जयपुर. प्रदेश में कोचिंग स्टूडेंट्स के बढ़ते सुसाइड ने अभिभावक और सरकार की चिंता बढ़ा दी है. साल 2022 में कोटा में 16 छात्रों ने सुसाइड किया. अकेले दिसंबर के 10 दिन में 4 सुसाइड हुए. यही वजह है कि अब कोचिंग संस्थानों के रजिस्ट्रेशन, इन पर निगरानी, अध्ययनरत विद्यार्थियों और अभिभावकों के मानसिक तनाव को कम करने के लिए राजस्थान कोचिंग इंस्टीट्यूट (कंट्रोल एंड रेगुलेशन) बिल 2023 का प्रारूप तैयार किया गया है, जिस पर मंथन का दौर जारी है. हालांकि, युवाओं से लेकर कोचिंग संचालक और एक्सपर्ट्स हर एक के पास इस बिल को लेकर कुछ सुझाव हैं.
सरकारी रिपोर्ट में सामने आया है कि हर 15 आत्महत्या में 2 छात्राएं और 13 छात्र हैं. यानी खुदकुशी करने वालों में 87% लड़के और 13% लड़कियां हैं. इसके पीछे सरकार ने इंटरनल टेस्ट, प्रेम प्रसंग, ब्लैकमेलिंग और अभिभावकों की महत्वाकांक्षा को कारण बताया है. यही वजह है कि सरकार इसी सत्र में कोचिंग में कंट्रोल और सुसाइड रोकने के लिए बिल लाने जा रही है. इससे पहले प्रदेश के युवाओं ने भी इस बिल को लेकर उनका पक्ष रखे जाने की मांग की है, साथ ही कुछ सुझाव भी ईटीवी भारत के साथ साझा किए हैं. प्रदेश की कोचिंग सेंटर पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए युवाओं ने बताया कि सरकार आनन-फानन में कोई नियम ना बनाएं, जिससे भविष्य में युवाओं को कोई फायदा ना हो और कोचिंग संचालक अपनी मनमानी बरकरार रखें.
इन बातों पर ध्यान दे सरकार :
- पेपर लीक प्रकरण में लिप्त पाए गए कोचिंग संचालकों को दोबारा कोचिंग खोलने का अवसर ना दिया जाए. यही नहीं, उनकी संपत्ति जब्त कर छात्रों की फीस भी लौटाई जाए.
- दूसरे राज्यों में यदि कोई कोचिंग नियंत्रण कानून बना है तो उसे भी स्टडी किया जाए.
- युवाओं से संवाद किया जाए कि उन्हें कोचिंग में किस तरह की समस्या आती है.
- यदि किसी एक ही परीक्षा की तैयारी की जा रही है और पेपर स्थगित हो रहा है तो ऐसी स्थिति में हर साल फीस लेने के बजाय छात्रों को निशुल्क परीक्षा तैयारी कराते हुए आर्थिक भार ना डाला जाए.
- डेमो क्लास, ऑनलाइन क्लास और पेपर देने के नाम पर वसूली जाने वाली राशि पर नकेल कसने के लिए समिति का गठन हो, ताकि वो इन पर निगरानी भी बरते और छात्रों पर मानसिक तनाव ना आए.
- कोचिंग सेंटर्स का स्टाफ ऑनलाइन प्रदर्शित किया जाए और सरकार के पास भी उसका ब्यौरा हो, क्योंकि कोचिंग संचालक प्रसिद्ध शिक्षकों के नाम पर एडमिशन ले लेते हैं और फिर उन्हें क्लास कोई और शिक्षक दे रहा होता है.
- सरकार की ओर से निर्धारित होना चाहिए कि किस प्रतियोगिता परीक्षा या विषय की अधिकतम कितनी फीस ली जा सकती है.
- छात्र कोचिंग सेंटर्स में मानसिक तनाव से जूझते हैं. ऐसे में कोचिंग संचालकों को अनिवार्य रूप से एक मनोवैज्ञानिक भी अप्वॉइंट करना चाहिए.
- खुद सरकार को ब्लॉक स्तर पर कोचिंग संचालित करने चाहिए, ताकि उन्हें छात्रों और अभ्यर्थियों को बड़े शहरों में आने की दरकार ही ना रहे. क्योंकि कोचिंग से ज्यादा खर्चा तो रहने-खाने का हो जाता है.
