जयपुर. भले ही वंशवाद के खिलाफ सियासी पार्टियों के नेता बड़ी-बड़ी बातें करें, लेकिन हकीकत यह है कि हर राज्य व पार्टी में वंशवाद की बेल फलती फूलती रही है. इसकी बानगी कांग्रेस में भी दिखने को मिलती रही है. कांग्रेस पर वंशवाद के नाम पर हमला करने वाली भाजपा में भी इसकी लंबी फेहरिस्त है, हालांकि, इस बार राजस्थान में कुछ और ही देखने को मिल रहा है. सियासी पार्टियां भले ही वंशवाद की सियासत को रोकने में नाकामयाब रही हो, लेकिन इसे आगे बढ़ाने वाले पिता ही आज अपने बेटों की सियासी एंट्री में बाधक बन गए हैं.
दूसरी ओर राज्य कांग्रेस में इस बार कई ऐसे भी नेता हैं, जो अधिक उम्र होने के कारण खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे, बल्कि अपने बेटे-बेटियों को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं. आज हम चर्चा उन नेताओं की करेंगे, जो इस बार अपने बच्चों की सियासी एंट्री के बीच आ गए हैं और उन्हें चुनावी मैदान में शिकस्त देने की तैयारी शुरू कर दी हैं. इस सूची में हरेंद्र मिर्धा, मंत्री परसादी लाल मीणा, मंत्री अशोक बैरवा के पिता डालचंद बैरवा समेत अन्य कई नाम शामिल हैं.
हरेंद्र मिर्धा और राघवेंद्र मिर्धा - राजस्थान सरकार में पूर्व मंत्री रहे हरेंद्र मिर्धा के बेटे राघवेंद्र मिर्धा इस बार विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन उनके पिता हरेंद्र मिर्धा साफ कह चुके हैं कि जब पार्टी उन्हें टिकट देना चाहती है तो फिर उनके बेटे को अभी इंतजार करना चाहिए. उन्होंने साफ कहा कि जब उनके पिता सक्रिय सियासत में थे, वो उनकी बारी का इंतजार किए और अब यही उनके बेटे राघवेंद्र को भी करना चाहिए.
डालचंद बैरवा और अशोक बैरवा - कांग्रेस विधायक व पूर्व मंत्री अशोक बैरवा खंडार विधानसभा सीट से इस बार भी अपने लिए टिकट मांग रहे हैं. लेकिन उनके टिकट के विरोध में यदि कोई नाम सबसे आगे रहा तो वो उनके पिता डालचंद बैरवा का ही है. डालचंद बैरवा ने अपने विधायक बेटे अशोक बैरवा को लेकर पर्यवेक्षकों के सामने ही कुछ ऐसा कह दिया, जिसको लेकर अब चर्चाओं का बाजार एकदम से गर्म हो गया है. डालचंद बैरवा ने कहा कि अगर उनके बेटे अशोक बैरवा को टिकट दी गई तो वो उन्हें चुनाव हरा देंगे.
मंत्री परसादी लाल और कमल मीणा - गहलोत सरकार में स्वास्थ्य मंत्री परसादी लाल मीणा 72 साल के हो चुके हैं. उनके बेटे कमल मीणा पिता की सीट पर टिकट की चाहत रखते हैं. बावजूद इसके उनके पिता परसादी लाल मीणा अभी सियासत से सन्यास के मूड में नहीं हैं. ऐसे में उनके बेटे कमल मीणा की सियासी एंट्री मुश्किल हो गई है. वहीं, परसादी लाल मीणा सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि जो बेटों को राजनीति संभालता है वो जल्दी डूबता है. साथ ही उन्होंने कहा कि वो उनके बेटे को कह चुके हैं कि जब वो सक्रिय सियासत से हट जाएंगे तो उनकी खुद-ब-खुद सियासी एंट्री हो जाएगी.
परसराम मोरदिया और बेटे राकेश व महेश मोरदिया - 1977 में पहली बार विधायक बनने वाले 73 साल के परसराम मोरदिया कांग्रेस के सर्वाधिक वरिष्ठ विधायकों में से एक हैं. उनके बेटे राकेश और महेश मोरदिया पिता की विरासत संभालकर विधायक बनना चाहते हैं, लेकिन दोनों बेटों में झगड़ा न हो इसके चलते पिता परसराम मोरदिया सियासत से सन्यास नहीं ले रहे हैं. अब भी दोनों बेटे इस इंतजार में हैं कि पिता उन्हें आशीर्वाद दें और वो चुनाव लड़ें.
महेश जोशी और रोहित जोशी - हवामहल विधानसभा से मंत्री महेश जोशी ने टिकट के लिए आवेदन किया तो पीछे-पीछे उनके बेटे रोहित जोशी भी पहुंच गए. रोहित भी इस सीट से टिकट के लिए आवेदन किए हैं. पिता-पुत्र के बीच कोई विवाद तो नहीं है, लेकिन महेश जोशी ने अपने बेटे के लिए टिकट मांगने की बजाए खुद का टिकट मांगा तो बेटे रोहित अपने स्तर पर ही टिकट मांगने पहुंच गए.
अमीन खान और शेर मोहम्मद - पूर्व मंत्री व वयोवृद्ध विधायक अमीन खान अपने बेटे के लिए टिकट तो मांग रहे हैं, लेकिन उन्होंने पार्टी को साफ कह दिया है कि अगर पार्टी में उम्र को लेकर कोई दिक्कत न हो तो उन्हें ही टिकट दिया जाए.