जयपुर. राजस्थान की 16वीं विधानसभा के उद्घाटन सत्र के आगाज के साथ ही बुधवार से एक बार फिर राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर एक बार फिर आवाज बुलंद होती दिखाई दी. विधायकों के शपथ ग्रहण कार्यक्रम से पहले कई विधायकों ने राजस्थानी भाषा में शपथ लेने की अनुमति मांगी थी. हालांकि, उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली. दूसरी तरफ, बदळ्यो-बदळ्यो राजस्थान संगठन से जुड़े लोगों ने विधानसभा के बाहर अनूठे तरीके से राजस्थानी भाषा की मान्यता का मुद्दा उठाया. सिर पर पगड़ी पहने इन युवाओं ने हाथ में कई पर्चे ले रखे थे. इन पर्चों पर राजस्थानी भाषा में शपथ का प्रारूप छपा हुआ था और उन्होंने हर विधायक को यह पर्चा देकर राजस्थानी भाषा में शपथ लेने की मांग की.
इस संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि वोट मांगते समय प्रत्याशियों को मातृभाषा राजस्थानी बोलते हुए देखा जा सकता है. राजस्थानी भाषा में बात कर वे वोट मांगते हैं, लेकिन विधायक बनने के बाद सदन में इसकी मान्यता के लिए आवाज नहीं उठाते हैं. उन्होंने कहा कि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो विधायकों को राजस्थानी भाषा में शपथ लेने से कौन रोक सकता है. उन्होंने कहा कि जहां तक संविधान की आठवीं अनुसूची की बात है. अंग्रेजी समेत कई अन्य भाषाएं भी इसमें शामिल नहीं हैं, लेकिन कई विधायक अंग्रेजी व अन्य दूसरी भाषा में शपथ लेते हैं.
मान्यता की आवाज बुलंद करने का प्रयास : इस संगठन से जुड़े लोगों का कहना है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की मांग को लेकर समय-समय पर आवाज उठती रहती है, लेकिन एकजुटता का अभाव होने से यह सपना सच नहीं हो पाया है. उन्होंने कहा कि इसी लिए आज उन्होंने ज्यादा से ज्यादा विधायकों को पर्चे देकर राजस्थानी में शपथ लेने की मांग की है. देखते हैं कौन अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान प्रकट करता है.
लंबे समय से उठ रही है मांग : राजस्थानी भाषा को संवैधानिक दर्जा देने और इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से चल रही है. इसे लेकर कई बार बड़े आंदोलन और प्रदर्शन हुए, लेकिन अभी तक यह मांग अधूरी ही है. हालांकि, राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर संघर्ष कर रहे लोगों का कहना है कि उनका यह सपना भी एक दिन जरूर साकार होगा.