जयपुर. सचिन पायलट ने समाचार एजेंसी से साक्षात्कार में अपने दिल की भड़ास सधे अंदाज में निकाली. जवाब में ही कई सवाल दागे. 25 सितम्बर 2022 की घटना का जिक्र किया. राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल के समानांतर बैठक बुलाए जाने पर भी महेश जोशी ,शांति धारीवाल और धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ कोई ठोस फैसला न किए जाने पर हैरानी जताई.
खुलेआम पूछे सवाल: जोशी-धारीवाल-राठौड़ को एआईसीसी की ओर से कारण बताओ नोटिस दिए जाने के बाद भी खामोशी उन्हें साल रही है. पूर्व डिप्टी सीएम ने इस बातचीत में ये भी कहा कि वो चाहते हैं कि इस्तीफे किसके दबाव में हुए उसकी जांच भी हो. ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसने शांत राजस्थान में फिर से हलचल पैदा कर दी है. पायलट का मीडिया प्लेटफॉर्म से खुलकर बोलना उनकी आगामी स्ट्रैटजी की ओर इशारा कर रहा है.
अपने नेता के मुंह से निकले शब्दों के तुरंत बाद पायलट कैंप के विधायक भी एक्टिव मोड में आ गए और उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से फिर राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की कमान सचिन पायलट को सौंपने की वकालत शुरू कर दी. कहने लगे- कांग्रेस पार्टी को 2023 में सरकार रिपीट करनी है तो सचिन पायलट ही एकमात्र रास्ता है.
दरअसल, यह कहा जाता है कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को राजस्थान में सत्ता की चाबी सौंपना चाहता है. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है 25 सितंबर 2022 को राजस्थान कांग्रेस विधायक दल की बुलाई बैठक. उसका मकसद ही पायलट को प्रदेश की कमान और गहलोत के कांधों पर पार्टी की जिम्मेदारी डालना था लेकिन वैसा हो न सका.
प्रयास कामयाब नहीं हुआ लेकिन पार्टी सूत्रों की मानें तो कांग्रेस आलाकमान भी सचिन पायलट को महत्वपूर्ण पद देना चाहता है. दूसरी ओर युवा आइकन पायलट ने भी अब तक संयम के साथ काम लिया है. सूत्र बताते हैं कि पहले राज्यसभा चुनाव ,फिर भारत जोड़ो यात्रा और उसके बाद राजस्थान बजट 2023-24 के चलते पायलट चुपी साधे रहे. इंतजार कर रहे थे कि बजट के बाद मनमाफिक फैसला कांग्रेस आलाकमान करेगा लेकिन खामोशी कायम है.
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पायलट की प्रेशर पॉलिटिक्स: इसे अपनी बैटिंग के लिए सही पिच तैयार करने की लालसा से भी जोड़ कर देखा जा सकता है. दरअसल, 24 फरवरी से छत्तीसगढ़ के रायपुर में कांग्रेस अधिवेशन प्रस्तावित है. इससे पहले पायलट चाहते हैं कि कांग्रेस आलाकमान कोई निर्णय ले और 11 मार्च को जब राजस्थान का बजट पास हो तो उसके बाद उस निर्णय को लागू कर दिया जाए. यही कारण है कि पायलट आलाकमान को 25 सितंबर को विधायक दल के समानांतर बैठक बुलाने और कांग्रेस आलाकमान के फैसले के विरुद्ध विधायकों से इस्तीफा देने का दबाव किसने बनाया जैसे मुद्दे उठा इसकी पड़ताल करने की डिमांड कर रहे हैं.
कइयों की नजर: टोंक विधायक की राजस्थान में पकड़ अच्छी है. उनके इलाके में विपक्षी खेमे के दिग्गज जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. यहां तक की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बीते एक महीने में पायलट के प्रभाव वाले जिलों का दौरा कर चुके हैं. पहले भगवान देवनारायण के कार्यक्रम में शिरकत फिर दौसा में मौजूदगी इसकी तस्दीक करता है. यह साफ जताता है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह जानते हैं कि सचिन पायलट की ताकत क्या है? भाजपा सचिन पायलट के गढ़ माने जाने वाले इलाकों में सेंधमारी कर रहा है. इतना ही नहीं भाजपा समेत अन्य पार्टियां यह भी जानती हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस का वह असेट हैं, जो न केवल गुर्जर समाज को प्रभावित करता है बल्कि युवाओं और महिलाओं में भी अपनी पकड़ रखता है.
पायलट की उड़ान के बहुत लोग कायल: पायलट की उड़ान के सब कायल है. उनका Aura राजस्थान तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि कई राज्यों के चुनाव पर असर डालने की कुव्वत है टोंक विधायक की. मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश इसका गवाह है. यही कारण है कि भले ही कांग्रेस पार्टी में सचिन पायलट के पास अभी कोई पद न हो लेकिन उन्हें कांग्रेस पार्टी की ओर से हर राज्य में स्टार प्रचारक के तौर पर प्रचार में उतारा जाता है. ऐसे में भाजपा समेत कई राष्ट्रीय पार्टियां सचिन पायलट पर पैनी नजर बनाए हुए हैं. लेकिन पायलट ने भी कांग्रेस के हाथ से ही अपना साथ जोड़ लिया है और उनका रास्ता भी अब कांग्रेस के अलावा किसी और पार्टी की तरफ नहीं जाता दिख रहा. कई बार कह चुके हैं कि वो कांग्रेस में रहकर ही काम करेंगे. दूसरी ओर कांग्रेस को भी उनके कद का अंदाजा है. जानती है कि अगर लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट मजबूती से राजस्थान में सक्रिय नहीं रहे तो पार्टी मोदी के तिलिस्म को राजस्थान कांग्रेस के नेतृत्व से नहीं काट सकेगी.
राजनैतिक दौरों से बनाई खास पहचान: सचिन पायलट जनवरी महीने में 5 रैलियों और जनसभाओं के जरिए अपनी ताकत दिखा चुके हैं. पार्टी में किसी अहम पद पर नहीं हैं. फिर भी उनकी सभा में आ रही भीड़ साफ दिखा रही है कि पायलट के प्रति राजस्थान की जनता का विश्वास उन पर बरकरार है. अब पायलट 20 फरवरी को गंगानगर में दलित समाज के कार्यक्रम में एक सभा को संबोधित करने जा रहे हैं और कांग्रेस अधिवेशन के बाद भी वो अपनी राजनीतिक रैलियां जारी रखेंगे. पूर्व डिप्टी सीएम जानते हैं कि जनता ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है अगर जनता से उन्होंने दूरी बनाई तो बिना पद के पायलट कमजोर दिखने लगेंगे.