जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने बच्चों के लापता होने के मामले में राज्य सरकार व पुलिस प्रशासन को कहा है कि वे बच्चों की जल्द तलाश करने के लिए अपने सिस्टम में तेजी लाएं. साथ ही मौजूदा व्यवस्थाओं को और दुरुस्त करें. वहीं अदालत ने राज्य सरकार को इस संबंध अंतरराज्यीय स्तर पर भी अन्य प्रदेशों की पुलिस व प्रशासन के साथ समन्वय विकसित करने के लिए कहा है. जस्टिस पंकज भंडारी व भुवन गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश मुकेश व अन्य की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान अदालती आदेश की पालना में डीजीपी उमेश मिश्रा सहित अजमेर, भिवाडी, अलवर और दौसा के पुलिस अधीक्षक अदालत में पेश हए. अदालत ने पुलिस अधिकारियों को कहा कि क्या राज्य सरकार व पुलिस प्रशासन के पास बच्चों की तलाश जल्दी करने के लिए कोई मैकेनिज्म नहीं है. कई मामले कोर्ट के सामने आए हैं, जिनमें कई साल से लापता बच्चों का पुलिस कोई सुराग नहीं लगा पाई है. अदालत ने उनसे पूछा कि जो बच्चे लापता होने के बाद मर जाते हैं, उनके डीएनए की क्या व्यवस्था है. इनका डीएनए कैसे मैच किया जाता है?. सुनवाई के दौरान एएजी घनश्याम सिंह राठौड ने कहा कि राज्य सरकार लापता बच्चों की तलाश के लिए गंभीर है और पिछले पांच साल में बच्चों की रिकवरी का रेट 99 प्रतिशत है.
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लापता बच्चों की तलाश के लिए सरकार ने एक पोर्टल बना रखा है जो प्रदेश के हर थाने से जुड़ा हुआ है. बच्चे के लापता होने पर उसकी सभी जानकारी इन थानों तक भी भेजी जाती है. इसके अलावा एनजीओ व शैल्टर होम्स की मदद लेकर बच्चों की तलाश की जाती है. वहीं मानव तस्करी निरोधक यूनिट भी बना रखी है, जो बच्चों की तस्करी रोकने का काम करती है. इसके अलावा राज्य सरकार जल्द ही हर थाने में ग्राम रक्षक व पुलिस रक्षकों को भी लगाएगी, जिससे भी सिस्टम दुरूस्त होगा. अदालत ने राज्य सरकार की ओर से बच्चों की तलाश के लिए किए जा रहे प्रयासों से संतुष्ट होते हुए उन्हें सिस्टम में और तेजी लाने के लिए कहा है. बता दें कि याचिकाओं में परिजनों ने अदालत से लापता हुए बच्चों की तलाश कर उन्हें बरामद कराए जाने का आग्रह किया है.