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सिविल केस के तीन साल बाद एफआईआर, हाईकोर्ट ने चार्जशीट पर कार्रवाई करने पर लगाई रोक

orders to the lower court राजस्थान हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत को आदेश दिया है कि वह पेश आरोप पत्र पर कार्रवाई न करे.

Rajasthan High Court,  High Court gave orders
राजस्थान हाईकोर्ट.
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 27, 2023, 8:14 PM IST

Updated : Dec 27, 2023, 11:19 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने वर्ष 1992 में बनाई वसीयत को 23 साल बाद सिविल केस के जरिए चुनौती देने और उसके तीन साल बाद समान बिंदु पर एफआईआर दर्ज करने को प्रारंभिक रूप से गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने निचली अदालत को आदेश दिए हैं कि वह मामले में पेश आरोप पत्र पर कार्रवाई न करे. जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश अशोक कुमार शर्मा और किरण देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता मोहित बलवदा ने बताया कि याचिकाकर्ता अशोक की मां राधा देवी ने वर्ष 1992 में अपनी पुत्रवधू किरण के पक्ष में वसीयत कराई थी. जिसमें याचिकाकर्ता के पिता और बहन गवाह बने थे. वहीं, वर्ष 1993 में राधा देवी की मौत के बाद संपत्ति किरण के अधिकार में आ गई. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता के भाई के बेटे ने वर्ष 2015 में इस वसीयत को फर्जी बताकर निचली अदालत में सिविल केस दायर कर दिया.

पढ़ेंः अदालती दखल के बाद मिला पेंशन परिलाभ, हाईकोर्ट ने अब देरी पर दिलाया ब्याज

यह केस अभी तक लंबित चल रहा है. इसके बाद भाई के बेटे की ओर से फर्जी किरायानामा बनाने पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. याचिका में बताया गया कि भाई के बेटे ने सिविल केस लंबित रहने के दौरान वर्ष 2018 में श्याम नगर थाने में फर्जी वसीयत का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दी और मिलीभगत कर आरोप पत्र भी पेश करवा दिया. याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जब सिविल केस लंबित है तो समान मामले में आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती है. इसलिए अदालत में पेश आरोप पत्र को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने निचली अदालत को आरोप पत्र पर कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए हैं.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने वर्ष 1992 में बनाई वसीयत को 23 साल बाद सिविल केस के जरिए चुनौती देने और उसके तीन साल बाद समान बिंदु पर एफआईआर दर्ज करने को प्रारंभिक रूप से गलत माना है. इसके साथ ही अदालत ने निचली अदालत को आदेश दिए हैं कि वह मामले में पेश आरोप पत्र पर कार्रवाई न करे. जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश अशोक कुमार शर्मा और किरण देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता मोहित बलवदा ने बताया कि याचिकाकर्ता अशोक की मां राधा देवी ने वर्ष 1992 में अपनी पुत्रवधू किरण के पक्ष में वसीयत कराई थी. जिसमें याचिकाकर्ता के पिता और बहन गवाह बने थे. वहीं, वर्ष 1993 में राधा देवी की मौत के बाद संपत्ति किरण के अधिकार में आ गई. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता के भाई के बेटे ने वर्ष 2015 में इस वसीयत को फर्जी बताकर निचली अदालत में सिविल केस दायर कर दिया.

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यह केस अभी तक लंबित चल रहा है. इसके बाद भाई के बेटे की ओर से फर्जी किरायानामा बनाने पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. याचिका में बताया गया कि भाई के बेटे ने सिविल केस लंबित रहने के दौरान वर्ष 2018 में श्याम नगर थाने में फर्जी वसीयत का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दी और मिलीभगत कर आरोप पत्र भी पेश करवा दिया. याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि जब सिविल केस लंबित है तो समान मामले में आपराधिक कार्रवाई नहीं हो सकती है. इसलिए अदालत में पेश आरोप पत्र को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने निचली अदालत को आरोप पत्र पर कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए हैं.

Last Updated : Dec 27, 2023, 11:19 PM IST
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