जयपुर. राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राजस्थान की युवा राजनीति के प्रमुख चेहरे सचिन पायलट आज 46 साल के हो गए हैं. वैसे तो सचिन पायलट हर बार अपने जन्मदिन पर समर्थकों के बीच राजधानी जयपुर में मौजूद रहते हैं. उनके समर्थक भी उनका जन्मदिन जबरदस्त उत्साह के साथ मनाते हैं. जो सचिन पायलट के शक्ति प्रदर्शन में तब्दील हो जाता है, लेकिन इस बार पायलट अपने जन्मदिन पर विदेश दौरे पर होने के चलते जन्मदिन पर जयपुर नहीं आएंगे. हालांकि उनके समर्थकों के जोश में कोई कमी नहीं है. पूरे राजस्थान में अलग-अलग जगह सचिन पायलट के जन्मदिन पर उनके समर्थक ब्लड डोनेशन कैंप के साथ ही अलग-अलग कार्यक्रम करते नजर आ रहे हैं. सचिन पायलट समर्थकों का असर है कि सोशल मीडिया पर सचिन पायलट को दी जा रही बधाइयों के चलते वो टॉप ट्रेंड कर रहे हैं.
पायलट के जन्मदिन के बधाई के पोस्टरों से अटी राजधानी : सचिन पायलट को राजस्थान के ही नहीं बल्कि पूरे देश के युवाओं का राजनीतिक प्रतिनिधि माना जाता है. इसके साथ ही कांग्रेस में भी उनके समर्थक बड़ी संख्या में हैं. यही कारण है कि राजधानी जयपुर में तो सिविल लाइंस इलाका उनके पोस्टरों से पूरी तरह से अटा हुआ है. वहीं पूरे प्रदेश में भी पायलट समर्थक कौन है, पायलट के जन्मदिन पर बड़ी संख्या में अपने नेता के जन्मदिन पर बधाइयां दी है.
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शुरुआती 10 साल में बहुत कुछ मिला बीते 10 साल राजनीतिक संघर्षों में बीता : सचिन पायलट का राजनीतिक जीवन जब शुरू हुआ तब उनके पिता राजेश पायलट की विरासत और उनके खुद के करिश्माई व्यक्तित्व के चलते वह कुछ सालों में ही केंद्र की राजनीति में स्थापित हो गए. भले ही वह अपनी परंपरागत सीट दौसा हो या अजमेर उन्हें समर्थकों का खूब प्यार मिला. जब दौसा लोकसभा से सचिन पायलट 26 साल की उम्र में सांसद बनकर पहुंचे. उस समय वह देश के सबसे युवा उम्र में सांसद बनने वाले नेता थे. दूसरी बार जब वह अजमेर से सांसद बने तो उनकी लोकप्रियता ही थी कि पायलट को केंद्रीय मंत्री बनाया गया. यहां तक पायलट की राजनीति में सब कुछ सही चल रहा था. उनके राजनीतिक संघर्षों की नींव 2013 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के 21 सीट पर सिमट जाने के बाद लगी.
साल 2014 में सचिन पायलट को सोनिया गांधी ने कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर जयपुर भेजा. पायलट ने भी इस चैलेंज को स्वीकार किया और मोदी लहर का सामना करते हुए 2014 के अजमेर चुनाव में उन्हें पहली हार का भी सामना किया. इसके बाद भी उन्होंने संघर्षों से हार नहीं मानी और 2018 में उनके अध्यक्ष रहते ही पार्टी सत्ता में आई. यही वह समय था जब मुख्यमंत्री पद को लेकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच राजनीतिक शह मात का खेल आपसी कटूता में बदल गया. हालत यह बने की पायलट को भले ही उपमुख्यमंत्री बनाया गया हो लेकिन वह संतुष्ट नहीं थे. जिसके चलते 2020 में उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत कर दी. पायलट के असली राजनीतिक संघर्ष यही से शुरू हुए क्योंकि गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान के सामने यह साबित कर दिया कि पायलट ने उनके खिलाफ नहीं बल्कि पार्टी के खिलाफ बगावत की है. नतीजा यह रहा कि जो सचिन पायलट कांग्रेस पार्टी के राजस्थान में एक टर्म में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे उन सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और उपमुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया गया.
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बीते 3 साल में कई मौकों पर लगा पायलट ओर कांग्रेस के जुदा, पायलट ने दिया धैर्य का परिचय : साल 2020 में बगावत के आरोप के चलते अपने पद गंवाने वाले सचिन पायलट को प्रियंका गांधी ने समझा बुझाकर वापस पार्टी का हिस्सा तो बनाया, लेकिन जुलाई 2020 से जुलाई 2023 का समय पायलट का संघर्षों में ही बीता. इस दौरान कई ऐसे मौके आए जब लगा कि पायलट और कांग्रेस के रास्ते अब जुदा हैं, लेकिन तमाम चर्चाओं के बीच आखिर सचिन पायलट ने यह साबित किया कि उनकी नाराजगी कांग्रेस पार्टी से नहीं है बल्कि व्यक्ति विशेष की गलत नीतियों से है. जिसके चलते राजस्थान में सरकार रिपीट नहीं होगी. यही कारण था कि सचिन पायलट को लेकर कहा जाने लगा कि वह खुद कांग्रेस से अलग हो जाएंगे. फिर पार्टी उन पर कार्रवाई कर सकती है. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और सचिन पायलट अब कांग्रेस पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य बना दिए गए हैं. जो बताता है कि राजस्थान की भविष्य की राजनीति में सचिन पायलट कांग्रेस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहेंगे.