता के भोग के लिए राबड़ी, रोटी, पूड़ी, हलवा, मीठे चावल, बेसन की भुजिया, कांजी बड़े, दही बड़े, मोहनथाल जैसे पकवान बनाए जाते हैं. शीतला अष्टमी के दिन सुबह स्नान ध्यान करके शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि शीतलाष्टमी का मतलब ही है शीतलता. इसलिए इस दिन स्नान भी ठंडे पानी से ही करना चाहिए. इस त्योहार के पीछे एक विशेष मान्यता ये भी है कि माता-बहने अपने बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना करती हैं. माना जाता है कि देवी शीतला चेचक, खसरा जैसी बीमारियों से बचाती हैं. साथ ही घर की सुख समृद्धि भी बनी रहती है. आपको बता दें कि शीतला माता के पूजन के लिए सुबह 6:52 से 9:49 तक लाभ-अमृत वेला है.