जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने करीब 12 करोड़ रुपए आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में बायोफ्यूल अथॉरिटी के निलंबित सीईओ सुरेन्द्र सिंह राठौड और उसकी पत्नी शशि राठौड़ के खिलाफ एसीबी की ओर से दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है. जस्टिस बिरेन्द्र कुमार ने यह आदेश सुरेन्द्र सिंह राठौड़ और शशि राठौड़ की आपराधिक याचिका को मंजूर करते हुए दिए.
सत्यता की जांच किए बिना मामला दर्ज : अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एसीबी को मामले में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच करनी चाहिए थी. ऐसा नहीं करना न्याय की हत्या और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है. वहीं किसी भी आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्राथमिक जांच नहीं करना आरोपी के अधिकारों को खतरे में डालना है. ऐसे में एसीबी के अफसरों ने मामले की सत्यता की जांच किए बिना ही लापरवाही तरीके से एफआईआर दर्ज कर प्रार्थियों पर अपराध करने का आरोप लगाया है. अदालत ने कहा कि यह एक ऐसा असाधारण मामला है, जिसमें दखल नहीं देना न्याय का गर्भपात करने के समान होगा. ऐसे में मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करना ही उचित होगा.
एफआईआर से पहले नहीं हुई प्रारंभिक जांच : याचिका में अधिवक्ता दीपक चौहान ने कहा की एसीबी की ओर से उनके खिलाफ 11,99,59,278 रुपए की आय से ज्यादा संपत्ति रखने का मामला दर्ज किया था, जबकि एफआईआर से पहले कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई. इस संपत्ति में ऐसी संपत्ति की पूरी कीमत भी जोड़ ली, जो लोन पर थी. इसके अलावा संपत्ति की सही ढंग से गणना भी नहीं की गई. ऐसे में एफआईआर को रद्द किया जाए.
जांच नहीं होने पर अपराध कम नहीं होता : एसीबी की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता विभूति भूषण शर्मा ने कहा की एसीबी में प्रारंभिक पड़ताल के बाद ही एफआईआर दर्ज की थी. यदि किसी मामले में प्रारंभिक जांच नहीं भी होती है तो इस आधार पर आरोपी का अपराध कम नहीं हो जाता है, इसलिए याचिका को रद्द किया जाए. दोनों पक्षों की बहस सुनकर अदालत ने एसीबी की एफआईआर को रद्द कर दिया है.
7 अप्रैल को किया था गिरफ्तार : गौरतलब है कि एसीबी की टीम ने 7 अप्रैल 2022 को सुरेन्द्र सिंह राठौड़ और संविदाकर्मी दलाल देवेश शर्मा को परिवादी का लाइसेंस रिन्यू करने की एवज में पांच लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था. राठौड़ पर आरोप था कि उसने परिवादी से लाइसेंस रिन्यू करने और बिना रुकावट व्यापार करने की एवज में 20 लाख रुपए रिश्वत मांगी थी. एसीबी ने सर्च के दौरान प्रार्थी के घर से 3.66 करोड़ रुपए की नकदी भी बरामद की थी. इसके बाद में 19 मई 2022 को उसके खिलाफ आय से ज्यादा संपत्ति की एफआईआर दर्ज की गई.
मृत कर्मचारी से रिकवरी मामले में सुनवाई : राजस्थान हाईकोर्ट ने नगर निगम के मृत कर्मचारी से रिकवरी मामले में करीब सात साल पहले दिए गए आदेश की पालना नहीं होने को गंभीर मानते हुए चार अफसरों दीपक नंदी, भवानी सिंह देथा सहित नगर निगम हेरिटेज के तत्कालीन आयुक्त अवधेश मीणा और आदर्श नगर जोन के उपायुक्त रामकिशोर मीणा को दो-दो हजार रुपए के जमानती वारंट से तलब किया है. अदालत ने कहा है कि अधिकारी 4 जुलाई को अदालत में व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित रहें. जस्टिस नरेन्द्र सिंह ने यह आदेश धन्नी देवी की अवमानना याचिका पर दिए.
2014 में हुई थी पति की मृत्यु : अवमानना याचिका में अधिवक्ता राजीव सोगरवाल ने बताया कि याचिकाकर्ता का पति लालचंद सैनी नगर निगम में कर्मचारी था. 26 अगस्त 2014 को उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन नगर निगम ने 26 अगस्त 2015 को आदेश जारी कर उससे रिकवरी निकाल दी और उसकी पत्नी को 8,12,607 रुपए के सेवानिवृत्ति परिलाभ नहीं दिए. मामला हाईकोर्ट में आने पर अदालत ने 18 जुलाई 2016 को आदेश जारी कर रिकवरी को स्टे कर दिया और नगर निगम को कहा कि वह प्रार्थिया को रोकी गई राशि का भुगतान करें, लेकिन नगर निगम व स्वायत्त शासन विभाग के अफसरों ने सात साल तक आदेश का पालन नहीं किया.
स्पष्टीकरण के लिए हाजिर नहीं हुए अफसर : इसे प्रार्थिया ने अवमानना याचिका के जरिए चुनौती देते हुए आदेश की पालना का आग्रह किया. अदालत ने इसे गंभीर मानते हुए अफसरों को आदेश का पालन नहीं करने के लिए हाजिर होकर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा, लेकिन अफसर हाजिर ही नहीं हुए. इस पर अदालत ने चारों अफसरों के खिलाफ दो-दो हजार रुपए के जमानती वारंट जारी कर उन्हें पेश होने के आदेश दिए हैं.
सहकारिता रजिस्ट्रार के आदेश पर रोक : राजस्थान हाईकोर्ट ने सहकारिता रजिस्ट्रार के गत 5 अप्रैल के उस आदेश की क्रियान्विति पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसके तहत रजिस्ट्रार ने राधेश्याम जैमिनी की एसएसओ आईडी को बंद कर दिया था. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह ने यह आदेश राजस्थान ब्राह्मण महासभा की याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मामले में जवाब पेश होने के बाद अंतरिम रोक हटाने को लेकर प्रार्थना पत्र दायर किया जा सकता है. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और अन्य की ओर से जवाब पेश करने के लिए समय मांगा गया. इस पर अदालत ने तीन सप्ताह का समय देते हुए तब तक सहकारिता रजिस्ट्रार के आदेश पर रोक लगा दी है.
रजिस्ट्रार को मान्यता देने का अधिकार नहीं : याचिका में अधिवक्ता दिनेश वशिष्ठ ने अदालत को बताया कि 18 दिसंबर 2022 को प्रांतीय प्रतिनिधियों की सभा में लिए निर्णय के बाद सहकारिता रजिस्ट्रार ने याचिकाकर्ता की एसएसओ आईडी को मान्यता दी थी. वहीं गत पांच अप्रैल को सहकारिता रजिस्ट्रार ने आदेश पारित कर याचिकाकर्ता संगठन की एसएसओ आईडी को बंद कर केसरी नंदन शर्मा की आईडी को मान्यता देकर शुरू करने के आदेश दे दिए, जबकि रजिस्ट्रार को किसी ग्रुप को मान्यता देने का अधिकार नहीं था और न ही वह पहले से चल रही एसएसओ आईडी के मामले में दखल दे सकते हैं. ऐसे में रजिस्ट्रार के आदेश को रद्द किया जाए. वहीं राज्य सरकार सहित अन्य की ओर से मामले में जवाब पेश करने के लिए समय मांगा गया. इस पर अदालत ने रजिस्ट्रार के आदेश पर अंतरिम रोक लगाते हुए मामले में जवाब पेश करने के लिए समय दिया है.