युवाओं ने सवाल उठाया कि कानून पहले भी बना हुआ है. नकल विरोधी कानून भी बना है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और अब कोचिंग को लेकर बिल लाया जा रहा है. यदि ये धरातल पर लागू ही नहीं होगा तो फिर कोचिंग सेंटर पर लगाम नहीं लग सकेगी. वहीं, विशेषज्ञों ने कहा कि राज्य सरकार राजस्थान कोचिंग इंस्टिट्यूट बिल लाने जा रही है, उससे पहले राज्य सरकार ने भी कुछ नियम दिए हैं, जो काफी हद तक जरूरी भी हैं.
क्योंकि जब तक रेगुलेट नहीं करेंगे, तब तक कंट्रोल कर पाना मुश्किल है. सरकार जब पूरा एक अधिनियम कोचिंग को लेकर आ रही है तो फिर कोचिंग सेंटर्स में पढ़ाने वालों की भी योग्यता परीक्षा होनी चाहिए. जिस तरह से असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए एलिजिबिलिटी टेस्ट होता है, उसी तरह कोई ना कोई ऐसा तंत्र विकसित हो, जिसमें योग्य लोग पढ़ाएं. हर 3 से 4 साल में प्रमाण पत्र को अपडेट कराने के लिए भी टेस्ट हो.
एक्सपर्ट से बताया कि मानसिक और शारीरिक रूप से बच्चे स्वस्थ होंगे तो कभी भी सुसाइड जैसे कदम नहीं उठाएंगे. इसके साथ ही छात्र जिस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, उस जॉब के प्रति उनकी रुचि है भी या नहीं, ये भी जान लेना जरूरी होता है. क्योंकि कई बार समाज और परिवार के प्रेशर में आकर वो सब्जेक्ट या कंपटीशन एग्जाम चुन लेते हैं, जिसमें उनकी रूचि ही नहीं है. ऐसी स्थिति में छात्र इस प्रेशर को हैंडल नहीं कर पाते और सुसाइड जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं.
सरकार ने स्टूडेंट सुसाइड के गिनाए ये कारण :
- कोचिंग में टेस्ट में पिछड़ने के कारण आत्मविश्वास की कमी
- माता-पिता की छात्रों से उच्च महत्वाकांक्षा
- छात्रों में शारीरिक/मानसिक और पढ़ाई संबंधी तनाव
- आर्थिक तंगी
- ब्लैकमेलिंग
- प्रेम प्रसंग
साथ ही एक्सपर्ट सुझाव दिया कि जो भी प्रतियोगिता परीक्षा राजस्थान सरकार लेती है, उनका एक निश्चित शेड्यूल हो. यूपीएससी अपना एक कैलेंडर जारी कर उसी के अनुसार परीक्षा आयोजित करती है. उसी तरह राजस्थान में भी ये तय होना चाहिए, क्योंकि सबसे पीड़ादायक विषय यही है कि छात्रों/अभ्यर्थियों को यही नहीं पता कि जिस परीक्षा की वो तैयारी कर रहे हैं, वो होनी कब है. छात्रों पर सबसे ज्यादा प्रेशर इसी अनियमितता की वजह से आता है. क्योंकि जो छात्र 1 साल का खर्चा लेकर अपने घर से चला है. उसी एग्जाम के लिए उसे 3 साल रहना पड़ जाए तो या तो 1 साल में कोचिंग छोड़कर चला जाएगा या फिर वो अपना प्रेशर और कर्जा और बढ़ाएगा.
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जब कर्जा 3 गुना हो जाएगा, उसके बाद वो बच्चा फेल होता है तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है. ये अनियमितता उसके लिए जिम्मेदार है. आरपीएससी और कर्मचारी चयन बोर्ड को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि तय समय पर एग्जाम हो, समय उसका रिजल्ट और नियुक्ति हो. एक्सपर्ट्स ने कहा कि ये बिल केवल परिजनों, छात्रों या कोचिंग संचालकों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि भर्ती कराने वाली एजेंसियों पर भी नकेल कसने वाला तंत्र विकसित होना चाहिए.